Calling tracks for migrant laborers, life with the help of roads and roads, nobody pays attention

प्रवासी मजदूरों के लिए लॉक डाउन बना काल पटरियों एव सड़क के सहारे जिंदगी कोई नही ध्यान देने वाला

भारत देश के अलग-अलग राज्यों में लगभग 40 लाख से ज्यादा मजदूर वर्ग के लोग कार्य करने जाते हैं देश के विभिन्न विभिन्न हिस्सों में एवं फैक्ट्रियों कारखानों में लोग कार्य करके अपनी दैनिक दिनचर्या को चलाते हैं ऐसे में पूरे देश में 40 दिन से लॉक डाउन जारी है.

जिसके कारण कई राज्यों के प्रवासी मजदूर अलग-अलग राज्यों में फंसे हुए हैं कुछ मजदूरों ने तो पैदल ही यात्रा करके अपने घरों तक पहुंचे हैं तो कुछ मजदूर साइकिल के सहारे हजारों किलोमीटर का सफर तय करके अपने घर लौटे हैं तो वहीं प्रवासी मजदूरों को अपनी घर वापसी के बाद भी उनके गांव में नहीं घुसने दिया जा रहा है ऐसी कई सारी समस्याएं मजदूर वर्ग के लोगों के ऊपर आ गई है एक तरफ जहां रोटी की चिंता सता रही है.

तो वहीं दूसरी तरफ अपने घर जाने की तलब सता रही है सरकारें लाख दावे करके इन मजदूरों को उनके घरों तक व्यवस्थित  पहुंचाने की बात जरूर कर रही है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ अलग ही बयां कर रही है वही आज महाराष्ट्र के औरंगाबाद स्टेशन से कुछ ही दूरी पर पटरियों के  सहारे 


अपने प्रदेश वापसी की राह में चले  21 मजदूर मालगाड़ी की दुर्घटना के शिकार हो गए जिसके कारण 16 मजदूर अपनी जान गवा चुके हैं इस घटना के बाद से सरकार के सिस्टम पर सवाल उठना लाजमी है क्योंकि सरकार एक और दावे कर रही है कि उसने पूरे इंतजाम किए हैं लेकिन जिन मजदूरों  को इंटरनेट का ज्ञान नहीं है वह कहां जाकर  बताएं कि हम भी प्रवासी मजदूर हैं हमें भी अपने घर जाना है सरकार ने प्रवासी मजदूरों के लिए ऑनलाइन फॉर्म जारी किए हैं एवं मोबाइल नंबर भी जारी किए हैं  जिनकी सहायता से लोग अपने  प्रदेश वापस आ सकते हैं लेकिन जिन लोगों के पास यह सुविधाएं नहीं है उनके सामने बहुत बड़ा संकट आ खड़ा हुआ है जहां एक और अपने दो वक्त की रोटी कमाने के लिए मजदूर वर्ग के लोग अपने घरों से दूर है.

वहीं सरकार की सिस्टम को भी 40 दिन बाद मजदूरों को रेल से अपने प्रदेश भेजने की याद आई है यदि यह कार्य लॉक डाउन के दूसरे चरण में ही कर लिया जाता तो आज नजारा कुछ अलग होता यही नहीं बल्कि कुछ मजदूरों को तो खाने के लिए भी दर-दर भटकना पड़ रहा है सरकार मदद का आश्वासन जरूर दे रही है लेकिन वह कुछ भी नहीं रहा है हालांकि सरकार अभी तक एक लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को अपने घर श्रमिक ट्रेन के माध्यम से चुकी है लेकिन प्रवासी मजदूरों की पूरे देश में  40 लाख से ज्यादा है एवं इन सभी मजदूरों को अपने-अपने प्रदेश पहुंचाने के लिए सरकार को हजारों ट्रेनें चलानी पड़ेगी जब जाकर मजदूर अपने घर पहुंच सकेंगे वहीं अधिकतर मजदूर पटरियों के सहारे अपनी जान को जोखिम में डालकर अपने घर पहुंच चुके हैं.

तो कुछ लोग हादसों का शिकार हो गए हैं कुछ मजदूरों ने हजारों किलोमीटर का सफर नंगे पांव में करते हुए बीच में ही दम तोड़ दिया तो कुछ लोग अपनी मंजिल तक बड़ी मुश्किल तक पहुंच पाए हैं ऐसे में सरकार मजदूरों के खातों में ₹1000   रुपए की सहायता राशि ट्रांसफर की है लेकिन ₹1000 में एक परिवार कितने दिन तक गुजारा कर सकता है यह शायद सरकार नहीं जानती.

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