मैसूर राज घराने को क्या श्राप था?

मैसूर राज घराने को श्राप था कि ४०५ वर्ष के बाद असली वारिस ने जन्म लिया और तब श्राप से मुक्ति मिली?

क्या आज के युग में भी श्राप का कोई औचित्य है। बिलकुल मैसूर राजघराना इसकी जीती जागती मिसाल है। यह राजघराना ४०० साल से एक श्राप को झेल रहा था। जिससे अब जाकर मुक्त हुआ है।

राजघराना खुद मानता है कि 400 साल से एक बुजुर्ग महिला का दिया श्राप उनको भुगतना पड़ रहा था क्योंकि 4 सदी बीत जाने के बाद भी राज महल में किसी भी उत्तराधिकारी बच्चे ने जन्म नहीं लिया। अभी साल भर पहले ही इस श्राप से मुक्ति मिली है। मैसूर रियासत के 27 वें राजा यदुवीर की शादी साल 27 जून 2016 को डूंगरपुर की राजकुमारी त्रिशिका सिंह के साथ हुई थी। राज महल में बीते 400 सालों के बाद पहली बार बच्चे का जन्म जून २०१८ में हुआ है।

दिवंगत महाराज श्रीकांत सिंह वाडियार और रानी प्रमोद देवी की अपनी कोई संतान नहीं थी इसलिए रानी ने अपने पति की बड़ी बहन के बेटे यदुवीर को गोद लिया और वाडियार घराना का वारिस बना दिया। यह घराना राज परंपरा आगे बढ़ाने के लिए 400 सालों से किसी दूसरे के पुत्र को गोद लेकर वंश को आगे बढ़ाता रहा है।

मैसूर के इतिहास में कहा जाता है 1612 में दक्षिण भारत के सबसे ताकतवर राजा विजयनगर के थे जिन के पतन के बाद वाडिया राजा की सेना ने विजयनगर में आक्रमण कर बहुत लूटपाट मचाई। विजय नगर की तत्कालीन महारानी अलमेलम्मा हार के बाद एकांतवास में थी लेकिन उनके पास काफी सोने चांदी और हीरे जवाहरात थे।

कहा जाता है वाडियार ने महारानी के पास दूत भेजकर संदेशा भिजवाया कि उनके गहने अब वाडिया साम्राज्य की शाही संपत्ति का हिस्सा है इसलिए उन्हें दे दें। लेकिन महारानी अलमेलम्मा ने गहने देने से इनकार कर दिया। तब वाडियार की शाही सेना ने जबरन खजाने पर कब्जा करने की कोशिश की।

इससे दुखी होकर अलमेलम्मा ने श्राप दिया था कि जिस तरह तुम लोगों ने मेरा घर उजाड़ा है उसी तरह तुम्हारा राजवंश संतान विहीन हो जाए और इस वंश की गोद हमेशा सूनी रहे। बताया जाता है कि श्राप देने के बाद अलमेलम्मा ने कावेरी नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली।

श्राप लगने के बाद महल में अलमेलम्मा की मूर्ति देवी के रूप में स्थापित की गई। श्राप से मुक्ति पाने के लिए रोज पूजा की जाने लगी। लेकिन इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ा। तत्कालीन वाडियार राजा के इकलौते बेटे की मौत हो गई।तब से हर एक पीढ़ी बाद मैसूर के राज परिवार को उत्तराधिकारी के रूप में किसी को गोद लेना पड़ता है। लेकिन लगता है अब अलमेलम्मा खुश हो गई है और उन्होंने श्राप से मुक्ति दे दी है तभी राजकुमारी को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है।

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