यह कैपेसिटर capacitor है। यह बैटरी जैसा दिखता है और इसका काम भी लगभग बैटरी जैसा ही है।
यह पहले सप्लाई से चार्ज होता है और जब सप्लाई बंद हो जाती है तो डिस्चार्ज हो जाता है।
इसका काम पंखा चालू करना है। अगर यह नहीं है तो स्विच ऑन करने के बाद भी पंखा अपने आप नहीं चलेगा।
आप इसके बिना भी पंखा चला सकते हैं। आपको बस इसे स्विच ऑन करना है और एक स्टिक की मदद से घुमाना है, फिर यह घूमने लगेगा। ध्यान रहे कि आप इसे स्टिक से जिस दिशा में घुमाएंगे, यह उसी दिशा में घूमेगा।
लेकिन इस स्थिति में पंखा बहुत धीरे घूमेगा। ऐसा तब होता है जब किसी कारण से कैपेसिटर ऐसे समय में खराब हो जाता है कि उसे ठीक करवाने का समय नहीं होता।
आमतौर पर घरों, दफ्तरों और अन्य संस्थानों में हल्के लोड के लिए सिंगल फेज बिजली की आपूर्ति की जाती है, इसलिए इन जगहों पर इस्तेमाल होने वाली सभी मोटरें एसी सिंगल फेज पर चलती हैं। उसमें भी सिंगल फेज एसी इंडक्शन मोटर का इस्तेमाल बहुतायत में होता है और हो भी क्यों न, जब सिंगल फेज मोटर ज़्यादा विश्वसनीय, लागत में सस्ती, बनाने में आसान और मरम्मत में आसान होती हैं। इसलिए, पंखों में भी इन मोटरों का इस्तेमाल होता है।
इतने सारे फ़ायदों के बावजूद सिंगल फेज एसी इंडक्शन मोटर की एक कमी यह है कि ये ऑटोमैटिक या सेल्फ़-स्टार्ट नहीं होती हैं। यानि अगर उन्हें डायरेक्ट बिजली सप्लाई की जाए तो वे खुद से घूमने नहीं लगते, जिसका कारण यह है कि जब उनके स्टेटर वाइंडिंग में सिंगल फेज एसी करंट सप्लाई किया जाता है,
तो वहां एसी यानी अल्टरनेटिंग मैग्नेटिक फील्ड उत्पन्न होती है और उसके रोटर में भी म्यूचुअल इंडक्शन के कारण ऐसा ही मैग्नेटिक फील्ड उत्पन्न होता है, लेकिन यहां सिर्फ अल्टरनेटिंग फील्ड से रोटिंग फोर्स उत्पन्न नहीं होगी, उसके लिए रिवाल्विंग मैग्नेटिक फील्ड की जरूरत होगी या फिर शुरुआत में मोटर को करंट सप्लाई करने के बाद हर बार रोटर को बाहरी फोर्स से थोड़ा धक्का देना पड़ेगा, तब जाकर वह घूमने लगेगा। जबकि थ्री फेज एसी इंडक्शन मोटर में तीनों फेज में एंगल डिफरेंस के कारण यह काम तीन अलग-अलग वाइंडिंग द्वारा अपने आप हो जाता है।
जबकि सिंगल फेज एसी इंडक्शन मोटर में स्टेटर पर मेन वाइंडिंग के साथ स्टार्टिंग वाइंडिंग लगाकर इसका समाधान किया गया। यहाँ दोनों वाइंडिंग को समानांतर में जोड़कर, एक कैपेसिटर को स्टार्टिंग वाइंडिंग के साथ सीरीज में जोड़ा गया, जिससे दोनों वाइंडिंग के बीच 90° का फेज अंतर उत्पन्न हो सके, जिसके कारण इसे फेज स्प्लिट मोटर भी कहते हैं। इस तरह कैपेसिटर की वजह से एक ही फेज से दो फेज का काम हो सकता था। अब उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र घूम रहा था, जिसके कारण मोटर शुरू से ही अपने आप घूमना शुरू कर सकती थी।
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