ये है दुनिया का सबसे पुराना रेगिस्तान, जहां पर बने है ‘भगवान के पैरों के निशान’
दोस्तों आपको बता दे कि कुछ लोग मानते हैं कि वे देवताओं के पैरों के निशान हैं। दूसरों को लगता है कि वहां रात में परियां नाचती हैं। कुछ अन्य लोगों को शक है कि वहां यूएफओ आते हैं, लेकिन आज तक कोई भी नामीब रेगिस्तान पर बनी लाखों गोलाकार आकृतियों की व्याख्या नहीं कर पाया है।
दोस्तों नामीब रेगिस्तान दक्षिणी अंगोला से नामीबिया होते हुए 2,000 किलोमीटर दूर दक्षिण अफ्रीका के उत्तरी हिस्से तक फैला है। नामीबिया के लंबे अटलांटिक तट पर यह नाटकीय रूप से समुद्र से मिलता है। ऐसा लगता है मानो पूरब की ओर रेत का अंतहीन समुद्र फैला हो, जो दक्षिण अफ्रीका के 160 किलोमीटर अंदर विशाल ढलान तक जाता है।
दोस्तों नामीब रेगिस्तान का सबसे जानलेवा इलाका रेत के टीलों और टूटे हुए जहाजों के जंग खाए पतवारों से भरा हुआ है। अटलांटिक तट पर 500 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में फैला यह इलाका कंकाल तट के नाम से जाना जाता है। दक्षिणी अंगोला से मध्य नामीबिया तक फैला यह इलाका व्हेल के अनगिनत कंकालों और लगभग 1,000 जहाजों के मलबे से पटा हुआ है, जो पिछली कई सदियों में यहां जमा हुए हैं।
दोस्तों यह कंकाल तट अक्सर घने कोहरे से ढंका रहता है, जो अटलांटिक की ठंडी बेंगुएला धारा और नामीब रेगिस्तान की गर्म हवाओं के टकराने से बनता है। समुद्री जहाजों के लिए इस कोहरे से पार पाना कठिन होता है। स्थानीय सैन लोगों का कहना है कि ईश्वर ने इस क्षेत्र को गुस्से में बनाया है।
1486 ईस्वी में अफ्रीका के पश्चिमी तट के किनारे-किनारे चलते हुए पुर्तगाल के मशहूर नाविक डियागो काओ कुछ समय के लिए कंकाल तट पर रुके थे। काओ और उनके लोगों ने वहां क्रॉस की स्थापना की, लेकिन कठिन परिस्थितियों में वे ज्यादा समय तक टिक नहीं पाए। जाते-जाते उन्होंने इस जगह को ‘नरक का दरवाजा’ नाम दे दिया।
ऑस्ट्रेलिया में मिले घेरे देखने में तो नामीबिया के घेरों जैसे ही हैं, लेकिन दोनों जगहों की मिट्टी की संरचना अलग है। इसने वैज्ञानिकों को और चकरा दिया। ‘परियों’ के घेरे की पहेली सुलझाने में विशेषज्ञ भले ही चकरा रहे हैं, लेकिन नामीबिया के स्थानीय लोगों को इन आकृतियों के बारे में बहुत पहले से पता था। स्थानीय हिम्बा लोगों का विश्वास है कि इन्हें आत्माओं ने बनाया है और ये उनके देवता मुकुरू के पैरों के निशान हैं।