भारत के क्रिकेट इतिहास का सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर आपको कौन लगा और क्यों? जानिए

क्रिकेट में विकेटकीपर का काम शायद सबसे कठिन होता है. उसे बेहद एकाग्रता से पूरे गेम पर नजर रखनी होती है. टीम में विकेटकीपर की पोजिशन की सबसे ज्यादा मांग होती, लेकिन विकेटकीपर होने के लिए फिटनेस, कंसन्ट्रेशन और फुर्ती की जरूरत होती है. भारत इस मामले में भाग्यशाली रहा है कि उसके पास हर फील्ड में अच्छे खिलाड़ी रहे हैं, विकेटकीपर भी इसका अपवाद नहीं है. एक समय ऐसा था जब चयनकर्ता, केवल भारत में ही नहीं पूरी दुनिया विशेषज्ञ विकेटकीपर का चयन किया करते थे. बेशक ये विकेटकीपर बल्ले से बहुत अच्छा परफोर्म न कर पाएं, लेकिन अब समय बदल गया है. टीम में अपनी जगह बनाए रखने के लिए विकेट कीपर को अपने बल्ले से भी बेहतर परफोर्म करना होता है. जनार्दन नेवल भारत के पहले विकेटकीपर थे, जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में पहली गेंद का सामना किया था.

आइए एक नजर डालते हैं भारतीय क्रिकेट के अब तक के सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपरों पर:

नरेन तम्हाणे

नरेन का जन्म 1931 में मुंबई में हुआ था. 22 साल की उम्र में उन्होंने फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेलना शुरू किया. 1955 में पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने अपना डेब्यू मैच खेला. उन्होंने भारत के लिए 21 टेस्ट मैच खेले. इस प्रक्रिया में नरेन ने विकेटकीपर के रूप में 50 से अधिक खिलाड़ियों को आउट किया. 35 कैच और 16 स्टंपिंग कर उन्होंने कुल 51 खिलाड़ियों को अपना शिकार बनाया. स्टंप आउट करने का नरेन का अपना खास स्टाइल था, वह हमेशा केवल एक बेल गिराते थे. लेकिन बल्ले से नरेन कुछ खास नहीं कर पाए. दूसरे टेस्ट मैच में 54 नाबाद उनका सर्वश्रेष्ठ स्कोर था. 1060 में उन्होंने क्रिकेट से संन्यास ले लिया. बाद में कई सालों तक वह चयनकर्ता भी रहे.

दूसरे टेस्ट मैच में 54 नाबाद नरेन त्म्हाणे का सर्वश्रेष्ठ स्कोर था (FILE PHOTO)

फारुख इंजीनियर

फारुख इंजीनियर को भारतीय क्रिकेट का पोस्टर ब्वाय कहा जाता था. वह एक आक्रामक बल्लेबाज और चपल विकेटकीपर थे. वह अपनी भारी डील डौल के बावजूद अक्सर बल्लेबाजों को चकमा देने में सफल रहते थे. स्टंप्स के पीछे उनकी चपलता देखने लायक थी. वह उस समय भारतीय टीम के विकेटकीपर थे, जब बेदी, प्रसन्ना, चंद्रशेखर और वेंकटराघवन जैसे लीजेंडरी स्पिनर टीम में थे. 1967-68 में इंजीनियर ने विदेशी दौर में पहली टेस्ट सीरीज जीतने में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने विकेट के पीछे तो टीम के लिए योगदान दिया ही, बल्ले से भी उपयोगी रन बनाए. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद इंजीनियर काउंटी क्रिकेट में लंकाशायर की तरफ से खेलते रहे. लंकाशायर में उनके साथ ब्रायन स्टैथम ने कहा था कि यदि उनके विकेटकीपर इंजीनियर होते तो वह अपनी टीम के लिए कहीं अधिक विकेट लेते. इंजीनियर ने भारत के लिए 46 टेस्ट मैच खेले, जिसमें उन्होंने 66 कैच और 16 स्टंप्स किए.

