कृत्रिम वर्षा क्या होती है और कैसे करायी जाती है? जानिए
कृत्रिम बारिश जो सुखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक वरदान है,और यह आधुनिक जीवन मे अत्यंत आवश्यक है यह एक आर्टिफिशियल प्रक्रिया इसे जानने तथा कृत्रिम वर्षा को अच्छी तरह समझने के लिए कृपया पूरा उत्तर पढ़े।
कृत्रिम वर्षा
कृत्रिम बारिश वह प्रक्रिया है जो बादलों की भौतिक अवस्था मे आर्टिफीसियल तरीके से बदलाव लाया जाता है जो इसे बारिश के अनुकूल बनाता है। यह प्रक्रिया क्लाउड सीडिंग कहलाती है। बादल पानी के बहुत छोटे-छोटे कणों से बने
होते हैं। जो कम भार की वजह से खुद ही पानी की शक्ल में जमीन पर बरसने में पूरी तरह सक्षम नही होतेहैं। कभी- कभी किसी खास परिस्थितियों में जब ये कण इकट्ठे हो जातेहैं, तब इनका आकार और भार अच्छा खासा बढ़
जाता है। तब ये ग्रेवटी केकारण धरती पर बारिश के रूप में गिरने लगतेहैं।
कृत्रिम बारिश कराने की प्रक्रिया
कृत्रिम बारिश के तकनीक में तीन चरण होते है।
चरण 1: पहले चरण में रसायनों का इस्तेमाल करके उस इलाके के ऊपर बहने वाली हवा को ऊपर की ओर भेज दिया जाता है, जिससे बारिश
के बादल बना सके। इस प्रक्रिया में (कैल्शियम क्लोराइड, कैल्सियम कार्बाइड,कैल्शियम ऑक्सएड,नमक तथा यूरिया के यौगिक और अमोनियम नाइट्रेट के यौगिक का इस्तेमाल किया जाता है। ये यौगिक हवा से जलवाष्प को सोख लेते हैऔर दवाब बनाने की प्रक्रिया शुरु कर देते है।
चरण 2: इस चरण में बादलों के द्रव्यमान को नमक, यूरिया,अमोनियम नाइट्रेट, सूखे बर्फ तथा कैल्सियम क्लोराइड का प्रयोग कर के बढ़ाया जाता है।
चरण 3: तीसरे चरण में सिल्वर आयोडाइड और शुष्क बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों की आसमान में छाए बादलों में बमबारी की जाती है।
ऐसा करने से बादल में छुपे पानी के कण बारिश के कण के के रूप में जमीन पर गिरने लगती है
जिससे कृत्रिम वर्षा की प्रक्रिया पूरी होती है
इस कृत्रिम वर्षा से सुखा प्रभावित क्षेत्रो में काफी लाभ होता है