चीन के साथ 1962 के युद्ध में भारत की हार के पीछे क्या कारण थे? जानिए

दलाई लामा को भारत द्वारा राजनितिक शरण देना : भारत द्वारा तिबत के धर्म गुरु और शाशक दलाई लामा को राजनितिक शरण देना. दलाई लामा मार्च 1959 में ल्हासा छोड़कर भारत के तवान्ग में आकर रुके. फिर असम के तेजपुर में ठहरे उसके 3 हफ्ते बाद दिल्ली लाये गए. तब भारत में जवाहर लाल नेहरू प्रधान मंत्री और डाक्टर राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति थे. भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा दलाई लामा को बता दिया गया कि हम चीन से लड़कर तिब्बत को आज़ाद कराने के पक्ष में नहीं है. आप शांति से मसले का समाधान निकाले.

भारत चीन सीमा विवाद चीन द्वारा भारत के जम्मू कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र और तिब्बत के सिक्यांग प्रान्त में सड़क निर्माण करके भारत के साथ सीमा विवाद में उलझना. इस सड़क का निर्माण चीन ने 1951 -57 के बिच किया और भारत को 1957 में ही इसका पता चला ज़ब चीन ने इसे अपने नक़्शे में आधिकारिक रूप से दिखाया.

चीन के प्रधान मंत्री चाव ऐन लाई और जवाहरलाल नेहरू के बिच सीमा विवाद पर आपसी सम्वन्धों में खटास पैदा होना. 1956 में दोनों प्रधानमंत्री के मध्य मेक मोहन रेखा को सीमा मानने पर सहमति के वाबजूद जनवरी 1959 में चाव ऐन लाई द्वारा वादा खिलाफ़ी करना. चीन द्वारा मक मोहन लाइन को भारत चीन या तिब्बत के बिच सीमा न मानना. 1962 मे चीन के साथ रूस ने भी मेक मोहन रेखा को सीमा रेखा मानने से इंकार किया.

चीन के सर्वोच्च नेता माओत्से तुंग का अपमान अप्रैल 1959 में बॉम्बे में माओ तसे तुंग जो कि चीन के सबसे बढ़े नेता थे के फोटो पर भारतीय प्रदर्शन करियों द्वारा टमाटर व सडे अंडे फेंक कर बेइज्जती करना, जिसे चीन ने 65 करोड़ चीनी लोगो का अपमान कहा. इस घटना पर भारत सरकार ने खेद भी प्रकट किया. लेकिन चीन इन लोगो को दण्डित करवाना चाहता था जो कि भारत में लोकतंत्र प्रणाली होने के कारण धरना प्रदर्शन जनता का अधिकार मानते हुए क़ानून के अनुसार उचित न था.

भारत में रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन और जनरल थिमैया के बिच आपसी कटुता होना और प्रधानमंत्री द्वारा मामला उलझाए रखना. ये मसला भारतीय फ़ौज के उच्च अधिकारी बी एम कौल के पदोन्नति को लेकर उलझा जो कि अपने से 12 उच्च अधिकारीयों को छलांग कर प्रोनत्ति प्राप्त कर रहा था और प्रधानमंत्री के करीबी थे, जिस पर जनरल thimyya जो कि अनुभवी और अंग्रेज फ़ौज में कई युद्ध लड़कर महत्वपूर्ण पद पर पहुचे थे, को आपत्ति थी.भारत और चीन कि सेना में गोलाबारी होना गोला बारूद से एक दूसरे पर प्रहार करना .

अक्टूबर 1959 में चीनी सेना ने लद्दाख के भारतीय पोस्ट पर हमला किया. 10 सैनिक भारतीय को मार दिया गया और इतने हि बंदी बनाये गए. इस बात को ध्यान में रखकर भारत ने अपनी रक्षा बदली और फॉरवर्ड पालिसी बनाई. चीन या भारत अपनी बातों पर अड गए और पीछे हटने या समझौते में बाधा दिखने लगी. चीनी सेना भारतीय सेना से पांच गुनी अधिक थी और रुसी हथियारों से सुसज्जित थी. आज़ाद भारत कि सेना को युद्ध का अनुभव भी नहीं था.

