क्या महात्मा गाँधी आज के दौर में भी प्रासंगिक हैं?
- इस सवाल का कोई एक सरल जबाब नही दिया जा सकता है। महात्मा जी का स्वर्गवास हुए अभी सिर्फ ७० वर्ष होने को है लेकिन इतने कम समय मे दुनिया अविश्वसनीय रूप से बदल चुकी हैऔर यह बदलाव सिर्फ भौतिकीय नही,अपितु वैश्विक स्तर पर सामाजिक मानसिकता मे भी हुआ है। मुझे लगता है की इन बदलावों का गांधीजी की प्रासंगिकता के संदर्भ मे विचार होना आवश्यक है ।
और हमे महात्मा जी के विचारों के प्रभाव की विभिन्न स्तर पर समीक्षा करनी होगी, जैसे वैयक्तिक जीवन,समाज,राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ।
आइये देखे कि गांधी विचारों की प्रासंगिकता कितनी है ?
- सत्य – सत्य गांधी विचारों का पहला तत्व । सत्य की महिमा का हमारे पुराणों मे भी बखान हुआ है। देखे – नास्ति सत्यसमो धर्म: न सत्याद विद्यते परम् । —न हि तीव्रतरं किंचिद् अनृताद् इह विद्यते ।।————-(महाभारत आदि पर्व ) ———-अर्थात – “ सत्य जैसा अन्य धर्म नही ,सत्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही, असत्य से भयंकर जगत मे कुछ भी नही।
सत्य का महत्व सदा से था और सदा रहेगा । वैयक्तिक जीवन मे हमे जहां तक हो सके सत्य का पालन करना चाहिये । हमारे सामाजिक व्यवहार सत्य पर आधारित हो तो वह सबके लिये अच्छा होगा । लेकिन यही बात राजकारण व परराष्ट्र संबंध मे नही कही जा सकती । सत्ता के गलियारों मे तो सदा धूर्तता और असत़्य का बोलबाला रहा है और रहेगा । यहां पर महाभारत का एक और श्लाेक देना ऊपयुक्त होगा –
सत्यस्य वचनं श्रेय:,सत्याद् अपि हितं वदेत् ।
यद् भूतहितम् अत्यन्तम एतत्सत्यं मत मम ।। ————————( महाभारत शांति पर्व )अर्थात -सत्य बोलना तो श्रेयस्कर होता है, लेकिन सत्य के अपेक्षा दूसरा हितकारक हो तो वह बोलो । क्यो कि सर्व प्राणिमात्र के लिये जो हितकारक हो वही सत्य है ऐसा मेरा मानना है ।- महर्षि नारद
२)- उपोषन (अनशन)- गांधीजी ने अनशन पर बैठने का अंग्रेजों के और अन्याय के विरूद्ध एक हथियार जैसा प्रयोग किया और उन्हे इसमे बहुत सफलता भी मिली। आज भी लेाग आमरण अनशन का उपयोग हथियार जैसा करना चाहते है लेकिन वे भूल जाते है कि महात्मा की सफलता के पीछे उनके अपने वैयक्तिक चरित्र का नैतिक बल था ।
आपने इन्हे पहचाना तो होगा ही । जी हां यह है प्रसिद्ध गांधीवादी समाज सेवक अन्ना हजारे । यह कितने महान गांधी वादी है यह इस बात से जान लीजिए कि किसी ने इन्हे कहा कि “शरद पवार साहब को एक व्यक्ति ने एक थप्पड मारा” तो इनकी प्रतिक्रिया थी “बस एक ही थप्पड मारा!?”
अन्ना हजारे लेाकपाल विधेयक के लिये आमरण अनशन पर बैठे थे दिल्ली के रामलीला मैदान में ! अब भारत आजाद है, कानून बनाने के लिये लोगो द्वारा चुने गये सांसद है।ऐसे मे एक व्यक्ति के हठ के कारण कोई कानून बनाया जाय इसमे कौनसा औचित्य है?अगर ऐसा ही करना है तो संसद क्यों चाहिए ? मै तो इसे सरासर इमोशनल ब्लैकमेल मानता हुं । आप सिर्फ अपने ऊपर हो रहे किसी अन्याय के तरफ सरकार,मीडिया और यंत्रणा का लक्ष्य खींचने के लिये लाक्षणिक अनशन कर सकते है । आमरण अनशन का अब कोई औचित्य नही रहा !
३)- अहिंसा- अपने वैयक्तिक और सार्वजनिक जीवन मे गांधी जी ने अहिंसा तत्व का बहुत कठोरता से पालन किया । यहाँ तक कि उन्होने एक छोटे से गाँव चौरीचौरा मे हुए हिंसा के कारण १९४२का आंदोलन बंद कर दिया था ।
अहिंसा परमो धर्म: तथा अहिंसा परं तप: ।
अहिंसा परमं सत्यं, ततो धर्म: प्रवर्तते ।। ————————- ( महाभारत)
अर्थात- अहिंसा परम धर्म है,और परम तप है ।अहिंसा परम सत्य है, उसीसे धर्म का प्रवर्तन होता है ।
अहिंसा हमारे भारतीय समाज जीवन का अभिन्न अंग रहा है और रहेगा । अहिंसा सदा प्रासंगिक रहेगी लेकिन हमारे वैयक्तिक जीवन मे । एक राष्ट्र के संबंध मे हम इसका पालन नही कर सकते! ISIS जैसे आतंकी संगठनों के आगे अहिंसा का बखान नही किया जा सकता। इनके मुकाबले अंग्रेज कहीं ज्यादा सभ्य थे,सो अहिंसा तत्व काम कर गया। आतंकवादियो का मुकाबला हमे कठोरता से ही करना होगा।