भूतों के होने का सबसे अच्छा सबूत क्या है? जानिए सच

मुझे भूत प्रेत, चुड़ैल( महिला भूत) आदि देखने का काफ़ी अनुभव है। पर मैं अक्सर इसका उल्लेख इसलिए नहीं करता कि मैं एक शिक्षक हूँ और मेरा उद्देश्य अंधविश्वास को बढ़ावा देना कदापि नहीं है पर क्या करूँ मैने बहुत सी रहस्यमयी घटनाओं का समय समय पर अनुभव किया है। तो जब इससे सम्बंधित मुझसे कोई प्रश्न पूछा जाता है तो मैं स्वयं को रोक नहीं पाता और उत्तर देता हूँ जैसा मैने अनुभव किया है।

बात सन 1992-93 के आसपास की है। हमारे नाना जी के यहाँ एक नौकर रहते थे। उनका नाम तो था करीम उल्लाह पर लोग उन्हे कमुल्ला कहा करते थे। कमुल्ला की उस समय उम्र 92-94 के आसपास बतायी जाती थी। उनके बारे में कहा जाता था कि कि इनके कोई लड़का नहीं था। एक लड़की थी उसकी शादी कर चुके थे तथा उसकी मृत्यु हो चुकी थी। कमुल्ला देहाती छाप के थे परन्तु इतनी आयु में भी दौड़ लगाया करते थे। मैं उस समय बहुत कम आयु का था परन्तु मैं समझ नहीं पाता था कि 94 वर्ष की आयु में कमुल्ला दौड़ कैसे रहे हैं और अक्सर नवयुवकों के साथ दौड़ा करते थे और दौड़ में उन्हें हरा दिया करते थे। मैने यह प्रश्न कई बार ननिहालियों से भी पूछा पर उन लोगों ने यही कहा कि पुराने समय के खाए पिए हैं इसलिए ।

कमुल्ला अक्सर रात में हमारे मामा जी की बाग़ की रखवाली किया करते थे तथा बाग में रात के समय घटने वाली विचित्र घटनाओं के विषय में भी बात किया करते थे। मेरे मन में विचित्र घटनाओं को जानने देखने की बहुत उत्सुकता बनी रहती थी परन्तु घर के बड़े मुझे आज्ञा नहीं देते थे। एक दिन मैने नाना नानी से ज़िद पकड़ ली कि मुझे भी बाग़ जाना है पेड़ों व फलों को देखना है। नानी बोलीं कि दिन में घूम फिर आ पर मैने कहा मैं तो कमुल्ला दादू के साथ ही जाना चाहिता हूँ । पर नानी बोलीं बेटा यह दिसंबर का महीना चल रहा है कड़ाके की ठंड पड़ रही है तेरा जाना मुनासिब नहीं ।अगर ज़्यादा ज़िद करेगा तो अभी तेरे पापा को काॅल करती हूँ । उस समय लैंडलाइन काॅल बुक किए जाने वाले फ़ोन हुआ करते थे। मैं पापा का नाम सुनते ही डर गया। पर नाना जी ने कहा करीम ज़िम्मेदार आदमी है इसके साथ भेज दो न और करीम से कहो अंधेरा होने से पहले इसे अपने साथ यहाँ पहुंचा दे।

