जानिए दिल्ली में भाजपा की हार के बड़े कारण

यह चुनाव भाजपा की साख के लिए बहुत ही अहम था। पार्टी ने चुनाव जीतने के लिए अपनी ताकत झोंक दी थी। बीजेपी शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों, पार्टी के सांसदों, केंद्रीय मंत्रियों की पूरी फौज दिल्ली की गलियों से लेकर झुग्गी-झोपड़ियों तक में उतार दी थी। खुद अमित शाह ने 60 से ज्यादा रैलियां कीं। बावजूद इसके पार्टी आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल से मुकाबला नहीं कर सकी

पार्टी ने इस चुनाव में भी अपनी इस रणनीति में किसी बदलाव पर विचार नहीं किया। जबकि, यहां उसका सामना मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी के साथ था, जो दिल्ली की जनता के मन में काम करने वाले नेता और पार्टी की धारणा बनाने में कामयाब रहे हैं।

केजरीवाल लगातार दो साल से खुद को दिल्ली के लिए बतौर विकास पुरुष पेश करने में कामयाब रहे। जबकि भाजपा दिल्ली चुनाव में भी मोदी के करिश्में के भरोसे ही किसी चमत्कार होने की उम्मीद में निश्चिंत बैठी रही। बीजेपी दिल्ली के स्कूलों का स्टिंग ऑपरेशन लेकर मैदान में आई भी, लेकिन तबतक उससे दिल्ली काफी दूर हो चुकी थी।

बीजेपी इस उम्मीद में बैठी रही कि अगर कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों की तरह ही दिल्ली के मुकाबले को त्रिकोणीय बनाया तो उसकी गाड़ी चल पड़ेगी। लेकिन, इस बार दिल्ली चुनाव या तो कांग्रेस लड़ ही नहीं रही थी या उसने ऐसी रणनीति ही बनाई थी। पार्टी किसी भी क्षेत्र में लड़ाई में नहीं दिखी। जिन तीन सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों की जमानतें बची हैं, वहां भी पार्टी कम और उम्मीदवारों की भूमिका ही ज्यादा अहम रही है। भाजपा के भरोसे के विपरीत कांग्रेस और उसकी सहयोगी आरजेडी 67 सीटों पर जमानतें भी नहीं बचा सकी।

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