पिछले जन्म में हम कौन थे, यह कैसे जानेंगे? देखिए

यह जानने के लिए कि पिछले जन्म में हम कौन थे, कदाचित कोई तरीक़ा नहीं है।

यदि कभी-काद हमें ऐसी घटना देखने या सुनने को मिलती है जिससे हमें लगे कि फ़लाँ बंदे को पिछले जन्म की बातें याद हैं, तो उसका भी कोई मनोवैज्ञानिक कारण होता है, कि उसके दिमाग़ के किस हिस्से पर किस प्रकार के किस घटना के क्या लेप (Imprints) लगे हैं। यह भी सम्भव है कि उस बंदे के दिमाग़ के किसी हिस्से की संरचना में जन्म से ही कोई छोटी-मोटी विकृति हो, जो वह साधारण लोगों से थोड़ा भिन्न व्यवहार कर रहा हो। इस प्रकार के लेपों को सीधे साधे पिछले जन्म से जोड़ देना समुचित क्रिया नहीं लगती।

आप इस बात को ऐसे समझें कि सारी दुनिया में जितने भी इंसान हैं, उनके रंग रूप और डील डौल में हमें जो अंतर नज़र आता है वह उनके हज़ारों लाखों वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी भिन्न परिस्थितियों में रहने के कारण हैं। जैसे जिन लोगों की पीढ़ियाँ ठंडे इलाक़ों में रहती आयी हैं, वे गोरे होते गए और गरम इलाक़ों में रहने वाले काले होते गए। परंतु सभी मानवों के शरीरों के आंतरिक अंगों और क्रियाओं में प्रायः कोई फ़र्क़ नहीं होता। यह सब प्राकृतिक रूप से सब जीवों में पाए जाने वाले अनुकूलन क्षमता (adaptability) गुण के कारण होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह कि यदि एक मनुष्य पिछले जन्म के बारे में जानता होता तो अन्य मनुष्यों के पास भी वह गुण होना चाहिए, जो कि स्पष्टतः नहीं है। अतः लाखों करोड़ों लोगों में से किसी एक के साथ घटी और विभिन्न स्रोतों से होते हुए हम तक पहुँचे अस्पष्ट विवरण वाली घटना के आधार पर हम यह नहीं मान सकते कि पिछले जन्म के बारे में मनुष्य जानता है या जान सकता है।

यह सत्य है कि सम्मोहन (hypnotism) और पश्चगमन (regression) जैसी कुछ तकनीकों से मनुष्यों के मानसिक रोगों का उपचार किया जाता है। परंतु यह विधियाँ व्यक्ति विशेष के पिछले जन्म को जानने की ग़रज़ से नहीं की जातीं, बल्कि किसी पिछली घटना के कारण उसके दिमाग़ पर लगे लेप (imprint) को सुधारने के लिए की जाती हैं, ताकि उसका मनोरोग, जैसे किसी क़िस्म का भय या अवसाद आदि ख़त्म किया जा सके। अधिक से अधिक हम यह कह सकते हैं कि पिछली घटना पिछले जन्म की भी हो सकती है।

अंत में मुझे भगवान श्री कृष्ण के द्वारा अर्जुन को कहा गया यह श्लोक याद आ रहा है —

बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।

तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप।।4.5।।

हे अर्जुन तेरे और मेरे कई जन्म हो चुके हैं। फर्क ये है कि मुझे मेरे सारे जन्मों की याद है, लेकिन तुझे नहीं।

तो निष्कर्ष यह निकलता है कि परमेश्वर की सृष्टि की व्यवस्था ही इस प्रकार की है कि हमें पिछले जन्म के बारे में कुछ याद नहीं रह सकता। फिर उसको जान पाने का कोई तरीक़ा कैसे हो सकता है।

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