नानी ने थोड़ा बहुत मना किया पर नाना जी के कहने पर तैयार हो गयीं और कहा इसे हर हालत में शाम की नमाज़ होने से पहले यहाँ पहुंचा देना और तुम बाद में बाग़ चले जाना। कमुल्ला मुझे लेकर पैदल बाग़ चले। लगभग ढाई किलोमीटर चलने में मेरी हालत पस्त हो गयी पर कमुल्ला पर कोई असर नहीं । अब 35 बीघा में फैला बाग़ मैने घूमा तो मेरी रही सही हिम्मत भी जवाब दे गयी। अब कमुल्ला बोले घर वापस चलो मैं ने कहा मेरे जिस्म में अब जान नहीं कि ऊबड़खाबड रास्ते पर इतना पैदल चल सकूँ। मैं रोती सूरत बना कर वहीं पेड़ के सहारे बाग में ज़मीन पर ही लेट गया। अब कमुल्ला बहुत ज़ोर से दहाड़े- ” पागल हो गया है क्या! बेवक़ूफ़! साँप बिच्छू से कटवाएगा क्या ख़ुद को। चल उठ! बहुत ज़िद कर रहा था बाग़ घूमने की••••” मैं बहुत मुश्किल से खड़ा हुआ तो कमुल्ला कुछ नर्मी से बोले- ” अच्छा बेटा एसा कर ले तू थोड़ी देर आराम कर ले। पास में बाग में मेरी कुटिया है वहाँ कम्बल ओढ़कर थोड़ी देर लेट जा फिर जल्दी से घर पहुंचना है वहाँ सब परेशान हो रहे होंगे क्योंकि आधे घण्टे में अंधेरा होने वाला है और हमें जल्दी पहुंचना होगा।

मुझे यह प्रस्ताव अच्छा लगा मैने सोचा क्यों न थोड़ी देर आराम कर लिया जाए ।मैं फ़ौरन तैयार हो गया और कुटिया मैं मैने देखा कि एक घड़े में पानी, लकड़ी के स्टूल पर लालटेन वा माचिस की तीन चार डिब्बियां रखी है। कोने में एक प्लेट में कुछ फल व चाकू रखा था। मुझे थोड़ी भूख भी लग गयी थी तो मैने कुछ फल खा लिए और पानी पिया। ज़मीन पर पुआल बिछा था और उसके ऊपर बिस्तर और तकिया । मुझे और कुछ सोचने की ज़रूरत नहीं महसूस हुई ।चुपचाप बिस्तर पर लेटा और कम्बल ओढ़कर आँखें मूंद लीं। अभी आँख लगी ही थी कि दादू के झिंझोड़ने के एहसास से आँख मलता हुआ जम्हाइयां लेता हुआ अनमना कर उठा तो उम्मीद के खिलाफ दादू बड़े प्यार से बोले बेटा सोते से मैं किसी को इस तरह से जगाना अच्छा नहीं समझता पर मजबूरी है घर पर सब परेशान हो रहे होंगे । अब तो काफ़ी अंधेरा हो चुका है घर चलो। मैं अब झटपट उठ बैठा। वाक़यी अंधेरा हो चुका था।

कमुल्ला दादू ने टार्च हाथ में ली व कुटिया को ताला लगाया। और हमलोग वापस चलने लगे। अभी 40- 50 क़दम ही चले होंगे कि हल्की बूंदाबांदी होने लगी। हालांकि मैं मफलर और टोपा पहने था फिर भी उन्होंने अपना गमछा मेरे कानों और सर पर बांध दिया। मुझे रात के अंधेरे में बहुत डर लगने लगा था। और मैं मन ही मन समय को कोस रहा था कि बाग़ में कोई भूत प्रेत तो दिखाई दिया नहीं पर बेवजह इतनी परैड करनी पड़ी। कमुल्ला दादू मेरे डर को भांप चुके थे। वह मुझसे बहुत प्यार से बोल रहे । वह बोले-” देख बेटा! अगर तू डर रहा है तो डरिए तो बिलकुल मत! इस रास्ते से मेरा रोज़ का आना जाना है। बदमाश गुण्डों के लिए तो मैं अकेला ही काफ़ी हूँ । और बार बार टार्च की रौशनी दिखा कर कहते-” दो किलोमीटर दूर का तो दिख रहा है तुझे अंधेरा लग रहा है क्या?”

