जानिए सारा अली खान के बारे में चौंका देने वाले रहस्य क्या हैं?

सारा अली खान भले ही आज एक सफल ऐक्ट्रेस बनने की ओर तेजी से बढ़ रही हैं, लेकिन अदाकारा बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्हें अपने पैरंट्स की एक शर्त को पूरा करना था। चलिए जानते हैं ये शर्त और ये कि हमें क्यों लगता है कि सभी पैरंट्स को भी ऐसी शर्तें बच्चों के सामने जरूर रखनी चाहिए।

सारा के फिल्म में आने से पहले सैफ ने रखी थी एक शर्त, जानें कैसे ऐसी शर्तें बचाती हैं बच्चों को

सारा अली खान बीटाउन ऐक्ट्रेस बनने से पहले एक स्टारकिड के रूप में पहचान रखती थीं। उनके पापा सैफ अली खान और मां अमृता सिंह दोनों ही बॉलिवुड के बड़े नाम हैं। स्टार फैमिली से होने के कारण सारा के मन में भी ऐक्ट्रेस बनने की चाह थी, लेकिन इस सपने को हासिल करने से पहले उन्हें सैफ और अमृता की एक कंडीशन को पूरा करना ही पड़ा। और हमें ऐसा लगता है कि सभी बच्चों के सामने पैरंट्स को ऐसी शर्त रखना ही चाहिए।

ये थी शर्त

सारा अली खान ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि एक पॉइंट जिसे लेकर सैफ और अमृता दोनों ही बहुत क्लियर थे, वह था पढ़ाई। वे एजुकेशन के महत्व को समझते थे और इसलिए जब बात पढ़ाई की आती थी तो वे इससे बिल्कुल भी समझौता नहीं करना चाहते थे। यही वजह है कि उन्होंने सारा को पहले अपनी डिग्री पूरी करने और फिर करियर के बारे में सोचने के लिए कहा। इस तरह की अप्रोच बच्चों के लिए बेस्ट होती है।

दरअसल, हर बच्चा कुछ न कुछ बनना चाहता है, लेकिन आज के टाइम में जो कॉम्पिटिशन है वह उसे देखते हुए अगर उसे दो फील्ड के लिए तैयार किया जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं है। उदाहरण के लिए अगर बच्चा फटॉग्रफर बनना चाहता है तो उसे अपने सपने पर काम तो करने दें, लेकिन साथ ही में उसे डिग्री पूरी करने के लिए भी प्रोत्साहित करें। इससे फायदा यह होगा कि अगर मान लीजिए कि बच्चा फटॉग्रफर बनने में सफल नहीं भी हो पाता है तो उसके पास कम से कम अपनी डिग्री के दम पर दूसरा जॉब ढूंढने व करियर बनाने का मौका मिल जाएगा।

शर्त में यह सीख भी थी शामिल

सारा को विदेश में पढ़ने के लिए भेजना के कुछ अन्य अहम कारण भी थे जो ऐक्ट्रेस ने खुद एक इंटरव्यू में बताए थे। उन्होंने बताया था कि सैफ-अमृता दोनों ही चाहते थे कि बाहर अकेले रहने के एक्सपीरियंस, नए लोगों से मुलाकात और नए माहौल से वह चीजें सीखें। इस चीज ने सारा को अपने सपने को लेकर और साफ तरीके से सोचने व उस पर काम करने का मौका दिया। बच्चों को हमेशा प्रटेक्टिव बबल में सेफ रखना उनके लिए अच्छा नहीं है। इससे वह दुनियादारी या प्रैक्टिकल अप्रोच नहीं सीख सकेगा। यह उसके करियर में बड़ी बाधा बन सकती है। बेहतर है कि उन्हें धीरे-धीरे ऐसे ग्रूम किया जाए कि वे इंडिपेंडेंट बनें और खुद सही-गलत का फैसला लेने में सक्षम हो सकें। वैसे और भी कई चीजें हैं जो सैफ और अमृता की पैरंटिंग से अन्य माता-पिता सीख सकते हैं।

गाइड करना लेकिन दोस्त भी बने रहना

अमृता और सैफ दोनों ने ही बच्चों को उनके बेहतर भविष्य के लिए हर तरह से गाइड व सपोर्ट करने की कोशिश की है, जो हर माता-पिता करते हैं। इसके साथ उन्होंने दोनों बच्चों संग दोस्ती का रिश्ता भी रखा और उन्हें खुलकर अपनी बातें सामने रखने की छूट दी। इस तरह की अप्रोच से बच्चों में झिझक कम होती है और वे अपने परेशानियों को भी पैरंट्स से शेयर करने में कंफर्टेबल महूसस करते हैं। ऐसा होने पर उन्हें बेहतर तरीके से गाइड किया जा सकता है और काफी हद तक गलत चीजों में फंसने व डिप्रेशन जैसी स्थिति में जाने से बचाया जा सकता है।

मैच्योर की तरह ट्रीट करना

सैफ भले ही सारा को काफी टीज करते हों लेकिन वह कई मौकों पर यह साबित कर चुके हैं कि वह अपनी बेटी का बतौर मैच्योर व समझदार पर्सन भी सम्मान करते हैं। ऐसा होना भी चाहिए। बच्चा बड़ा हो जाए तो उसकी भी मैच्योरिटी का सम्मान किया जाना चाहिए। हमेशा उसे बच्चे की तरह ही ट्रीट करते रहना सही नहीं है। इससे उसे ऐसा लग सकता है कि वह क्या सोचता है इसकी कोई वैल्यू नहीं है, जिससे बाहर भी उसे अपने थॉट्स को एक्सप्रेस करने में परेशानी आ सकती है।

केयर ऐंड डिसिप्लिन

सैफ और अमृता भले ही अलग हो गए थे, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों में केयर व डिसिप्लिन बनाए रखना जारी रखा। यही वजह है कि आज सारा खुद कहती हैं कि वह जो हैं उसमें इन दोनों चीजों का काफी महत्व है। बच्चा है तो केयर तो चाहिए ही, लेकिन डिसिप्लिन भी बेहद जरूरी है। यह उन्हें एक ओर इमोशनली कनेक्ट होने में मदद करता है तो दूसरी ओर जिंदगी में अच्छी आदतें डालने में भी बड़ी भूमिका निभाता है।

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