पंचशील समझौता भारत और चीन के मध्य सं 1954 मे 29 अप्रैल को राजधानी पीकिंग मे सम्पन्न हुआ और हिंदी चीनी भाई भाई का नया नारा बुलंद हुआ. जवाहरलाल नेहरू सेना को अधिक प्रमुखता नहीं देते थे बल्कि सेना को कम करके शांति से हि मसले हल करने के पक्ष में थे. गाँधी जी के अहिंसा के सिद्धांत से प्रभावित होने के कारण और उसे हि सर्वोपर मानते थे. इसलिए उन्होंने भारतीय सेना का आधुनिकीकरण नहीं किया, हथियार नहीं ख़रीदे, न बनाये. चीन पर बहुत भरोसा करते थे क्योंकि इन्होने चीन को uno में सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी तथा taiwan चीन फारमोसा का विरोध किया था. जबकि पूर्व में हि इनको सरदार पटेल. जनसंघ , श्यामाप्रसाद मुख़र्जी, डाक्टर अम्बेडकर और भारतीय फ़ौज ने चीन और पाकिस्तान से सावधान रहने और सामरिक तौर पर तैयार रहने को कहा था. सेना के जनरल थिमैया पहले हि बता चुके थे की युद्ध हेतु सेना के पास तैयारी नही है.

भारत चीन में शांति वार्ता अप्रैल 1960 में भारत ने चीनी प्रधानमंत्री चावू ऐन लायी को बातचीत के लिए बुलाया. इसी बिच दलाई लामा ने दुनिया को तिब्बत को आज़ाद करने के लिए आह्वान किया. यूरोप अमेरिका ने इसको अधिक महत्व नहीं दिया. चीनी प्रधानमनतरी भारत में एक हफ्ते रहे रोज बातचीत हुयी. हिंदी चीनी भाई भाई के नारे लगे. बातचीत में इंदिरा गाँधी और उप राष्ट्रपति राधाकृष्णन उपस्थित रहे. दलाई लामा और तिब्बती लोगों ने भी एक सीमा से आगे जाकर विरोध किया. चीनी प्रधानमंत्री ने इसे अपना अपमान समझा और भारत सरकार कि कार्यवाही से संतुस्ट नहीं हुए. उन्होंने मेक मोहन रेखा को पूर्व और पश्चिम में सीमा रेखा मानने से साफ इंकार कर दिया नेहरू जी के अनुरोध के वाबजूद. बातचीत सही रास्ते पर नहीं जाती दिखी. चीनी प्रधानमंत्री लायी ने भारत से जाते जाते कहा कि इस मसले को हल करें इस पर अधिक बहस नहीं करें. भारतीय पक्ष इसे ठीक तरह समझने में विफल रहा. विपक्ष ने प्रधानमंत्री को पुनः आगाह किया कि सेना को रक्षा के लिए तैयार करें. लौटते समय चीनी प्रधानमंत्री अन्य भारतीय नेताओं से भी मिले जिनमे राधाकृष्णन, मोरारजी भाई शामिल थे.

भारत का गोवा पर अधिकार कर पुर्तगाल से आज़ाद करना दिसंबर 1961 में भारतीय सेना ने पुर्तगाली कालोनी गोवा को खाली करा लिया और इसे भारत में मिला लिया गया. विपक्ष के नेता राम मनोहर लोहिया ने गोवा को भारत में मिलाने और सेना को गोवा भेजनें में अहम भूमिका निभाई तथा गोवा में पुर्तगाली शाशन में भितर घुसकर धरना प्रदर्शन किया. यूरोप के देश भारत से नाराज़ हुए लेकिन इस घटना से भारतीय सेना का मनोबल बढ़ गया क्योंकि भारतीय फ़ौज विना लड़े हि जीत गयी और पुर्तगाली कमांडर ने भारतीय सेना की अधिक संख्या देखकर आत्मसमर्पण कर दिया. इसको ऑपरेशन विजय कहा गया.

