हाइड्रोजन बम का सिद्धांत एवं कार्य विधि

हाइड्रोजन बम

यह नाभिकीय संलयन बम है जो कि भारी हाइड्रोजन नाभिकों के संलयन पर आधारित है। चूंकि संलयन अति उच्च दाव तथा अति उच्च ताप होता हैं, अतः संलयन बम के साथ एक विखंडन (परमाणु) बम को प्रज्वलन के रूप में प्रयुक्त करना पड़ता हैं। हाइड्रोजन बम की केन्द्रीय क्रोड यूरेनियम (अथवा प्लूटोनियम) के विखंडन बम के रूप में होती हैं जो कि चारों ओर से संलय पदार्थ (जैसे भारी हाइड्रोजन का सौगतिक लीवियम हाइडाइड) से घिरी रहती हैं.

इसे भी चारों और से यूरेनियम से घेर देते हैं जब केन्द्रीय विखंडन बम में विस्फोट होता है, तो अति उच्च ताप व दाब उत्पन्न हो जाते हैं तथा चारों और के आच्छादित भारी हाइड्रोजन नाभि को का संलयन प्रारम्भ हो जाता हैं। संलयन में उत्पन्न तीव्र न्यूट्रोन बाहरी यूरेनियम की परत में विखंडन उत्पन्न करने लगते हैं। इस प्रकार, एक संलयन शृंखला-अभिक्रिया विकीमत हो जाती हैं तथा विशाल मात्रा में ऊर्जामुक्त होती हैं।

विखंडन बम का साइज एक सीमा से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता गतिकी इसमें विखंडनीय पदार्थ कहो अलग-अलग टुकडों में रखा जाता कि प्रत्येक टुकड़े का साइज, क्रान्तिक साइज से कम होता है। परन्तु हाइड्रोजन बम के साइज पर इस प्रकार का कोई प्रतिबन्ध लागू नहीं होता। ने संचयिता होने वाले पदार्थ किसी भी मात्रा में ले सकते हैं संलयन एक बार प्रारम्भ होने के बाद पदार्थ के किसी भी द्रव्यमान में फैल सकता १ अतः संलयन बम, विखंडन बम की अपेक्षा कहीं अधिक विनाशकारी होता हैं। हाइड्रोजन बम में संलयन की प्रक्रिया एक ‘अनियन्त्रित’ प्रकिया है जिसका उपयोग केवल विश्वंसकारीं हो हो सकता

हैं। अभी तक इस प्रक्रिया हो एक नियन्त्रित प्रक्रिया नहीं बनाया जा सका है। इसका मुख्य कारण यह हैं कि जिस उच्च ताप पर नाभिकीय संलयन होता हैं उस ताप पर समाणुओं के सभी इलेक्ट्रॉन अपने-अपने परमाणुओं से अलग हो जाते हैं। इस प्रकार, नाभिकों तथा मुक्त इलेक्ट्रॉनों का एक फिश क जिसे ‘प्लाज्मा’ कहते हैं।

इसे गर्म प्लाज्मा को किसी बर्तन में इस प्रकार बनाये रखना कि यह बर्तन की दीवारों पर जाता हैं विकट समस्या हैं। इसके लिये संसार के वैज्ञानिक भिन्न-भिन्न विधि खोज रहे ही एक विधि में प्लाज्या को एक अत्यन्त तीव्र असे अन्त जाता हैं जिससे कि प्लाज्मा एक सीमित स्थान में वृत्तों में घूमता रहे। परन्तु इसमें भी अनेक नई समस्या।

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