कुचला के फायदे और घरेलू उपाय के साथ शोधन आवश्य जाने

कुचला को कुपिलू भी कहते है।
स्वरूप – यह वृक्ष होता है। इसके फूल छोटे – छोटे हरापन युक्त सफेद आते हैं। फल गोल, चिकने, नारंगी होते हैं। बीज चपटे, गोल और चमकीले सफेद मखमली रेशों से भरे रहते हैं।
गुण और प्रयोग – यह कटु, तिक्त, उष्ण, दीपन, पाचन, उत्तेजक, बल्य एवं वाजीकर है। इसका उपयोग, पाचन के विकार, वातरोग तथा हृदय की दुर्बलता में किया जाता है।यह केन्द्रीय वातनाड़ी संस्थान, विशेषकर सुषुम्ना तथा प्रेरक केन्द्रों को उत्तेजित करता है।

  1. इसका चूर्ण देने से भूख बढ़ती है तथा पाचक रसों की वृद्धि होती है। इसके टिंचर से आंत्र की गति बढ़ती है इसलिये इसे जीर्ण विबंध में अन्य मृदुविरेचन औषधियों के साथ देते है। कुपचन, शूल आदि विकारों में इससे लाभ होता है।
  2. वातिक संस्थान के लिए उत्तेजक होने के कारण अनेक वातविकारों जैसे अर्दित, अर्धांग, गतिभ्रंश, ज्ञानभ्रंश, पेशीशोष, कंप, नाडीशूल, बाधिर्य, घटसर्प से उत्पन्न या अधिक बोलने से उत्पन्न आवाज न निकलना एवं तंबाकू के अधिक सेवन से उत्पन्न आंध्य आदि में इससे लाभ होता है।
  3. बच्चों के शय्यामूत्र, हस्तमैथुन या अतिमैथुन से उत्पन्न नपुंसकता में इसे देते है। वार्धक्य में वाजीकरण के लिये कुचला, लोह तथा काली मिर्च देते है।
  4. हृदय तथा श्वसन-संस्थान की दुर्बलता में इसके देने से उन-उन अंगों को बल मिलता है। इसके साथ अन्य औषधियों को देना पड़ता है।
  5. इसके जड़ की छाल की नींबू के रस में घोटकर बनाई गोली विसूचिका में दी जाती है। कृमियुक्त व्रण में पत्तों का पुल्टिस लगाया जाता है। गाय को पत्ते खिलाने से दूध में कडुवाहट आती है तथा वह अधिक सुपाच्य या पाच्य माना जाता है। कुछ पक्षी, जानवर इसके फल को खाते हैं। जानवरों को मारने के लिए भी इसका उपयोग करते हैं।

शोधन – बीजों को शोधन करके व्यवहार करना चाहिए। सात दिन गाय के मूत्र में रखकर छिलके निकालकर, गाय के दूध में उबाल लें। फिर गाय के घी में भूनकर चूर्ण बना कर प्रयोग करें।औषध मात्रा – 60-250 मि. ग्रा.।

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