गंगा में स्नान करने के बाद कितने लोगों को भ्रम हो जाता है कि पाप धुल गए हैं? पाप क्या होते हैं और धुलते कैसे हैं?
पाप का अर्थ हैं जो कर्म हमने किए वो कर्म जब कर्म न रहकर बोझ बनतें है अथवा नुकसान के खाते में आते तो पाप बनते हैं | जैसे किसी ने डाका डाला, तो जरुर अनेको का नुकसान किया हैं | अब उस डाके में कितने लोगो की आह निकली, कितने धन की लूट हुई, व कितने लोग को तकलीफे हुई, सबका बोझ उस डाके डालने वाले पर चढ़ता हैं | यही पाप बनता हैं |
हम सब यंहा पर सुख और दुःख के खेल में हैं | जो दुसरो के ख़ुशी को छीनना हनन करना, ये भी डाका है | बाबा कहते है इस संसार में जो भी कर्म होते है वो सब पाप के खाते में ही काउंट होते हैं | क्योंकि विक्रमी सम्वत चला हुआ हैं | इस समय सब विकर्म ही हमसे होते है यदि अवेयर नहीं है |
अब पापी तो पूरी दुनिया हैं | एक दो को दुःख देंना, एक दो को आहात करना सब पाप ही पाप हैं | सब पाप तो हो जातें है परन्तु इन सब पापो से हम मुक्त कैसे बने? क्या पानी की नदी हमारे पापो को धो सकती हैं? पानी भला कैसे पाप नाश कर सकता हैं | वो हिमालय से आता हैं | हिमालय में बदलो से बरसकर बर्फ बन जाता हैं | बादल समुन्द्र से पानी लेते हैं | और समुन्द्र से सूर्य पानी अवशोषित करता हैं | तो यदि गंगा पतित पावन है तो जरुर समुन्द्र भी पतित पावन होना चहिये |
सागर क्यों, सूर्य भी पतित पावन होना चहिये | असल में गंगा का प्रथम उद्गम तो सूर्य द्वारा होता हैं | सूर्य ही नहीं होता तो समुन्द्र से पानी कौन खिचता | तो सूर्य पतित पावन होना चहिये !
परन्तु सूर्य कौन है? सूर्य भी दो हैं | एक ज्ञान सूर्य की महिमा, एक है इस वाले सूर्य की महिमा | इस वाले सूर्य की क्या महिमा, हमें गर्मी में जलाता है | ये सूर्य तो एक बत्ती की तरह है जो इस प्रकृति के कार्यप्रणाली को सुचारू रखने के लिए बनी हुई हैं |
इस सूर्य की कोई महिमा नहीं है | असल में ज्ञान सूर्य परमात्मा निराकार शिव हैं | वो ही अकेले आकर ज्ञान गंगा परमधाम से लाकर पतितो को पावन बनाते हैं | वो कलयुग अंत में आते जब घोर रात्री होती हैं | वो परमधाम से आकर जन्म नहीं लेते बल्कि दुसरे के तन में आकर ज्ञान गंगा बहाते है | जिनके तन में आते उनका नाम पढ़ता ब्रम्हा |
और हम शिवरात्री मनाते हैं, कभी गौर करना हम और सबका जन्म मनाते हैं, शिव की रात्री मनाते है | क्यों? क्योंकि जब शिव आतें है तब घोर कलयुग होता है | दूसरा जब शिव आतें है तो जन्म नहीं लेते बल्कि अवतरण होतें है | अब दोनों पॉइंट हम समज सकते है |
तीसरा पॉइंट है ये एक अनादी ड्रामा है | अर्थात जिसका न आदि है न अंत हैं | ये निरंतर चलता ही रहता हैं | जैसे एक दिन में २४ घंटे है जैसे ही २४ घंटे पुरे हुए, तो वो सुई बंद नहीं हो जाती बल्कि नया दिन शुरू हो जाता हैं | इसी प्रकार इस वर्ल्ड ड्रामा की आयु ५००० वर्ष हैं | जब इस ड्रामा की आयु पूरी हो जाती हैं, तो परिवर्तन हो जाता नया दिन |
और नया दिन भी ठीक वैसे ही रिपीट होता जैसे पिछला दिन रिपीट हुआ हैं | ड्रामा हुबुहू चलता हैं | कुछ भी चेंज अगले दिन भी नहीं होती है | अर्थात ५००० वर्ष जब पुरे हो अगला ५००० वर्ष का सीन चलता है तो जो सीन पिछले ५००० वर्ष में हुई थी वोही अगले में भी होगी | जैसे फिल्म, बार बार देखो पर एक ही तरह होगी |
तो जो परमात्मा शिव ने प्रेक्टिकल में किया था वो जाकर आगे भक्ति मार्ग में लिखा जायेगा | ज्ञान गंगा की जगह गंगा नदी को पतित पावनी समजा जायेगा | क्योंकि भगवान कहते भक्ति है अँधियारा मार्ग | और भक्ति हम करते ही हैं भगवान को पाने के लिए | परन्तु भक्ति कर कर के निचे ही उतरे हैं | पावन कोई बना नहीं | भारतवासी इस समय पतित हैं |
पावन कौन बनाये? एक परमात्मा शिव ही पतित पावन हैं | अपने को आत्मा समज कर उस एक बाप को ही याद करने से सर्व पाप नाश हो पतित से पावन बन जायेगे | उसी की याद से सारी कीचड़ी आत्मा से निकल आत्मा शुद्ध हो जाएगी | क्योंकि ये याद अग्नि का कार्य करती हैं | जिसे राजयोग कहतें है |