गुट निरपेक्ष भारत का रूस कि तरफ झुकाव : भारत द्वारा यूरोप अमेरिका के गुट में शामिल न होने से और अलग गुट बनाने से धर्म निरपेक्ष तीसरा नया गुट बनाने से पश्चिमी देश नाराज़ हि रहे. वही पाकिस्तान ने अमरीका इंग्लैंड और फ्रांस वाला गुट मे प्रवेश कर उनका साथ जीत लिया और विषासी बन बैठा. लेकिन भारत का झुकाव साम्यवाद, समाजवाद कि तरफ दिखने से भी पश्चिमी देश की नाराज़गी और अधिक बड़ी. साम्यवाद कि प्रयोगशाला बन गया भारत. केरल में कम्युनिष्ट सरकार बनी और चली . नेहरूजी इसके विरोध में नहीं थे, जनता ने चुनी थी लोकतंत्र प्रणाली से, वैध सरकार थी, न कोई दंडात्मक कार्यवाही की जबकि कम्युनिस्ट लोग भारत चीन यिध में भारत के साथ नहीं दिखे और खुलकर चीन का समर्थन किया.

कमजोर भारतीय सेना और इसका कमजोर संचालन अबतक जनेरल थिमैया सेवानिब्रत हो गए और भारतीय सेना के पास आधुनिक हतियार और सैनिक सजो सामान कम हो गया. नेफा कि कमांड बी एम कौल को दे दी गयी जिनको की युद्ध का कोई अनुभव नहीं था जो अबतक कम जरूरी पड़ो पर ही रहे थे और वहां से लेफ्टिनेंट जनरल, जनरल उमराव सिंह को हटा दिया गया. ये घटना 3अक्टूबर 1962 कि है.भारत कि फॉरवर्ड पालिसी और चीन का आक्रमण: 1961 मे भारत ने अपनी नयी फारवर्ड पालिसी sहुरु की जिसमे चीन की सेना का सीमा पर सामबे जाकर जवाब देना था. नेहरू जी को भरोसा था की चीन हमला नहीं करेगा. नीमका छू घाटी में ढोला थगला जो कि तिब्बत भूटान और भारत तीनो कि सीमा पर है में चीनी सैनिक इकट्ठे हो गए.