1967-68 में इंजीनियर ने विदेशी दौर में पहली टेस्ट सीरीज जीतने में अहम भूमिका निभाई

सैय्यद किरमानी

सैय्यद किरमानी खिलाड़ियों के बीच किरी नाम से लोकप्रिय थे. भारत में जितने विकेटकीपर हुए उनमें किरमानी को श्रेष्ठ माना जाता है. फारुख इंजीनियर के बाद किरमानी ने विकेटकीपिंग का जिम्मा संभाला. किरमानी ने 1976 में न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट में डेब्यू किया. अपने दूसरे ही टेस्ट मैच में किरमानी ने एक पारी में छह खिलाड़ियों को आउट कर विश्व रिकॉर्ड की बराबरी की. बेहद वह विकेट के पीछ हमेशा शांत, योग्य और चपल रहे. उन्हें फारुख इंजीनियर का सबसे उपयुक्त रिप्लेसमेंट माना जाता है. 1979-80 में पाकिस्तान के खिलाफ श्रंखला में किरमानी ने नरेन तम्हाणे के एक सीरीज में 19 डिसमिसल के रिकॉर्ड की बराबरी की. 1983 के विश्व कप में किरमानी सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर घोषित किये गये. लेकिन 1986 में वल्र्ड सीरीज के दौरान पैर में चोट ने उनके करियर को समाप्त कर दिया. दस साल के अपने करियर में किरमानी ने भारत के लिए 88 टेस्ट और 49वन डे खेले. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 234 खिलाड़ियों को पवेलियन की राह दिखाई. टेस्ट में 198 और वन डे में 36 खिलाड़ी उनके द्वारा स्टंप या कैच आउट किये गये.

अपने दूसरे ही टेस्ट मैच में किरमानी ने एक पारी में छह खिलाड़ियों को आउट कर विश्व रिकॉर्ड की बराबरी की

किरण मोरे

छोटे कद के किरण मोरे ऐसे विकेटकीपर थे जिन्हें चुनौतियां हमेशा आकर्षित करती थीं. सैय्यद किरमानी के बाद मोरे भारतीय टीम के विकेटकीपर बने और सात साल तक उन्होंने यह जिम्मेदारी निभाई. वह विकेट के पीछे बहुत सुरक्षित अंदाज में खड़े होते थे. आंकड़ों से ज्यादा लोग मोरे को विकेट के पीछे ”शोर” मचाने के लिए याद करते हैं. 1992 के विश्व कप में पाकिस्तान के खिलाफ जब जावेद मियांदाद बल्लेबाजी कर रहे थे तो मोरे लगातार अपील किये जा रहे थे. पिच पर मियांदाद ने उछल उछल कर मोरे की नकल की थी. यह घटना आज भी क्रिकेट इतिहास में याद की जाती है. मोरे के करियर में तेज गेंदबाज के रूप में उस समय कपिल देव, मनोज प्रभाकर और जवागल श्रीनाथ मौजूद थे. अपने 130 शिकारों में से किरण मोरे के 81 शिकार इन्हीं तेज गेंदबाजों के सामने हुए.

आंकड़ों से ज्यादा लोग मोरे को विकेट के पीछे ”शोर” मचाने के लिए याद करते हैं

नयन मोंगिया

किरण मोरे के बाद टीम में नयन मोंगिया का विकेट कीपर के रूप में प्रवेश हुआ. स्पिनर्स के सामने भारत के बेहतरीन विकेटकीपर रहे नयन मोंगिया. मोंगिया ने अनिल कुंबले, हरभजन सिंह और अन्य स्पिनर्स के सामने कीपिंग की और गेंदबाजों के विकेट लेने में अहम रोल निभाया. नयन मोंगिया एक अच्छे बल्लेबाज भी रहे. अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में मोंगिया में 2500 रन बनाए. वन डे में भी मोंगिया एक बेहतर पिंच हिटर रहे. उन्होंने ओपनर और मिडिल ऑर्डर में खेले. मोंगिया पहले ऐसे विकेटकीपर बने, जिन्होंने टेस्ट और वन डे में 100 शिकार किए.

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