जानिए लोगों ने यीशु को कैसे देखा

हमें बताया गया है कि “आम आदमी यीशु की बातों को प्रसन्नतापूर्वक सुनते थे।” और “वह उन्हें यहूदी धर्म नेताओं के समान नहीं, बल्कि एक अधिकारी के समान शिक्षा दे रहा था।”1

मगर, जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि वह अपने बारे में बहुत ही चौकानेवाला और चमत्कारिक बयान दे रहा था। उसने अपने आप को विलक्षण शिक्षक और पैगंबर से ज्यादा महान बताया। उसने साफ शब्दों में कहा कि वह परमेश्वर है। उसने अपनी शिक्षा में अपनी पहचान को मुख्य मुद्दा बनाया।

अपने अनुयायीयों से, यीशु ने सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा, “और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?” तब शमौन पतरस ने उत्तर दिया, “कि तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है।”2 यह सुनकर यीशु मसीह हैरान नहीं हुआ, न ही उसने पतरस को डाँटा। उसके विपरीत, यीशु ने उस की सराहना की!

यीशु मसीह अक्सर “मेरे पिता” कहकर परमेश्वर को संबोधित करते थे, और उनके सुननेवालों पर उनके शब्दों का पूरा प्रभाव पड़ता था। हमें बताया गया है, “इस कारण यहूदी और भी अधिक उस को मार डालने का प्रयत्न करने लगे; क्योंकि वह न केवल सब्त (विश्राम दिन) के दिन की विधि को तोड़ता, परन्तु परमेश्वर को अपना पिता कह कर, अपने आप को परमेश्वर के तुल्य ठहराता था॥”3 एक दूसरे अवसर पर उन्होंने कहा, “मैं और मेरे पिता एक हैं।” उसी समय यहूदियों ने उसे पत्थर मारना चाहा। यीशु मसीह ने उनसे पूछा कि उसके किस अच्छे कामों के लिए वे उसे (यीशु को) पत्थर मारने के लिए प्रेरित हुए?” उन लोगों ने उत्तर दिया, “भले काम के लिये हम तुझे पत्थरवाह नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा के कारण, और इसलिये कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बनाता है।”

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