जानिए मौन व्रत का अभ्यास किस प्रकार से किया जाना चाहिए?
मौन वृत का अभ्यास मौन रहकर ही किया जाना चाहिए।
पहले आप 10 मिनट का अभ्यास करें।
फिर समय बढ़ाते हुए 2–3 घण्टे का अभ्यास करें।
फिर सुबह के 6 घण्टे का अभ्यास कुछ दिन करें। धीरे धीरे आप 24 घण्टे मौनवृत तक आ सकेंगे।
विशेष बात यह है कि पहले आपको इशारों में बात करनी पड़ेगी। कभी लिखकर देना होगा। धीरे धीरे यह छोड़ना पड़ेगा। परिपक्व अवस्था जब आएगी तब आप भीतर से भी मौन रहने लगेंगे। भीतर का मौन पहले तो डरायेगा लेकिन आंनदित भी करेगा। भीतर का मौन अर्थात निर्विकल्प मौन, अर्थात किसी भी प्रकार की चिंतन विचार प्रक्रिया का भी न चलने। एकदिन स्थिरता, निःशब्दता। यही ध्यानावस्था होगी। यही से आगे समाधि की अवस्था में जाना हो सकेगा।