भारतीय फ़ोन नंबरों में 10 अंक क्यों होते हैं?
ऐसा मोबाइल/लैंडलाइन उपभोक्ताओं की संख्या में वृध्दि के कारण हुई है, जो 93 से शुरू हो कर 120 करोड़ के आसपास पहुँच गयी है।
भारत में पब्लिक टेलीफोन एक्सचेंज की शुरुआत 1881 में हुई , जब इंग्लैंड की ओरिएंट टेलीफोन कंपनी ने चार शहरों में टेलीफोन एक्सचेंज स्थापित किया। ये थे
कलकत्ता (तब भारत की राजधानी )
बॉम्बे
मद्रास
अहमदाबाद
28 जनवरी, 1882 को टेलीफोन की औपचारिक शुरुआत 93 उपभोक्ताओं के साथ औपचारिक रूप से हुई।
जाहिर है उस समय टेलीफोन नम्बर 2 अंको के ही होते थे।
दो अंकों के माध्यम से 80 नंबर दिए जा सकते है (0 और 1 से सामान्य नम्बर शुरू नहीं होता है )। पर हकीकत में कुछ कम ही नंबर ही प्रयोग किये जा सकते थे।
उसी तरह 5 अंकों से 50,000 नंबर। पारा १.१.६ नेशनल नंबरिंग पालिसी [3] , हालाँकि सिद्धांत : 90,000 नंबर संभव हैं
STD कोड 4 अंकों के होते थे ।
पहली बार एकरूपता 1993 में लायी गई जब सारे टेलीफोन नम्बर STD कोड सहित 9 अंकों के हो गए। मोबाइल के नम्बर 9 से ही शुरू होते थे सो शुरू के दो अंकों को छोड़ बचे 7 अंक जिससे 1 करोड़ से तनिक ही कम मोबाइल उपभोक्ताओं को नम्बर दिया जा सकता था।
फिर मोबाइल की बढ़ती हुई संख्या के मद्देनजर इसे 2003 में 10 अंकों का कर दिया गया।इसमें लैंड लाइन नंबर 8 से 6 अंकों तक के हो सकते थे और STD कोड 2 से 4 अंकों का ताकि कुल जोड़ रहे 10 . इसका ज़बरदस्त फायदा मोबाइल नंबर की इजाफा से मिला . ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि उस वक़्त मोबाइल के नम्बर 9 से ही शुरू होते थे । पर मोबाइल के नंबर केवल 94 या 98 से ही शुरू हो सकते थे तो अब शुरू के 2 को छोड़ बचे 8 अंक जिससे 20 करोड़ के आसपास लोगों को नंबर दिया जा सकता था
पर मोबाइल की बढ़ती हुई संख्याओं के मद्देनजर , 9 को पूरी तरह से मोबाइल के लिए आवंटित कर दिया गया। इससे तकरीबन 70 करोड़ नंबर मोबाइल हेतु सुलभ हो गया। पर 2010 आते आते यह भी खत्म होने की कगार पर आ गया।
तब बात उठी टेलीफोन नम्बर को 11 अंकों का कर दिया जाए जैसा कि चीन में है, पर इस के लिए आधार भूत ढांचे में काफी बदलाव की जरूरत थी, सो सरकार ने अंक 7 और 8 को भी मोबाइल हेतु सुलभ कर दिया । चूंकि 7 और 8 से STD कोड भी शुरू होते हैं (079 अहमदाबाद, 080 बैंगलोर) सो 7 और 8 की स्पेयर कैपेसिटी ही प्रयोग किया जा सकता था जो 62 करोड़ है + 9 की फुल कैपेसिटी 100 करोड़ ।