हिंदू रीति के अनुसार अगर भाभी माँ होती है, तो बडे़ भाई की मृत्यु के बाद भाभी की देवर से शादी क्यों करवा दी जाती है?

ये प्रश्न जितना बड़ा लगता है, उससे कहीं बड़ा दर्द इसके अन्दर छिपा हुआ है।

“उसकी पत्नी उसके साथ मैच नहीं करती। अभी नौकरी को 10 साल ही हुए है उनका बेटा 8 साल का है। ऐसा क्या नौकरी लगते ही शादी कर ली थी।”

इस तरह की बेहूदी बातें अक्सर पार्क में बैठी औरतों से सुनने को मिल जाती थी। कहते हैं कि अगर औरत ही औरत को समझने लग जाए, तो 1 औरत का दर्द कम हो सकता है पर नहीं, उनको चुगली से मतलब है। टाईम पास के लिए मसाला भी तो चाहिए।

पिछले साल नवम्बर में सुनने को मिला कि यूनिट के किसी महान व्यक्ति ने उनकी दुखती नस पर हाथ रख ही दिया। और बेशर्मी से पूछ ही लिया –

“यादव जी, आपकी फैमिली का कुछ मैच लगता ही नहीं है, आपकी भी नौकरी 10 साल हुई और मेरी भी… पर मेरा बच्चा तो अभी 5 साल का ही है और आपका…………!!

यादव जी को समझते देर नहीं लगी कि सामने वाला व्यक्ति क्या पूछने की कोशिश में है। दिल का साफ इंसान कभी झूठ बोलेगा ही नहीं…इसीलिए बिना किसी देर के दुख भरे स्वर में बोल पड़े –

“सर, मेरे बड़े भाई की डेथ हो गयी थी, उस समय मैं कुँवारा था। तो मेरे माँ बाप ने मेरी भाभी की शादी मुझ से करवा दी। 1 बच्चा भी हो चुका था। ऐसे में मेरी भाभी उसे कहाँ लेकर जाती।”

इतना सुनते ही महान व्यक्ति के कलेजे में ठंड पड़ गयी… कुछ महीनों बाद उन्ही यादव जी के पिता जी बेटे के पास यूनिट में रहने आए। उनको अप्रैल में वापिस गांव जाना ही था कि लॉकडाउन में वे इधर ही यूनिट में फंस गए। बुजुर्ग व्यक्ति सारा दिन क्वार्टर में रह नहीं सकता। बोरियत हो गयी 4 महीनों से क्वार्टर में रहकर, इसीलिए जुलाई में सुबह शाम बाहर घूमने के लिए निकलने लगे। इधर मेरे पतिदेव भी क्वार्टर में अकेले थे, मै और बेटी ससुराल में थे उस वक़्त।

इनको भी उनके पिता जी की कंपनी अच्छी लगी… तो दोनों साथ में घूम लिया करते और कुछ बातें भी हो जाती होंगी। 1 दिन उन्होने अपने घर की बातें करना शुरू कर दिया और बोलने लगे – –

मेरा बड़ा बेटा भी फौजी था, पर 1 दिन खबर आई कि वो किसी मुठभेड़ में शहीद हो गए। मेरे पति की आँखे खुली की खुली रह गयी। (आधी अधूरी बात पूरी यूनिट में फैला कर उस व्यक्ति ने अच्छा नहीं किया…किसी के इमोशन से खेलना पाप है)

उनके पिता जी की आंखे नम थी, वो कितना दर्द छुपाकर जी रहे थे… दर्द का ये सिलसिला यही नहीं थमता जब बड़े बेटे के साथ उसकी पत्नी और बेटा भी जुड़ा हो।

कितना असहनीय दर्द होता है वो जिसका कोई इलाज़ नहीं, कोई दवा नहीं… कि दवा ले और दर्द ठीक हो जाए। ऐसा लगता है मानो जिंदगी में कुछ बचा ही ना हो ? ? ? ?, क्या कुछ नहीं आता दिमाग में… ऐसा कर लेते, छुट्टी पर बुला लेते, अभी रात ही तो फोन पर बात हो रही थी… ऐसा कैसे हो सकता है।

जाने वाला चला गया, पर अगर इस दर्द में अपने बीवी बच्चों को देखेगा… क्या उसकी आत्मा को शांति मिलेगी? माँ बाप ने देवर से शादी कर तो दी… अब वो देवर पर डिपेंड करता है कि वो अपने भाई की फैमिली को कैसे रखेगा।

आज वो दीदी बहुत खुश हैं अपने देवर के साथ नहीं…. दूसरा जन्म देने वाले रखवाले के साथ। जरूरी नहीं, एक औरत ही बच्चे को जन्म दे सकती है। कुछ इस तरह आदमी भी औरत की खुशी का जरिया बन सकता है।

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