फिल्म में फ्लॉप चिराग पासवान कैसे बन गए राजनीती के सुपरस्टार

जब चिराग सिनेमा की दुनिया छोड़कर..सियासत की दुनिया में आए थे..तो पिता ने विरासत की जमीन तैयार करके..अपनी पार्टी के भविष्य और आगे होने वाले राजनीतिक फैसलों पर एक तरह से मुहर लगा दी थी..पहले मुंबई की दुनिया और फिर दिल्ली की कहानी..चिराग पासवान के लिए सुदंर सबक से लेकर शानदार करियर की गवाही रही है…

रामविलास पासवान जानते थे कि…फिल्मों की दुनिया में फेल हो चुके..चिराग पासवान को शुरूआती दिनों में राजनीति में कोई दिक्कत नहीं होगी..बिहार की राजनीति को घुंट बनाकर सालों तक पीने वाले रामविलास पासवान..पॉलिटिक्ल फैसले को मिनटों में भांपकर हां या ना कह देते थे..लेकिन तब और अब में फर्क है..रामविलास पासवान इस दुनिया में नहीं हैं..ऐसे में अब चिराग के सामने पिता की बनी बनाई विरासत को बचाने और आगे बढाने की चुनौती है…चुनौता तो ये भी है कि..कैसे चिराग पासवान अपने सबसे बड़े फैसले को सफलता में बदलते हैं..

कहते हैं कि साल 2014 में..रामविलास पासवान की सियासत को मोदी की विचारधारा से मेल कराने और फिर चुनावी मैदान में..साथ उतरने की रणनीति चिराग पासवान ने ही बनाई थी..ये प्रयोग लोक जनशक्ति पार्टी के लिए शानदार प्रयोग रहा..चिराग का राजनीतिक कद पिता की नज़रों में बढ़ा…तो पार्टी के बाकी नेताओँ भी वाह-वाह कर उठे…बिहार के जमूई की जनता ने चिराग के नाम पर जमकर वोट बरसाए…बिहार एनडीए में इसी जीत ने चिराग के कद को पहले से ज्यादा बड़ा कर दिया..

दलित और पिछड़ों के लिए राजनीति शुरू करने वाले रामविलास पासवान ने..ढलती उम्र को महसूस कर लिया था..अपने बेटे चिराग को पहले ही पार्टी का अध्यक्ष बना दिया था..फिर छोटे-बड़े फैसले को चिराग अपने दम पर लेने लगे..पार्टी में टिकटों के बंटवारे से लेकर पार्टी के नेताओं में काम बांटने तक की जिम्मेदारी..रामविलास पासवान के रहते हुए भी चिराग ही संभालने लगे थे..अब चिराग को आगे की राहें अपने दम पर और अपनी सियासी समझ पर आगे बनानी है..जिसकी पहली कड़ी..बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में ही सबके सामने होगा..

उनकी ही लोक जनशक्ति पार्टी के कई नेता..कहते हैं कि..चिराग की शख्सियत को सिर्फ रामविलास पासवान के बेटे होने की बातों से ही नहीं आंका जा सकता है..चिराग पासवान के नेतृत्व को स्वीकार करने वाले नेताओं की जुबानी तो उनकी कहानी सुपरहिट है…वो चाहे युवा नेता बनकर दिलों पर राज करने की बात हो..या संगठन के मुखिया की बात हो या फिर मौके को भांपकर..तेजी से फैसले लेने की बात हो..

साल 1982 के अक्टूबर महीने में चिराग का जन्म हुआ..कंप्यूटर साइंस के साथ-साथ फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई करने को बाद..चिराग ने अपने पहले प्यार को सबसे पहले गले लगाया..2011 में एक्टिंग की दुनिया में हाथ आजमाया..सिनेमा में मौका भी मिला..चिराग की फिल्म मिले न मिलें हम पर्दे पर आई..फिल्म में चिराग के साथ कंगना रनौत थी..लेकिन इसे देखकर दर्शकों ने उतना प्यार नहीं दिया..जिसकी उम्मीद चिराग को पहले से थी..रामविलास पासवान के बेटे होने की बात को लेकर..इस फिल्म की चर्चा तो खूब हुई..लेकिन फायदा ना तो चिराग को मिला और ना ही फिल्म को..इसी के साथ चिराग पासवान का फिल्मी करियर उड़ान भरने से पहले ही किनारे पकड़ लिया..मुंबई को बाय-बाय कहकर चिराग दिल्ली आ गए…जहां से राजनीति की तैयार की गई जमीन उनके फैसले के इंतजार में थी…

