ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में बनने वाला ‘यव योग’ क्या है?
नभस योग की श्रेणी में यव नामक योग भी आता है. यव योग भी एक शुभ योगों के अंतर्गत स्थान पाता है. इस योग के प्रभाव का जातक के जीवन में मिला-जुला प्रभाव देखने को मिलता है. यव योग होने पर व्यक्ति की कुण्डली में ग्रह उडते हुए पक्षी की आकृति में स्थित होते है. यह योग व्यक्ति को चर प्रकृति देता है. यानि के व्यक्ति को एक स्थान पर टिक कर रहने में असुविधा महसूस होती है. वह जीवन में स्थिरता नहीं चाहता है. जातक के मन में कोई न कोई बात उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती ही रहती है.
कुण्डली में यव योग कैसे बनता है
जिस व्यक्ति की कुण्डली में चतुर्थ भाव और दशम भाव में नैसर्गिक शुभ ग्रह और लग्न भाव व सप्तम भाव में पाप ग्रह हो तो व्यक्ति परोपकारी होता है. इस योग से युक्त व्यक्ति को दान -धर्म के कार्य करने में विशेष रुचि होती है. ऎसा व्यक्ति की सफलता में उसके भाग्य का सहयोग भी होता है. व्यक्ति समृद्धशाली होता है तथा व्यक्ति में कर्तव्य परायणता का भाव पाया जाता है.
यव योग प्रभाव
यव योग के अन्तर्गत जन्म कुण्डली का चौथा भाव शुभ ग्रहों से युक्त होने पर जातक को अपने घर और जीवन का सुख भोगने का मौका मिलता है. माता की ओर से स्नेह और प्रेम भी प्राप्त होता है. व्यक्ति को वाहन का सुख और धन और आभूषण की प्राप्ति भी होती है. जातक की माता एक सम्मानित महिला होंगी. प्रारंभिक शिक्षा का स्वरुप भी बेहतर स्थिति का रहा होगा.
जातक को कार्यक्षेत्र में अच्छे मौके मिल सकते हैं. वह अपनी योग्यता और भाग्य के सहयोग से अपने लिए एक अच्छे काम की तलाश को पूरा कर सकता है. अपने अधिकारियों की ओर से उसे सहयोग मिल सकता है और उसकी बनाई हुई योजनाएं बहुत ही प्रभावशाली होती हैं. काम के क्षेत्र में नाम भी कमाता है.
जातक में बदलाव की चाह अधिक होने के कारण जीवन में स्थिरता मिल पाना मुश्किल होगा. जीवन में रिश्तों में भी एक प्रकार की स्थिरता का अभाव होगा. इस कारण दांपत्य जीवन में कुछ तनाव अधिक रह सकता है. फ्लर्ट करने वाला हो सकता है. जीवन साथी के साथ मन मुटाव भी परेशान कर सकता है.
इस योग के प्रभाव से जातक में क्रोध अधिक हो सकता है और वह अपनी जिद को करने वाला होगा. कई बार दुसाहसिक काम करने के कारण स्वयं के लिए नुकसान भी कर सकता है. व्यर्थ के वाद विवाद में रह सकता है.