बहुत ही बुरी किस्म की नकसीर होती है, ईश्वर इससे बचाए रखें

यह बहुत ही भिन्न किस्म की नक्सीर होती है, ईश्वर इससे बचाए रखें। इसका खून किसी प्रकार बन्द होने में ही नहीं आता, वैद्य तो इलाज करते-करते थक जाता है, किंतु खून बराबर जारी रहता है और देखते हैं रोगी सबको बिलखता छोड़कर सुर-पुर सिंध जाता है। इस बीमारी के लिए हमें हकीम शाह नागपुरी ने अपनी विशेष खानदानी नुसखा प्रस्तुत किया है, जिसको अभी तक सिवाय हकीम के कुतुम्बालनियों के बारे में और कोई नहीं जानता और मैं भी अपने स्वाध्याय के आधार पर यह कह सकता हूं कि यह प्रयोग सम्भव है तो अभी तक किसी वैद्यक पत्र या पुस्तक के संस्करणों की शोभा नहीं बनी, बल्कि हकीम साहिब के खानदान में ही चली गई है।

प्रयोग- सफेद कांच के बारे में लोहे के हममदस्ते में कूटे और फिर लोहे की कड़ाई में डालकर लोंहे के हथोंडे से विशुद्ध सिरका मिलाकर खरल करते रहे, यहाँ तक कि सूक्ष्म लेप तैयार हो जावे। फिर रोगी के तालू के बाल मुदंवाकर ऊपर लेप कर दें और मलमल के साफ कपड़े को सिरके में तर करके लेप के ऊपर रखें। जब कपड़ा खुश्क होने लगे तो और सिरका डालकर फिर उम्र बढ़ने के बाद इस प्रकार कभी जारी न होगा।

नोट- यह प्रयोग उस समय अक्सीर सिद्ध होता है, जब उस नासिक मार्ग से रक्त बहुत अधिकता से बहता हो, और यदि नाक को बन्द कर दिया जावे तो मुख द्वारा सेरो खून निकलने लगे।

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