जानिए आखिर ज्योतिष शास्त्र में होरा क्या है?
ज्योतिष शास्त्र मे होरा की भूमिका मुहूर्त निर्धारण मे महत्वपूर्ण होती है कार्यो की प्रकृति के अनुसार ग्रहो के होरा का उपयोग शुभ माना जाता है ।
विशेष रूप से शुभ मुहूर्त के लिए समय अभाव हो या तत्काल मुहूर्त निर्धारण करने के लिए होरा की भूमिका अहम होती है ।
किसी भी वार के स्वामी का उस वार के सूर्योदय के समय से प्रथम होरा वार के स्वामी का होता है एक दिवस मे 24 होरा होते है जिसमे से 12 होरा के स्वामी दिनमान के 12 भागो के स्वामी होते है एवं आगे के बारह होरा के स्वामी रात्रिमान के 12 भागो के स्वामी होते है ।
इस प्रकार दिन के होरा का समय काल दिनमान को 12 से भाग करके प्राप्त होता है तथा रात्रि के होरा समय काल रात्रिमान को 12 से भाग करके प्राप्त होता है ।
इन होरा के स्वामी की गणना सूर्योदय से आरंभ होती है आगे की गणना विभिन्न ग्रहो की पृथ्वी से दूरी के आधार पर होती है ।
पृथ्वी < चन्द्रमा < बुध < शुक्र सूर्य < मंगल < गुरु < शनि
होरा संख्या 1 ,8 ,15, 22 प्रथम होरा का स्वामी
होरा संख्या 2 ,9 ,16 ,23 द्वितीय होरा का स्वामी
होरा संख्या 3 ,10 ,17, 24 तृतीय होरा का स्वामी
होरा संख्या 4 , 11 ,18 चतुर्थ होरा का स्वामी
होरा संख्या 5 ,12 ,19 पंचम होरा का स्वामी
होरा संख्या 6 ,13 ,20 षष्ठम होरा का स्वामी
होरा संख्या 7 , 14 ,21 सप्तम होरा का स्वामी
इस प्रकार होरा का निर्धारण किया जाता है कार्यो की प्रकृति के अनुसार मुहूर्त के लिए होरा के उपयुक्त समय का उपयोग किया जाता है ।
उदाहरण के लिए यदि ऋण लेना है तो बुध के होरा का उपयोग करना चाहिए , यदि ऋण चुकाना है या ऋण देना हो तो मंगल के होरा का उपयोग करना चाहिए इसी प्रकार विभिन्न कार्यो के अनुसार उचित एवं शुभ समय के लिए होरा का उपयोग किया जाता है ।
आशा करते है आपकी जिज्ञासा के अनुसार जानकारी प्राप्त हुई होगी किसी शंका के लिए आपके सुझाव सादर प्रार्थनीय रहेगे जी ।