राम के हर काम में लक्ष्मण ने उनका साथ दिया फिर भी उन्हें भरत से ज्यादा लगाव क्यों था?

राम को केवल प्रेम ही प्यारा है ।ऐसा नहीं है कि लक्ष्मण के प्रेम नहीं है।लेकिन उन दोनों के प्रेम में बस थोड़ा सा अंतर है ।भरत के प्रेम मे सौ प्रतिशत समर्पण है जबकि लक्ष्मण के प्रेम में निन्यानबे प्रतिशत ।भरत को भगवान राम की इच्छा प्रिय है जबकि लक्ष्मण को कभी कभी भगवान राम की इच्छा अच्छी नहीं लगती ।

उदाहरण के लिए भगवान राम ने जब समुद्र से रास्ता देने की विनय करने का विचार किया तो यह बात लक्ष्मण को जरा भी अच्छी नहीं लगी ।जबकि भरत जब भगवान राम को मनाने के लिए गए तो देवताओं को डर लगा कि ऐसा न हो भरत का कहना मानकर लौट जांय लेकिन किसी ने कहा कि आप भरत को नहीं जानते ,भरत वहीं करेंगे जो भगवान राम आज्ञा देंगे।वे मनमाना आचरण नहीं करेंगे ।और भगवान राम ने भी जहाँ भी कहा है कि तुम मुझे बहुत प्रिय हो वहाँ भरत का नाम लिया ।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।

यह प्रमाण स्वयं भगवान राम का दिया हुआ है ।और कहा गया है कि। ——

भरत सम भाई हुए हैं न होहिं गे ।

रामचरित मानस में भरत जी का प्रसंग जितना लम्बा है वह भी भरत के प्रति गोस्वामी जी का प्रेम बताता है ।और भरत की महिमा अपार है इसका उदाहरण देखिए ।

भरत महामहिमा जलराशी ।मुनि मति ठाढ तीर अबला सी ।।

भरत ने अपनी मां का भी सारा दोष अपने ऊपर ले लियाऔर उनका समर्पण देखिए ।

मोरे सरन राम की पनही ।राम सुस्वामि दोष सब जनही ।।

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