मसल बिल्डिंग से होता है प्रतिरक्षा में सुधार
शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली हमें बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी और विभिन्न प्रकार के रोगजनकों से हमारी रक्षा करती है। प्रतिरक्षा प्रणाली कई छोटी कोशिकाओं और ऊतकों से मिलकर बनी होती है। इतना ही नहीं प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर की मृत कोशिकाओं की भी पहचान कर उन्हें स्वस्थ कोशिकाओं से परिवर्तित करती हैं। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि प्रतिरक्षा प्रणाली हमारे शरीर की रक्षा करने के साथ आवश्यकतानुसार कोशिकाओं की देखभाल भी करती है।
मांसपेशियों के निर्माण से प्रतिरक्षा प्रणाली किस तरह से सही होती है इसे लेकर हीडलबर्ग में जर्मन कैंसर रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया। इसमें वैज्ञानिकों ने चूहों पर एक परीक्षण किया। शरीर में बीमारियों के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के लिए जिम्मेदार कुछ कोशिकाओं को टी कोशिकाओं के रूप में जाना जाता है, यह कोशिकाएं कैचेक्सिया के कारण कमजोर हो जाती हैं। एक प्रकार की टी कोशिकाएं जिन्हें सीडी8+ कहा जाता है वह संक्रमणों के दौरान क्षीण हो जाती हैं, जो शरीर में मांसपेशियों के नुकसान और इस स्थिति के बीच मुख्य कारक हैं।
चूहों की मांसपेशियों में जीन का अध्ययन करने के लिए पहले उन्हें लिम्फोसाइटिक कोरियोनोमाइटिस वायरस से संक्रमित किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि जब संक्रमण का असर चूहों के मांसपेशियों की कोशिकाओं पर हुआ तो उन्होंने इंटरल्यूकिन-15 (आईएल-15) नामक साइटोकिन्स छोड़ना शुरू कर दिया। जो रोगजनकों के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं के विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। आई-15 एक प्रकार का प्रोटीन या पेप्टाइड है जो कोशिका प्रतिक्रिया को नियंत्रित करता है और शरीर में कंकाल की मांसपेशियों में टी कोशिकाओं के रूप में कार्य करता है।
अध्ययन के प्रमुख वैज्ञानिक के अनुसार, संक्रमण की स्थिति में रोगजनकों से मुकाबला करने के दौरान अगर कोशिकाओं को कोई क्षति पहुंचती है तो प्रीकर्सर कोशिकाएं टी कोशिकाओं में विकसित हो सकती हैं। अध्ययन के प्रमुख वैज्ञानिक के अनुसार, संक्रमण की स्थिति में रोगजनकों से मुकाबला करने के दौरान अगर कोशिकाओं को कोई क्षति पहुंचती है तो प्रीकर्सर कोशिकाएं टी कोशिकाओं में विकसित हो सकती हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन चूहों की मांसपेशियां अधिक थीं, वह कमजोर मांसपेशियों वाले चूहों की अपेक्षाा संक्रमण से मुकाबला करने में ज्यादा प्रभावी थे। हालांकि, यह मनुष्यों के मामले में कितना प्रभावी होता है और क्या इंसानों के साथ भी यह ऐसा ही होता है, इसपर अभी और अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता है।