हाथ में अंगूठियां पहन लेने से हमारे ग्रहों की दशा कैसे बदल जाती है? जानिए
बात साल 2013 की है….
टीवी से लेकर अख़बारों तक मे “शनि ने अपनी उच्च राशि तुला में किया प्रवेश!” और “शनिदेव हुए उच्चस्थ!” जैसे समाचार छाए हुए थे।
मैं तब ज्योतिष का विद्यार्थी नही था पर घर मे बचपन से से ज्योतिष संबंधित बातें सुन सुनकर इतना ज्ञान आ गया था कि मेरा लग्न 2 नंबर वाली राशि यानी “वृषभ लग्न” है।
मित्रो, जब नया नया आधा अधूरा ज्ञान कही से प्राप्त होता है तो व्यक्ति की सहज जिज्ञासा उसे अनेकों मार्गो में ले जाती है इसी जिज्ञासा की शांति के लिए।
उस समय मैं भी इंटरनेट पर “वृषभ लग्न” गूगल करता और ढेर सारे वेबसाइट्स/ब्लॉग्स सामने आ जाते जिन्हें बड़े ध्यान से मैं पढ़ता, उस समय तक यूट्यूब पर ज्योतिष के वीडिओज़ का इतना चलन नही था।
दोस्तो! जितनी सारी वेबसाइट और ब्लॉग पढ़े वे सब के सब बस यही बता रहे थे कि वृषभ लग्न के लिए शनि सर्वोत्तम एवं नीलम रत्न धारण करना अत्यावश्यक है।
दो ढाई महीने इंटरनेट खंगालने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचा की भई अपने जीवन को सुखमय और सफल बनाने के लिए बस एक काम करना है: “शनिदेव के लिए नीलम की अंगूठी धारण करनी है!”
उन दिनों मैं पढ़ाई कर रहा था साथ ही साथ घर से बहुत सारे पैसे लेकर एक जमीन में निवेश कर रखे थे। इसके साथ साथ घर से किसी अतिरिक्त विशेष वस्तु के लिए पैसे लेना मेरे स्वभाव में नही था, तो पूरे एक साल की सेविंग्स खर्च करके एक प्रामाणिक रत्न विक्रेता से 2.5 रत्ती का नीलम रत्न खरीदा और उसको सोने की अँगूठी में हमारे पुश्तैनी सुनार से मढ़वा कर जनवरी के अंतिम शनिवार की संध्या को धारण कर लिया।
इतना खर्चा करके मुझे लगा कि बस अब अपने सारे लटके हुए काम बनने लगेंगे, अपने निवेश ज़बरदस्त रिटर्न देंगे और अपनी मान-प्रतिष्ठा तो आकाश छूने लगेगी।
पर उस 2013 साल में जो कुछ हुआ उसकी कुछ घटनाएं यहाँ आपके सामने रख रहा हूँ:
- फरवरी में ही सूचना मिली कि जिस जमीन में निवेश किया था वहाँ दिल्ली-मुम्बई कॉरिडोर आने वाला है, सो कॉलोनी विकसित करना-प्लॉट एरिया निकलाने के लिए कोई भी सरकारी अनुमति मिलना बंद हो गयी। जमीन होते हुए भी शून्य रिटर्न!
- मार्च अंत मे एक पारिवारिक मित्र जो अत्यंत निकट था, वो दरअसल छुपा हुआ शत्रु था जो खुलकर सामने आया और उसके द्वारा अति का कष्ट प्राप्त हुआ मुझे।
- अप्रैल महीने में निवास के आस-पास बनी व्यावसायिक दुकानों पर नगर निगम द्वारा अतिक्रमण की कार्यवाही की गयी और बिना किसी लिप्तता के बाद भी मुझे इस कार्यवाही के लिए कही ना कही दोष दिया गया क्योकि मैं रहवासी संघ का अध्यक्ष था, इस मिथ्या आरोप से मन अत्यधिक पीड़ित रहा।
- मई-जून-जुलाई-अगस्त में अनेको छोटे मोटे विवाद, व्यर्थ की बहसबाजी, झूठे आरोप लगना यही सब चलता रहा और इन सब मे उलझ कर मन बुरी तरह से दुःखी हो गया।
- सितंबर में तब अति हो गयी जब मात्र 5 दिन की अस्वस्थता के बाद परिवार में अत्यंत निकट के व्यक्ति का अकस्मात निधन हो गया, ये दुःख मेरे जीवन का चरम दुःख था जिसकी कल्पना मात्र करने पर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते है।
बस मेरे प्रिय उस निकट के व्यक्ति के निधन ने अंदर तक तोड़ दिया मुझे और जब व्यक्ति बुरी तरह से टूटा हुआ रहता है उस समय वो रेट्रोस्पेक्टिव मोड़ में चला जाता है, मैं भी अनेको क्यो-किसलिए के कारण ढूंढने लगा।
मुझे याद है 2013 की दीवाली का दिन था और हम पूरा परिवार एकसाथ बैठे थे कि तभी भैया की नज़र मेरी उँगली में पहनी हुई नीलम की अँगूठी पर गयी।
उन्होंने एक ज़ोरदार झिड़की के साथ तुरंत मेरी उँगली से नीलम उतरवाया और दूध में डालकर अलग रखवा दिया।
मैंने उनके क्रोध का कारण पूछा तो उन्होंने बस इतना कहा मुझसे:
“कोई ज़हर अगर धीमे धीमे शरीर पर प्रभाव डाल रहा हो तो उसकी एक्स्ट्रा डोज़ लेकर डबल पावर से ज़हर को शरीर में इंजेक्ट करना कहाँ तक ठीक है!”
तब तो मैने इतने सवाल जवाब नही करे पर आज जब ज्योतिष का विद्यार्थी हूँ तो अपनी उस बचकानी गलती पर हद से ज़्यादा क्रोध भी आता है और ज्योतिष में बाज़ारवाद जिसने मुझे नीलम रत्न लेने के लिए प्रेरित किया उससे घृणा भी होती है।
दो लॉजिकल बातों से आपनी बात रखने का प्रयास कर रहा हूँ मित्रो, आप ध्यान दीजिएगा..
सबसे पहली बात तो ये की मेरा स्वयं का वृषभ लग्न अवश्य है किंतु शनिदेव मृत्यु के भाव अष्टम में स्थित है, जो अपने आप मे घोर निराशा-पीड़ा-पराजय-पृथकता का भाव है।