सियासत नए संभावनाओं को तलाश कर स्थान बनाने वाली जगह होती है..चिराग पासवान ने इस संभावना को अच्छे से विस्तार देने का काम किया..लकजनशक्ति पार्टी तेजी से अलोकप्रिय हो रही थी..रामविलास पासवान यूपीए खेमे को छोड़कर जाना नहीं चाहते थे..कारण था धर्मनिरपेक्षता के नाम पर फैसले लेने में घबराहट..दूसरी तरफ रावविलास पासवान की विचारधारा को नरेंद्र मोदी की विचारधारा से मेल होना और एक साथ खड़े होकर चुनावी पटल पर दिखना मुश्किल लग रहा था..लेकिन इन सारी परिस्थितियों के बीच..चिराग ने इस काम को अच्छे से किया..दूसरी तरफ जिस दौर में चिराग पार्टी में आए थे..उनकी पार्टी से सांसदों की संख्या शून्य थी..लेकिन आगे वैक्लपिक राहे खुली हुई थी..अपनी सूझबूझ और मोदी लहर को रामविलास पासवान से ज्यादा चिराग देख और समझ रहे थे..यहीं से पार्टी की सियासत का रूख और राजनीतिक किस्मत दोनों को बदलने का फैसला चिराग ने खुद से लिया..इसका परिणाम भी पार्टी के लिए सुखद साबित हुआ..

सियासत का भी संयोग से जबरदस्त नाता होता है..बिहार में बीजेपी नीतीश कुमार के खिलाफ एक बड़ी तलाश में थी..नीतीश कुमार अपने राजनीतिक फलक को बड़ा करने के चक्कर में मोदी के खिलाफ जाकर बिहार में चुनाव लड़ना चाहते थे..नीतीश कुमार का यही फैसला उन्हें बीजेपी से अलग किया और रामविलास पासवान की पार्टी के लिए राहें खुल गई…चिराग की राजनीति गज़ब तरीके से चमकने लगी..

पार्टी के नेताओं की बोली बदलने लगी..एलजेपी के समर्थक कहने लगे कि..चिराग के ऐसे तेवर ही उसके राजनीतिक जेवर हैं..

चिराग पासवान का एक एनजीओ भी है..नाम है चिराग का रोजगार..कहा जाता है कि इस एनजीओ से बिहार के बेराजगार युवकों को रोजगार देने का काम किया जाता है..हालांकि ये किसी को नहीं मालूम कि..चिराग का एनजीओ किस तरह से लोगों के बीच अभी काम कर रहा है..अभी चिराग के राजनीतिक फैसलों से ये साफ नहीं है कि..वो अपने पिता के नक्शे कदम पर ही राजनीति में आगे बढ़ेंगे या..फिर भविष्य की जरूरतों के मुताबिक अपने फैसले को बदलते रहेंगे…

एक इंटरव्यू के दौरान..चिराग पासवान ने बताया कि..उनके पिता जब साल 2005 में..बिहार में अकेले चुनाव लड़ सकते हैं तो..वो क्यों नहीं लड़ सकते हैं..2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग की पार्टी अकेले ही चुनावी मैदान में उतर गई..चिराग पासवान अब मीडिया को ये भी बता रहे हैं कि..उन्हें अपने पिता के सपनों को किसी भी कीमत पर पूरा करना है..हालांकि पॉलिटिक्स में सपनों का मरना और सपनों का पूरा करवाना..सिर्फ जनता के हाथों में होती है..

अभी चिराग पासवान के सामने..राजनीति के कई उतार चढ़ाव आने हैं..पिता के दुनिया से जाने के बाद चिराग के सामने चुनौतियां भी तेजी से बढ़ेगी..विरोध और स्वीकार की राजनीति को किनारे रखकर सिर्फ वोटरों के दिलों में धंसने और गठबंधन की गाठों को खोलकर अपनी राजनीति को जनता के सामने रखने की कला..में चिराग को पहले से निखारने की जरूरत है..

रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग कई बार मीडिया के सामे भावुक हुए…रोते रहे..पिता को याद करते रहे..पिता की कही बातों को दोहराते दिखे..लेकिन भावुकता और राजनीति दो किनारों पर बसे होते हैं..शायद इस बात को चिराग पासवान भी जानते होंगे..ऐसे में आने वाले दिनों उनके हर एक फैसले ही उनकी सियासी राहों का गवाह बनेगा..

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