तेरहवीं के दौरान तेरह दिनों तक शाम को भोजन देने का क्या मतलब है? जानिए वजह

ये रीती रिवाज बनाने वालें ने बहुत सोच समझकर बनाए थे पर समय के साथ लोग इन्हे बनाए जाने के पीछे की मूल भावना भूल गए

एक विद्वान व्यक्ती ने इस संबंध में एक बार बताया था की जब पहले समय में किसी की मृत्यू का समाचार मिलता था तब जान पहचान के सब लोग परिवार के सदस्यों को सांत्वना देने जाते थे ..और थोड़ा थोड़ा अन्न घर से ले जाते थे वहाँ सबका अन्न मिलाकर खीचड़ी बनाई जाती थी ..और सब मिलकर खाते थे..

इसके कई फायदे थे

मृतक के घर के सदस्यों खालीपन महसूस नहीं होता था क्यूंकी सबको क्या हुआ कैसे हुआ का जवाब देते देते सच स्वीकार हो जाता और मन हल्का हो जाता … और १३ दिन होते होते काफी हद तक हील हो जाते …इतने लोगों को देखकर बातचीत और शोशलाइजेसन करने में मृतक के घर वालों का दुनियादारी में वापस मन लगने लग जाता धीरे धीरे ..

पर धीरे धीरे मृत्यूभोज की जिम्मेदारी परिवार के सदस्यों पर आ गई ये सामाजिक प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया ..कई लोगों को कर्ज लेकर करना पड़ता ..धीरे धीरे समझदारी से बनी परंपरा ने विकृती का रूप ले लिया आजकल तो पैसों और वस्त्रों का लेनदेन होने लगा है ……

अब परंपरा ने अपने मूलरूप को खो दिया है …..

काफी समाजों ने मृत्यूभोज बंद कर दिया है ..

पर मृतक के परिजनों से सबको मिलकर आना चाहिए उनका मन हल्का करने का और वापस दुनियादारी में लगाने के प्रयास अपनी तरफ से करने चाहिए ….

अकेला व्यक्ती घुट घुट कर पगला जाता है

आज ही खबर पढी की पति की कोरोना से निधन के बाद पत्नी ने आत्महत्या कर ली ..समय ही ऐसा चल रहा है की लोगों मेलजोल नहीं हो पा रहा .. मजबूरी एसी है की लोग इकट्ठा नहीं हो सकते .. एसे में अकेला व्यक्ती मन नहीं संभाल पाता और तनाव में चला जाता है गलत कदम उठा लेता है ….

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