भारत ने फॉरवर्ड पालिसी को अपनाते हुए 9 अक्टूबर को अपने सैनिक भेजे. सभी सैनिक दिन भर कि मेहनत के बाद चोटी पर पहुचे हि थे और थकान से चूर थे और जाकर सो गए. तब रात में हि इन पर 10 अक्टूबर को चीनी सेना ने हमला कर दिया और सब भारतीय सैनिक मारे गए. इनकी तैयारी भी कम थी सैनिक सजोना सामान भी पूरा नहीं था. पीछे से रसद की उचित व्यवस्था न थी. 19–20 अक्टूबर को चीन ने पूर्वी और पश्चिमी सेक्टर में भीषण हमला किया लगभग 500 किलोमीटर लम्बी सीमा पर एक साथ हमला हुआ और नमक छू तथा तवान्ग या अरुणाचल प्रदेश को भारतीय सेना से छीन लिया. लद्दाख में 10 और नेफा में 20 भारतीय चौकी छीन ली.अनुभवहिं जनरल और सेना कि हारकर पीछे हटना जनरल बी एम कौल जिनको युद्ध क्षेत्र का बिलकुल भी अनुभव नहीं था, जो स्टोर आदि में हि नियुक्त रहे थे और रक्षा मंत्री के चेहते होने के कारण पदासीन किया गया था, को भारतीय सेना के इस तरह पिछड़ने से हृदयाघात हुआ और वो दिल्ली भाग आये इलाज के लिए और सीमा पर सेना को निर्देशित करने के लिए भी कोई अधिकारी नहीं रहा . जनरल हरवंश को पदस्थापित किया गया. इन्होने फ़ौज और लोगो की व्यवस्था की. कुछ समय बाद ही जनरल बम कौल को फिर से इलाज कराकर इनकी जगह नियुक्त किया गया जो की पहले ही कम अनुभवी और अब ह्रदयाघात से कमजोर और हर से खिन्न थे. कुछ व्यवस्था ठीक न कर सके हालत पूर्व और पश्चिम दोनों मोर्चो पर बिगड गये. कृष्णा मेनन को रक्षामंत्री से हटा दिया. नेहरू को चीन के विश्वासघात का आघात लगा.पुनः चीन का हमला 15 नवंबर 1962 को चीन ने फिर हमला किया भारतीय सेना खूब लड़ी और हारकर पीछे हटी. 22 नवंबर को चीन ने एकतरफा युद्ध विराम कर दिया और चीनी सेना अपनी पूर्व वती स्तिथि तक पीछे हट गए. जीता हुआ क्षेत्र भी छोड़ दिया. इस युद्ध में 1383 भारतीय सैनिक शहीद हुए और 3968 कैद किये गए तथा 1696 सेनिको के बारे में जानकारी नहीं मिली उनको खोया हुआ मना गया.

चीन जीतकर फिर वापिस अपनी पूर्व स्तिथि तक लोटा लेकिन अक्साई चीन पर कब्जा बनाये रखा : चीन भारतीय सीमा में बहुत अधिक भीतर घुस गया था और आगे ठण्ड का मौसम आने वाला था अतः चीन को डर था कि कही भारतीय सेना ठण्ड के मौसम में अपनी भूमि छुड़ाने हेतु आक्रमण करेगी तो चीनी सेना को रसद न मिलने के कारण जीत हार में बदल सकती है. इसी बिच नेहरू जी को अमरीका, कनाडा, फ्रांस, ब्रिटेन से हथियार और अन्य आवश्यक रसद मिलने की भी सहमति हो गयी तथा उन्होंने अपने सामान हवाई जहाज से भेजना शुरू कर दिया. इसी बात पर विचार करके चीनी सेना ने भार तीय इलाके स्वयं हि खाली कर दिए और अपनी शक्ति का लोहा तथा अपनी सदाशयता भी दिखाई. साथ ही पश्चिमी सेक्टर मे चीन ने भारत का लद्दाख वाला अक्साई चीन क्षेत्र छीन लिया और इसमें 37244 वर्ग किलोमीटर इलाके पर कब्जा जमाये रखा जो अभी भी इनके अधिकार मे है.नेहरू जी के जीवन पर यह युद्ध बदनाम दाग़ रहा और नेहरूजी कभी भी इस को सह नहीं पाए. हृदयाघात से 1964 में हरे पिछड़े दुखी कमजोर निरीह संसार भर में अपमानित और जीवन भर कि कमाई इज्जत पूंजी भारतीय जनमानस में लुटा कर और विरोधी राजनेताओं के व्यवहार से दुखी, अपराध बौद्ध से ग्रस्त, पर लोक या स्वर्ग सिधार गए. भारत में भाखरा बांध जैसी परियोजना बनाकर, मजबूत लोकतंत्र स्थापित कर, भाषा के झगड़े को निबटाकर, विभिन्न राज्यों को बनाकर, देश में क़ानून व्यवस्था स्थापित करके, विभिन्न आंदोलन को सही तरह हल कर के, जो इज्जत कमयी थी, चार बार लगातार चुनाव जीतकर, सब चीन युद्ध में हारने से गवाकर, दुखी होकर, अपमानित महसूस करके, हृदयाघात से आहत होकर स्वर्ग सिधार गए.

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