छठ पूजा Chhath Puja के पावन पर्व पर व्रती महिलाएं नाक से लेकर मांग तक लंबा सिंदूर लगाती हैं, जिसे पति और परिवार की लंबी आयु, सम्मान और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। सिंदूर लगाने की परंपरा का गहरा धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व है। यह न केवल पति-पत्नी के रिश्ते में प्यार और सम्मान को दर्शाता है बल्कि परिवार की सुख-समृद्धि और समाज में पति के सम्मान से भी जुड़ा है। तो चलिए इस लेख में हम आपको बताते हैं कि छठ पर विवाहित महिलाएं खासकर व्रती महिलाएं नाक से सिंदूर क्यों लगाती हैं।
लंबा सिंदूर लगाने की है परंपरा
छठ Chhath पर्व में व्रती महिलाएं खास रीति-रिवाजों का पालन करती हैं। इस पर्व में नाक से लेकर मांग तक लंबा सिंदूर लगाना एक महत्वपूर्ण परंपरा है। इसे परिवार की सुख-समृद्धि और पति की लंबी उम्र से जोड़कर देखा जाता है। दरअसल, हिंदू धर्म में सिंदूर का बहुत महत्व है।

यह सुहाग का प्रतीक है और विवाहित महिलाओं के लिए यह एक जरूरी आभूषण है।
सिंदूर को पति की लंबी उम्र, सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। खासकर छठ पूजा Chhath Puja के दौरान महिलाएं नाक से लेकर मांग तक लंबा सिंदूर लगाती हैं। इस परंपरा से कई धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं।
तीन तरह के सिंदूर का होता है इस्तेमाल
छठ पूजा Chhath Puja में मुख्य रूप से तीन तरह के सिंदूर का इस्तेमाल किया जाता है:
लाल सिंदूर:- यह रंग मां पार्वती और सती की ऊर्जा का प्रतीक है। लाल सिंदूर पति की लंबी उम्र के लिए लगाया जाता है। इसे सबसे शुभ माना जाता है और आमतौर पर महिलाएं इसी सिंदूर का इस्तेमाल करती हैं।
नारंगी या पीला सिंदूर:– यह सिंदूर सूर्य देव और छठी मैया से आशीर्वाद पाने के लिए लगाया जाता है। नाक से माथे तक नारंगी या पीला सिंदूर लगाने से पति की उम्र लंबी होती है और समाज Chhath Puja में उसकी ख्याति बढ़ती है। इसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।

मटिया सिंदूर:– गुलाबी रंग का यह सिंदूर खास तौर पर छठ पूजा और शादी में इस्तेमाल किया जाता है। इसे सबसे शुद्ध माना जाता है और यह पति-पत्नी के प्यार और समर्पण का प्रतीक है।
हनुमान जी से जुड़ी है सिंदूर की कहानी
एक पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान हनुमान ने देखा कि माता सीता द्वारा लगाए गए सिंदूर से श्री राम प्रसन्न हैं। तब हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर को सिंदूर से रंग लिया ताकि भगवान राम भी उनसे प्रसन्न हों। इस तरह सिंदूर का रंग भगवान के प्रति समर्पण और आदर का प्रतीक बन गया। यह कहानी छठ पूजा Chhath Puja और सिंदूर लगाने की परंपरा से भी जुड़ी है, जिसमें समर्पण और आदर की भावना समाहित है। घाटों पर महिलाएं एक-दूसरे को नाक से लेकर मांग तक सिंदूर लगाती हैं और पति की लंबी उम्र, यश आदि की कामना करती हैं।
सूर्य की लालिमा है नारंगी सिंदूर
सूर्योदय के समय दिखने वाली लालिमा से नारंगी सिंदूर जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि जिस तरह सूर्य की किरणें जीवन में नई ऊर्जा और रोशनी लाती हैं, उसी तरह नारंगी सिंदूर नई दुल्हन के जीवन में नई खुशियां लेकर आता है। खासकर बिहार में शादी के दौरान सुबह दुल्हन की मांग में नारंगी सिंदूर भरा जाता है, जो समृद्धि और नई शुरुआत का प्रतीक है।
सिंदूर का धार्मिक और सामाजिक महत्व
छठ पूजा Chhath Puja में सिंदूर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, जो महिलाएं लंबा सिंदूर लगाती हैं, उनके पति को समाज में मान-सम्मान मिलता है।
लंबा सिंदूर सम्मान का प्रतीक है
ऐसा माना जाता है कि सिंदूर जितना लंबा होगा, पति की उम्र उतनी ही लंबी होगी। नाक से लेकर बालों के बीच तक सिंदूर लगाने का मतलब है कि महिला अपने पति के प्रति प्यार और सम्मान दिखा रही है। ऐसा कहा जाता है कि Chhath Puja सिंदूर छिपाने से समाज में पति का सम्मान भी कम होता है। इसलिए, विवाहित महिलाएं छठ के दौरान विशेष रूप से लंबा सिंदूर लगाती हैं।

पवित्रता का पर्याय है मटिया सिंदूर
बिहार में मटिया सिंदूर का विशेष स्थान है। गुलाबी रंग का यह सिंदूर आमतौर पर बाजार में नहीं मिलता है लेकिन इसे सबसे शुद्ध माना जाता है। इसका इस्तेमाल आम तौर पर नहीं किया जाता है। बल्कि, इसका इस्तेमाल शादी और छठ पूजा जैसे खास मौकों पर ही किया जाता है। इसका नाम Chhath Puja मटिया इसलिए रखा गया है क्योंकि यह मिट्टी जैसा गुण वाला होता है। विवाह के दौरान इस सिंदूर का उपयोग दुल्हन की मांग में भरने के लिए किया जाता है।
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