मुरूगन और परशुराम में कौन श्रेष्ठ योद्धा थे? जानिए

हिन्दू धर्म के आधारभूत ग्रन्थों में बहुमान्य पुराणानुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो रूप ब्रह्मा और शिव को माना जाता है। ब्रह्मा को जहाँ विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है, वहीं शिव को संहारक माना गया है। मूलतः विष्णु और शिव तथा ब्रह्मा भी एक ही हैं यह मान्यता भी बहुशः स्वीकृत रही है। न्याय को प्रश्रय, अन्याय के विनाश तथा जीव (मानव) को परिस्थिति के अनुसार उचित मार्ग-ग्रहण के निर्देश हेतु विभिन्न रूपों में अवतार ग्रहण करनेवाले के रूप में विष्णु मान्य रहे हैं।

महाभारत की कहानी पढ़ी या सुनी जरूर होगी। महाभारत के इतिहास का एक शक्तिशाली और खतरनाक युद्ध माना जाता है। महाभारत का युद्ध आज से लगभग 7000 साल पहले हुआ था ऐसा माना जाता है। जिसमें लाखों योद्धाओं ने भाग लिया था और वीरगति को प्राप्त हो गए थे। लेकिन दोस्तों आज हम आप लोगों को महाभारत काल के एक ऐसे शक्तिशाली योद्धा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने भगवान विष्णु के अवतार परशुराम को भी हरा दिया था।

दोस्तों यह बात तो आप सभी जानते होंगे कि महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ था, जो पांडव और कौरवों के बीच युद्ध हुआ था और इस युद्ध में पांडवों ने कौरवों को मारकर युद्ध में जीत हासिल की थी। दोस्तों आपकी जानकारी के लिए बता दें महाभारत का वह शक्तिशाली योद्धा जिसने भगवान विष्णु के अवतार परशुराम को हराया था वह कोई और नहीं बल्कि भीष्म पितामह थे। दोस्तों भीष्म पितामह माता गंगा और शांतनु के बेटे माने जाते है।

दोस्तों बता दे भीष्म पितामह का असली नाम देवव्रत था। भीष्म पितामह एक ऐसे शक्तिशाली और पराक्रमी योद्धा थे, जिन्हें उस समय युद्ध में हराने की शक्ति किसी भी योद्धा में नहीं थी। दोस्तों बता दे भीष्म पितामह के गुरु भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम माने जाते हैं। दोस्तों भीष्मा पितामह उस समय के सर्वश्रेष्ठ और महान धनुर्धर थे, जिन्हें युद्ध में हराना किसी के बस की बात नहीं थी। बता दे भीष्म पितामह को स्वयं उसके गुरु परशुराम ही युद्ध में हरा सकते थे।

लेकिन दोस्तों आपको जानकर हैरानी होगी कि जब एक बार भगवान परशुराम और भीष्म पितामह के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ था, तो भगवान परशुराम की हार हुई थी। दोस्तों कहा जाता है कि इस युद्ध के विनाश को देखते हुए भगवान शंकर ने स्वयं इस युद्ध को रोकने के लिए धरती पर प्रकट हुए थे।

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