हिरण्यकश्यप के कितने पुत्र थे और उनके नाम क्या थे? जानिए

हिरण्यकशिपु महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री दिति का ज्येष्ठ पुत्र था। उनका छोटा भाई हिरण्याक्ष था और होलिका दोनों की बहन थी। यहीं से दैत्य जाति का आरम्भ हुआ।

हिरण्याक्ष के दो प्रसिद्ध पुत्र हुए – कालनेमि एवं अंधकासुर। हिरण्याक्ष का वध श्रीहरि ने वाराह अवतार लेकर कर दिया। होलिका की मृत्यु भी हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रह्लाद के वध के प्रयास में हो गयी। हिरण्याक्ष के पुत्र कालनेमि का वध भगवान विष्णु ने किया और अंधक को भगवान शंकर ने अपना पुत्र बना लिया।

हिरण्यकशिपु ने कयाधु नामक कन्या से विवाह किया जिससे उसे पांच पुत्र – प्रह्लाद, संह्लाद, आह्लाद, शिवि एवं वाष्कल तथा एक पुत्री सिंहिका की प्राप्ति हुई। सिंहिका ने विप्रचित्ति दानव से विवाह किया जिससे उसे स्वर्भानु नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। समुद्र मंथन के समय यही स्वर्भानु छिपकर देवताओं के मध्य बैठ गया ताकि अमृत का पान कर सके। तब नारायण ने अपने सुदर्शन से उसका सर काट दिया। तब उसी स्वर्भानु का सर राहु और धड़ केतु कहलाया।

प्रह्लाद महान विष्णु भक्त निकला जिस कारण हिरण्यकशिपु ने उसे मारना चाहा। तब श्रीहरि ने पुनः नृसिंह अवतार लेकर उसका वध कर दिया और प्रह्लाद को राजा बना दिया। प्रह्लाद ने देवी नामक कन्या से विवाह किया जिससे उसे तीन पुत्र प्राप्त हुए – विरोचनकुम्भ एवं निकुम्भ। उसकी विरोचना नामक एक पुत्री भी हुई।

विरोचन ने देवाम्बा नामक कन्या से विवाह किया जिससे उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ बलि। वे भी अपने दादा प्रह्लाद की भांति महान विष्णु भक्त हुए। श्रीहरि ने वामन अवतार लेकर बलि को पाताल भेज दिया जहाँ वे महाबली कहलाये। केरल का ओणम पर्व इन्ही के सम्मान में मनाया जाता है।

महाबली के १०० पुत्र हुए जिनमें से ज्येष्ठ महाप्रसिद्ध बाणासुर था जो भगवान शंकर का अनन्य भक्त था। बलि की दो पुत्री भी हुई – रत्नमाला एवं वज्रज्वला। वज्रज्वला का विवाह रावण के भाई कुम्भकर्ण से हुआ। इनके कुम्भ और निकुम्भ नामक दो प्रतापी पुत्र हुए। (प्रह्लाद के भी इसी नाम के दो पुत्र थे)।

बाणासुर की एक परम सुंदरी पुत्री हुई उषा जिसका विवाह श्रीकृष्ण के पौत्र और प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध से हुआ। इन दोनों का एक पुत्र हुआ वज्र। जब मौसल युद्ध में पुरे यादव वंश का नाश हो गया तो केवल वज्र ही उस कुल में जीवित बचा जिसे युधिष्ठिर ने इंद्रप्रस्थ का राज्य सौंपा।

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