आईपीएल में इतने महंगे खिलाड़ी खरीदने वाले अपनी कीमत की भरपाई कैसे करते हैं?

दरअसल आईपीएल का असली खेल तो 22 गज की पिच के बाहर खेला जाता हैं । जिस प्रकार से दुकानों में आकर्षक सामान को बाहर दिखाकर ग्राहक को ललचाया जाता हैं उसी तरह से इन खिलाड़ियों से बड़े- बड़े प्रायोजक इनकी तरफ आकर्षित होते हैं और अपना विज्ञापन इन खिलाड़ियों से इस महासमर के दौरान करवाना चाहते हैं ।

हर टीम के पास खिलाड़ी खरीदने के लिए 80 करोड की सीमा होती हैं । यह सीमा रखने का मूल उद्देश्य टीमो के मध्य संतुलन बनाना होता हैं वर्ना अधिक रुपए खर्च कर कोई भी टीममालिक मुख्य खिलाड़ियों को अपनी टीम में शामिल कर लेगा । इन 80 करोड को खर्च करके इन्हें अपनी पसंदीदा टीम कम से कम 17 खिलाड़ियों व अधिकतम 25 खिलाड़ियों को शामिल करके बनानी पड़ती हैं । इस दौरान इनकी कोशिश यह रहती हैं कि कम से कम 3–4 खिलाड़ी ऐसे होने चाहिए जिनकी मार्किट वैल्यू अच्छी हो और खेल भी अच्छा हो ताकि मैदान में अच्छा प्रदर्शन नही करने पर भी इन खिलाड़ियों के नाम पर इन्हें प्रायोजक मिल जाएंगे , जैसा कि प्रिटी जिंटा ने 2018 की बोली में क्रिस गेल को खरीदकर किया था लेकिन गेल ने मैदान पर भी अच्छा प्रदर्शन कर टीम को दोहरा फायदा पहुँचा दिया ।

प्रायोजक भी अलग – अलग प्रकार के होते हैं जैसे जर्सी पर अपना प्रमोशन करवाने वाले ( वीडियोकॉन, नोकिया व अल्ट्राटेक सीमेंट ) , खिलाड़ियों से अपने उत्पादन का विज्ञापन करवाने वाले ( किंगफ़िशर व जिओ ) इन्हें मुख्य प्रायोजक भी कह सकते हैं क्योंकि यह अधिक रुपए खर्च करते हैं व टीम के घरेलू मैचों में स्टेडियम में विज्ञापन करवाने वाले क्षेत्रीय प्रायोजक । इन प्रायोजकों से मिलने वाले पैसो का एक हिस्सा बीसीसीआई को भी मिलता हैं क्योंकि वह आईपीएल की गवर्निंग कॉउन्सिल हैं ।

प्रायोजको के बाद कमाई का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत हैं टिकट बिक्री इसमे रुपए का बँटवारा बीसीसीआई व घरेलू टीम के मध्य होता हैं । इसका अनुपात एक समान नही रहता हैं कई बार यह 80:20 तो कभी कभी 70:30 रहता हैं । इसमे उस टीम को ज्यादा फायदा होता हैं जहाँ स्टेडियम का आकार बड़ा होता हैं जैसे कोलकाता के ईडन गार्डन में 65000+ दर्शक क्षमता हैं तो वहीं जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम में 30000 के करीब दर्शक क्षमता हैं तो कोलकाता की टीम को यहाँ अधिक मुनाफा होता हैं । इसके अतिरिक्त स्टेडियम में मैच के दौरान लगने वाली विभिन्न स्टालो को भी कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर रखा जाता हैं जिसका पैसा घरेलू टीम के पास जाता हैं ।

इसके अतिरिक्त बीसीसीआई मीडिया व ब्रॉडकास्टिंग अधिकारों से प्राप्त राशि का एक हिस्सा इन टीमो को प्रदान करती हैं । यहाँ टीवी व डिजीटल अधिकार समिल्लित हैं । स्टार समूह ने 16,347.5 करोड़ ₹ की बोली लगाकर 2018–2022 तक के अधिकार खरीदे हैं और इन अधिकारों का बँटवारा 50 प्रतिशत पर होगा अथार्त 50 प्रतिशत बीसीसीआई व बाकी हिस्सा सभी टीमो में बँट जाएगा । बीसीसीआई इसके अलावा टाइटल स्पॉन्सर से भी भारी कमाई करती हैं उदाहरण के लिए वीवो ने 2018–2022 तक के अधिकार 2199 करोड़ रुपए में खरीदे हैं तो इसलिए हमें कॉमेंट्री के दौरान बार -बार वीवो आईपीएल सुनने मिलता हैं । इसके अतिरिक्त अंपायर की जर्सी के अधिकार व टाइमआउट अधिकार ( खेल के मध्य 2.30 मिनट का अंतराल ) भी बीसीसीआई के लिए कमाई का स्रोत हैं । पेटीएम जहाँ अंपायर जर्सी का प्रायोजक हैं तो सीेेएट टायर्स टाइमआउट का प्रायोजक हैं और इन दोनों का नाम 2022 तक इससे जुड़ा रहेगा ।

टीमो की कमाई का एक हिस्सा टीमो के नाम से उत्पाद बेचकर भी आता हैं जैसे टीशर्ट , टोपियां , खिलाड़ियों के हस्ताक्षर किए गए बैट्स व टीम जर्सी आदि ।

इन्ही उपरोक्त कारणों की वजह से आईपीएल दुनिया की सबसे महँगी व भव्य क्रिकेट प्रतियोगिता हैं जिसमे नुकसान किसी का नही होता सबका फायदा ही होता हैं । थोड़ा बहुत नुकसान उन दर्शको का होता हैं जो कि बाजारवाद से प्रभावित होकर उन उत्पादों की जरूरत नही होने पर भी इसलिए खरीदते हैं क्योंकि हमारा पसंदीदा खिलाड़ी उसका विज्ञापन कर रहा हैं लेकिन इसी से तो आइपीएल का व्यापार चरम पर पहुँचा हैं ।

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