भारत में प्राइवेटाइजेशन जारी, ट्रैन के बाद अब स्टेशनों की बारी

भारत की धड़कन कही जाने वाली रेल विभाग, अब धीरे धीरे प्राइवेट होने लगी है। सर्वप्रथम ट्रैन को प्राइवेट किया गया जिसका किराया, सीट के कमी के अनुसार बढ़ता जाता है। किराया 1100 से सुरु होता है 5,000 तक भी जा सकता है। इस ओर सवाल आता है कि, यह सुविधा मध्यम और जो मध्यम वर्ग के नीचे आते है, वो सब कैसे सफर कैसे करेंगे? यदि भारत की प्रति व्यक्ति आय उच्च स्तर की होती इतना किराया मुनासिब है, इतना पैसा अगर होता तो मज़दूर अपने राज्य, परिवार को छोड़ कर पलायन न करता।

साफ तोरपर देखा जा सकता की भविष्य में ट्रैन की सुविधा,  निम्न वर्ग से वंचित हो सकता है। सरकार की तरफ से यह कहा जा रहा कि “प्राइवेट कंपनियों की क्षमता अच्छी होती है जिसकी वजह से भारत में होने वाली रेल संबंधित सारी समस्याओ का हल हो सकता है, और ट्रैन के आवागमन में होने वाली बिलंब में कमी आएगी”। सरकार का द्रष्टिकोण स्पष्ट है की वह भारत में अच्छी रेल सुविधा प्रदान करना चाहती है।

आप अगर थोड़ा हट के सोचे की भारत के धड़कन, अगर किसी अन्य के नियंत्रित की जाएगी तो भारत में व्यवस्था में फर्क आ जाएगा। भारत के अन्य ऐसे बहुत से मंत्रालय या व्यवस्थाएं है जिनकी धन की पूर्ति, रेल मंत्रालय द्वारा की जाती है। जिस प्रकार सिक्के के दो पहलू होते है वेसे ही इस फैसले के भी दो पहलू हो सकते है जो आने वाले समय में परिणाम के रूप में सामने आएंगे।

आशा कि जा रही है जिस जिज्ञासा के साथ यह निर्णय लिया गया है वो पूरा हो, और भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी के साथ बढ़े। भारत की सरकार को नोकरियो के विषय में भी अवश्य सोचना चाहिए, भारत में बेरोजगारी चरम सीमा पर है जिसका हल निकलना अति आवश्यक है.

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