ब्लैकबेरी मोबाइल आना क्यों बंद हो गए? जानिए सच
ब्लैकबेरी और नोकिया दोनों ही पॉजिटिव थिंकिंग की मानसिकता का शिकार हुए। (जैसे भारत कभी इस्लामिक नहीं बन सकता है क्योंकि हजारों सालों में नहीं बना types मानसिकता)
सैमसंग के दिनों में नोकिया के कंसल्टेंट के साथ काम किया हुआ है मैंने।
सिंबियन OS noika का था जिसका लाइसेंस सैमसंग ने भी ले रखा था और सैमसंग symbian फोन बनाती थी।
जाहिर है नोकिया उनको कंसल्टेंसी देता था कोई नया फीचर हो या bug आता था तो अक्सर सैमसंग नोकिया की सहायता लेती थी।
नोकिया का अपना एक प्रोसेस था, काफी धीमा था 2007 के बदलते समय के साथ।
नोकिया अपना समय लेता था , टाइम टू मार्केट में उनका कोई विश्वास नहीं था। सिंबियन OS को ठोक बजा कर 12–15 साल में बनाया था उन्होंने इस लायक की जनता का विश्वास था उस पर।
ब्लैकबेरी का अपना OS और कीबोर्ड वाले फोन।
नोकिया और ब्लैकबेरी दोनों अपने अपने क्षेत्रों में लीडर थे !! लेकिन कहीं ना कहीं बड़ी सफलता और कंपनी का बड़ा आकार नवाचार की संस्कृति आड़े आता है।
गूगल चुपचाप एंड्रॉयड पर काम कर रहा था और एप्पल आईफोन पर।
आईफोन और उसके बाद एंड्रॉयड दोनों ने सामान्य जनता को एक तरीके से दिआयमी दुनिया से निकाल कर त्रिआयामी दुनिया में पहुंचा दिया।
टच फोन माइक्रोसॉफ्ट ने पहले दिया था palm phone में स्टायलस के साथ।
स्टीव जॉब्स ने उसकी विफलता से सामान्य मनुष्य के मनो विज्ञान को समझा और उंगलियों के टच से चलने वाला आईफोन आया।
( मैं भी स्टीव जॉब्स की तरह 24 फरवरी की पैदाइश हूं गुरुवार की!!) सोचने का तरीका काफी हद तक एक जैसा है। मनोविज्ञान हर समस्या के विश्लेषण और उसके स्थाई समाधान के केंद्र में होना चाहिए!!
खैर मुद्दे पर वापिस आते हैं !! ब्लैकबेरी और नोकिया जब तक स्थिति की गंभीरता को समझते तब तक मार्केट इन दोनों ही कंपनियों के हांथ से निकल चुका था।
दोनों ही कंपनियां C और C++ पर निर्भर थी जिसमें प्रोग्रामिग करना काफी मुश्किल था। और ज्यादा बुद्धिमत्ता और एनालिसिस क्षमता वाले प्रोग्रामर्स की जरूरत थी।
गूगल एंड्रॉयड ने जावा को चुना जिसमें प्रोग्रामर प्रचुरता से उपलंंब्ध थे।
आईफोन की प्रोग्रामिंग लैंग्वेज ऑब्जेक्टिव c जटिल थी लेकिन नोकिया के सिंबियन OS के प्रोग्रामर के लिए आसान थी सीखना !! और संभावना और पैसा इन c++ जानने वाले प्रोग्रामर्स के लिए बहुत जायदा थीं।
ब्लैकबेरी के प्रोग्रामर भी कुछ एंड्रॉयड में कूद गए कुछ आईफोन ऐप बनाने में।
जाहिर है ब्लैकबेरी और नोकिया दोनों की मांग हर क्वार्टर में घटती चली गई।
जब मांग खतम हो गई तो फोन आने भी बंद हो गए।
नोकिया ने अपना ब्रांड किसी चाइनीज कंपनी को बेच दिया। इसी तरह की कोशिश मोटोरोला और ब्लैकबेरी ने भी की। आज ये सारे फोन ब्रांड चाइनीज कंपनियों के अधीन हैं। इनके फोन अभी भी उपलब्ध हैं।