क्या पुनर्जन्म चीज जैसी कोई चीज वास्तव में होती है ? जानिए
बरेली के एक अध्यापक थे इशमतुल्ला अंसारी। उनका पाँच साल का बेटा करीमउल्ला था। एक दफा ईद के मौके पर वे इकराम अली के यहाँ तशरीफ ले गए। साथ में करीम को भी ले गए। करीम ने जैसे ही इकराम को देखा, उन्हें अपना वालिद बताया। अपने आपको उनका बेटा मोहम्मद फारूक कहा। फारूक की मौत 1954 में हो चुकी थी। यही नहीं इकराम के घर में उसने अपनी पिछले जन्म की बीवी फातिमा को भी पहचान लिया। फातिमा जज्बाती हो गईं थीं उसकी बातें सुनकर। वह करीम काे अपनी गोद में बिठाने लगीं तो करीम संभलकर बोला था, तुम तो मेरी बीवी फातिमा हो, मैं अपनी कुर्सी पर ही बैठूँगा…
पुनर्जन्म की ऐसी अनगिनत कहानियाँ हैं। सभी धर्मों के उदाहरण हैं। भले ही उस धर्म में पुनर्जन्म को लेकर मान्यताएँ कुछ भी हों, लेकिन पिछले जन्म की स्मृतियाँ किसी-किसी बच्चे को कहीं याद रह गईं और एक और रोचक कहानी सामने आई। कभी-कभी अखबारों और पत्रिकाओं में ये कहानियाँ जगह बनाती रही हैं। लेकिन इन सतही अखबारी पड़ताल में होता क्या है? एक बच्चे ने कहीं अपने बारे में कुछ अटपटी बातें कहीं। खुद को कहीं और का निवासी बताया। अपने माँ-बाप के बारे में बताया। कुछ जिज्ञासु उन सूचनाओं के आधार पर उन स्थानों पर संपर्क किए और इस तरह कहानी के तार दूसरी तरफ जा जुड़े। मगर सृष्टि की इस अद्भुत लीला में कई प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाते हैं हर बार।
जन्म के पहले हम कहाँ थे? मृत्यु के बाद क्या होता है? क्या आत्मा जैसी कोई चीज है, जो एक शरीर से दूसरे शरीर में अपनी यात्रा को जारी रखती है? ये बड़े ही रोचक सवाल हैं। भारतीय परंपरा पुनर्जन्म को मानती है। गीता में बहुत स्पष्ट कथन है कि जैसे हम वस्त्रों को बदलते हैं। वैसे ही आत्मा नए शरीर में चली जाती है। यह जन्म और मृत्यु की अनंत यात्रा है। पतंजलि योगसूत्र जन्म और मृत्यु के इस चक्कर से ही मुक्त होने का मार्ग बताता है ताकि आत्मा अनंत में लीन हो और फिर किसी शरीर में उसे लौटना ही न पड़े।
यह विषय जितना रोचक है, उतना ही जटिल भी। दुनिया में कई विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने सृष्टि की इस लीला को समझने में ही जीवन लगा दिया। 82 साल के डॉ. कीर्तिस्वरूप रावत ने जीवन के 50 साल इस विषय को समझने में लगाए हैं। इस दौरान उनकी फाइलों में 512 केस ऐसे जमा हुए, जिनमें किसी का कहीं पुनर्जन्म होता है। इनमें से लगभग दो सौ केसों की स्टडी उन्होंने खुद की है। जहाँ से भी कोई केस आया, वे उसकी गहराई में गए और तथ्यों की गहरी पड़ताल के बाद सिद्ध किया कि ऐसी किसी भी कहानी का दूसरा सिरा बीते किसी जन्म की कहानी से कैसे जुड़ा हुआ है।
औसत 3.7 साल के बच्चों के केस थे, जिनमें बोलना सीख चुके बच्चे कुछ ऐसी बातें करते, जिनमें उनकी पूर्व जन्म की स्मृतियों के बेबूझ इशारे होते। ऐसे ख्ुलासों में ज्यादातर यह हुआ कि इस उम्र के बच्चे को पिछले जन्म से जुड़ा कोई व्यक्ति या स्थान नज़र आया तो चौंककर अचानक बच्चे ने अपने परिजनों से कुछ कहा। कुछ ऐसा, जो पहली बार अटपटा लगा। अप्रत्याशित। किंतु रोचक। डॉ. रावत कहते हैं कि मैंने अध्ययन के बाद 98 फीसदी मामले विश्वसनीय पाए। सिर्फ तीन केस ही ऐसे थे, जिनमें मृत्यु के फौरन बाद पुनर्जन्म हो गया। कुछ केसों में मृत्यु और अगले जन्म के बीच दस साल तक का फासला मिला।