बातें करते हुए हमलोग चलते रहे और हमें तब अंदाजा हुआ जब बूंदाबांदी बारिश का रूप ले चुकी थी। अब कच्चे रास्ते पर चलना सम्भव न था। अबतक हमलोग लगभग 500-600 क़दम चल चुके थे। और घर अभी भी बहुत दूर था। हमने वहाँ कुछ झाड़ियों के बीच रुकने का निर्णय लिया। अभी 10-15 मिनट ही रुके होंगे कि दादू ने कुछ सोचकर कहा कि कहीं रास्ते में और तेज़ बारिश हो गयी तो क्या होगा अभी तो फिर भी ग़नीमत है। बेटा एसा करते हैं कि वापस कुटिया में ही लौट जाते हैं क्योंकि हम ज़्यादा दूर नहीं आए हैं । मैं कुछ आग वगैरह जला दूंगा। तुम रात में वहीं आराम करना सुबह हम लोग घर चलेंगे। हमलोग वापस कुटिया की ओर लौटने लगे। अभी हमें चले हुए 300-400 क़दम ही हुए होंगे कि अब बारिश पूरी तरह रुक चुकी थी। मैने दोबारा दादू की ओर देखा और पूछा अब क्या करना है दादू अब तो बारिश रुक चुकी है पर दादू बोले-” बेटा अब कुछ नहीं करना अब तो आराम करना है। मेरी तो कोई बात नहीं पर तू बहुत थक गया है अब आराम कर लेना। और घर की चिंता न करना तुझे कोई डांट नहीं पड़ेगी। अब थोड़ी देर बाद हम कुटिया पहुंच चुके थे। मैं इस आने जाने में काफ़ी थक चुका था।

कमुल्ला दादू ने कोने में पड़ी लकड़ियां सुलगा कर आग जलायी। मैने और दादू ने अपने हाथ पैर तापे। उन्होंने उसी आग पर साथ लायी रोटियां और सब्ज़ी गरम की। मुझे बिलकुल भूख नहीं थी पर मैने थोड़ा गरम गरम खाना खाया जो मुझे बहुत अच्छा लगा। फिर हम दोनों ने कुल्लड़ में गरम गरम चाय भी पी। अब दादू ने कहा बेटा अब तू सोने की तैयारी कर। मैने कहा और आप तो वह बोले -” बेटा मेरी ड्यूटी बाग की रखवाली है सोना नहीं और यहाँ तो आकर मैं थोड़ा बहुत आराम करता हूँ । और हाँ आज मैं यहीं इसी कुटिया में रुकूंगा क्योंकि तू यहाँ ठहरा है।” मैं सोने के लिए लेटने लगा तो कमुल्ला दादू ने कहा बेटा सोने से पहले एक ज़रूरी बात सुन ले। पहली यह कि इस लालटेन को बुझाना क़तई मत वरन् अनर्थ हो जाएगा। और दूसरी बात यह कि अगर बीच रात में कभी तेरी आँख खुले और तुझे कुछ भी सुनाई दे तो कुछ भी बोलना मत बल्कि सोने की कोशिश करना और अगर न सो सके तो शांत रहना और इस कम्बल को हरगिज़ मुंह पर से न हटाना वरन् बहुत अनर्थ हो सकता है। बस कुछ ही घंटों की बात है सुबह होते ही हमलोग यहाँ से चल देंगे।

मैने उनको भरोसा दिलाया और मन में सोचा यहाँ जंगल में सियार आदि की आवाज़ आती होगी इसलिए दादू एसा कह रहे हैं कि कहीं मैं डर न जाऊँ।मैने कहा कोई नहीं कमुल्ला दादू आप निश्चिन्त रहिए आप तो यहीं हैं न मैं भला क्यों डरने लगा। मैं जब बिस्तर पर लेटने लगा तो मैने देखा कि दादू लकड़ी से बिस्तर के चारों ओर एक गोलाकार घेरा बना रहे हैं । मैने पूछा यह क्या कर रहे हैं वह बोले तह एक टोटका है जिससे तेरे पास सोते में कोई आ न सके। तह सुनकर मैं हँस दिया और बोला-” आप भी क्या दादू! आपके होते यहाँ कौन आ सकता है?” उसके बाद दादू ने मुझे शुभ रात्रि बोला और मैं थोड़ी ही देर में नींद की वादियों में खो गया।

