मुस्लिम गड़रिए ने की बाबा बर्फानी की खोज जानिए इसके बारे में कुछ रोचक जानकारी
अमरनाथ यात्रा के प्रति हिन्दुओं में अगाध श्रद्धा होती है और अमरनाथ यात्रा को को हिंदुओं के प्रमुख तीर्थों में से एक माना जाता है। अमरनाथ में बर्फ के शिवलिंग की पूजा की जाती है और हर साल लाखों लोग बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए अमरनाथ यात्रा पर जाते हैं।

हालांकि इस यात्रा का मार्ग काफी मुश्किलों भरा है और कई बार अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमले भी हो चुके हैं। लेकिन शायद आप नहीं जानते होंगे कि बाबा बर्फानी की खोज किसने की थी। यह जानना काफी दिलचस्प है और आइए आपको यह दिलचस्प कहानी बताते हैं।

बूटा मलिक था उसका नाम
आपको यह जानकर अचरज होगा कि बाबा बर्फानी की खोज एक मुस्लिम गड़रिए ने की थी। अमरनाथ श्राइन बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार कहा जाता है कि अमरनाथ गुफा की खोज बूटा मलिक नामक एक मुस्लिम गड़रिया ने की थी। वह जानवर चराता था और जानवर चराते हुए बूटा की मुलाकात एक साधु से हुई। साधु ने उसे कोयले से भरा एक बैग दिया। बूटा मलिक ने जब घर पहुंचकर बैग खोलकर देखा तो अचरज में डूब गया क्योंकि उसने कोयले को सोने के सिक्कों में बदला हुआ पाया।

साधु की खोज में पहुंचा बाबा बर्फानी के पास
इससे बूटा को समझ में आ गया कि वह साधु बहुत पहुंचा हुआ था। बूटा उस साधु से फिर मिलने को बेकरार हो गया। वह साधु को इधर-उधर ढूंढने लगा। साधु की तलाश में वह एक गुफा में पहुंच गया मगर उसे गुफा में भी साधु नहीं मिला। जब बूटा मलिक ने उस गुफा के अंदर जाकर देखा तो उसने पाया कि गुफा में बर्फ से बना सफेद शिवलिंग चमक रहा था। इसके पहले इसके बारे में कोई नहीं जानता था। उसी ने लोगों को इस शिवलिंग के बारे में जानकारी दी। इसके बाद से ही अमरनाथ की यात्रा शुरू हुई।

बटकोट में रहते हैं वंशज
अब भी दावा किया जाता है कि बटकोट में उसके वंशज रहते हैं। बटकोट में मलिक मोहल्ला है और वहां 11 परिवार रहते हैं। इस परिवारों का बूटा मलिक से रिश्ता है। रिपोट्र्स के अनुसार गुफा की खोज 1850 में हुई और यात्रा शुरू होने के बाद मलिक के परिवार वाले वहां की देखभाल करते थे।

श्राइन बोर्ड के गठन के बाद बेदखल
हालांकि बाद में साल 2000 में एक बिल जारी हूआ था और परिवार को बाहर निकाल दिया गया। पहले परिवार को एक तिहाई हिस्सा मिलता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। श्राइन बोर्ड के गठन के बाद उसे बेदखल कर दिया गया।

वेबसाइट पर एक कहानी और भी
वैसे वेबसाइट पर एक और कहानी भी है। इसके अनुसार कश्मीर घाटी पूरी तरह से पानी में डूबी हुई थी और कश्यप मुनि ने वहां नदियों का निर्माण किया और पानी कम होने के बाद घाटी का निर्माण हुआ। उसके बाद भृगु मुनि प्रवास पर गए जहां उन्होंने गुफा की खोज की। कहा जाता है कि गुफा के बारे में शास्त्रों में लिखा भी गया है। हालांकि इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया और बूटा मलिक ने इसकी खोज की।

पहलगांव का मार्ग लंबा
श्रीनगर से यात्री पहलगांव अथवा बालटाल होकर इस पवित्र गुफा तक जाते हैं। बालटाल का मार्ग छोटा है, लेकिन पहलगांव का मार्ग लंबा होने के बावजूद सुरक्षित है और अब मार्ग में कई सुविधाएं भी उपलब्ध रहती हैं।

मार्ग में प्रकृति का अनुपम सौंदर्य
जनश्रुति के अनुसार भगवान शंकर और जगदंबा पार्वती इसी मार्ग से पवित्र गुफा तक गए थे। यह मार्ग चंदनवाड़ी और शेषनाग से होकर पंचतरणी तक पहुंचता है और फिर पवित्र गुफा की यात्रा आरंभ होती है। संपूर्ण मार्ग में प्रकृति का अनुपम सौंदर्य तो है, लेकिन मार्ग बहुत कठिनाइयों और खतरों से भरा हुआ है। वैसे अब साधनों की उपलब्धता ने यात्रा को सरल बनाया है। बालटाल से हेलीकॉप्टर से भी लोग जाते हैं।