पता नहीं रात के किसी पहर शायद शोर शराबे से मेरी आँख खुली। एसा मालूम देता था कि कुटिया में 15-20 लोग जमा हैं और ज़बरदस्त ऊधम काट रहे हैं । मैं चौकन्ना हो गया पर दादू के बताए अनुसार शांत रहा। उनमें से 8-10 लोगों की आवाज़ आ रही थी- ” मानस गंध मानस गंध मानस गंध! मैने कम्बल का थोड़ा सा कोना ऊपर उठाया तो मेरी रूह कांप गयी। चार पांच अद्भुत प्राणियों के चेहरे लालटेन की रौशनी में बिलकुल साफदिखायी दे रहे थे। एसा मालूम देता था जैसे बिलकुल अंधेरा भी होता तो इन्हें देखा जा सकता था। वह दादू से झगड़ रहे थे वे कह रहे थे- ” ओये घसीटे! आज तू हमें धोका दे गया। कुएं पर पलटन तोरा इंतिजार करती रई मानस गंध मानस गंध मानस गंध!” दादू की आवाज़ आई- ” बेताल तू इत्ता न समझ सकौ जौ छोरा पड़ौ तौ रखवाली करौ।” उनमें से दो तीन मेरी ओर बढने को हुए तो दादू बोले – ” ओये टिपरौ! रत्ती देख लेयो जलन मांस लोथड़ा तोड़ा जै भस्म हो जावां” मैं यह सब वार्तालाप दम साधे सुनता रहा मेरे समझ में कुछ खास न आया बस इतना समझा कि दादू ने उन सबको मेरे पास बढ़ने से रोका।

फिर दस एक ओर और दस दूसरी ओर बैठ गए और और शतरंज की भांति कोई खानों वाला बोर्ड निकालकर बोले- “आजा घसीटे! जइयूं मइयों ता, नोपा तूना बेशी ओक मां!” मेरे कुछ पलड़े न पड़ा। मैंने देखा वह हाथी के दांत जैसी कोई वस्तु दाँतो के दोनों साइड अपने साथियों के लगा रहे थे जिससे उनका चेहरा और अधिक डरावना बनता जा रहा था। दादू को उन्होंने बीच में बिठाया और उनमें से एक ने दादू के बाल पकड़ कर ज़ोर से नीचे की ओर खींचा एसा मालूम दिया कि दादू के बालों के साथ सामने का चेहरा खाल समेत खिंचकर आ गया। अब क्या देखता हूँ कि दादू के स्थान पर हूबहू दादू की शक्ल का बीस इक्कीस वर्षीय नौजवान बैठा है जिसके मुख में दोनों ओर हाथी जैसै दांत हैं इतना कुछ देख लेने के बाद आगे मुझसे न कुछ देखा गया और न ही कुछ सुना गया।

जैसे तैसे सुबह हुई। हम घर के लिए रवाना हुए न रास्ते में कुछ कमुल्ला दादू बोले और न ही मैने कोई प्रश्न किया। घर पहुंचने के बाद मुझे बहुत तेज़ बुखार आया और मैं महीनों बिस्तर पर पड़ा रहा। काफ़ी इलाज के बाद मुझे ठीक होने में लगभग छः महीने लगे। इस बीच कमुल्ला दादू की मृत्यु भी हो गयी। और उनकी मृत्यु के साथ यह राज़ भी दफन हो गया। जब जब मैने अपने माता पिता व बहन भाइयों से इस घटना का उल्लेख किया वे यही कहते रहे कि सोते में मैने कोई भयानक सपना देखा होगा उसका दिमाग पर असर हो गया होगा। आपलोग कृपया टिप्पणी देकर अवश्य बताएं आखिर वह सब था क्या?????

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