हवाई जहाज हवा में रास्ता ढूंढ़ता कैसे है ?

समुद्र और आकाश अथाह हैं. एक बार दोनों में से किसी के बीच में कोई चला जाय तो ज़मीन का पता नहीं चलता और इन दोनों जगहों में बीच के रास्तों को पहचानने का कोई विकल्प भी नहीं.

फिर लोग इनमे यात्रा कैसे करते हैं? प्रश्न जिज्ञासा पैदा करता है. तो आइये समझते हैं बिल्कुल आसान तरीके से जिसे आम आदमी समझ सके.
आप को याद होगा कि पुराने समय से लोग समुद्री यात्रा करते आ रहे हैं. भारत की खोज हो या अमेरिका की, समुद्र के रास्ते से ही हुयी थी. समुद्र के बीचोबीच भी तो आसमान जैसा ही हाल है. वहां जब कम्पास नहीं बना था तो पहले लोग ध्रुव तारे को देख कर दिशा का पता लगा कर चलते थे. इसीलिए कभी कभी अपनी नियत यात्रा से थोड़ा बहुत भटक भी जाते थे.
लेकिन कम्पास (दिक्सूचक या कुतुबनुमा) के आने से पृथ्वी के उत्तर की दिशा का निर्धारण बड़ी आसानी से हो गया. अब एक दिशा मिल गयी तो बाक़ी दिशाएं आराम से पता चल जाती हैं.

दिशा निर्धारण का काम भी पृथ्वी की चुम्बकीय दिशा ही करती है. वैसे आज कल तो GPRS के प्रयोग से विमान ही क्या, ओला उबर की गाड़ियां भी चलने लगी हैं.

विमानों में (आजकल डिजिटल) तमाम यंत्र होते हैं जिनमे एक यन्त्र है जिसे होरिज़िन्टल सिचुएशन इंडिकेटर (HSI) कहते हैं. नीचे इसकी तस्वीर दिखायी गयी है. आप तो जानते ही होंगे कि पृथ्वी के हर
स्थान की स्थिति अक्षांश और देशांतर से प्रति पादित की जा सकती है. अतः विश्व के सारे एयरपोर्ट के निर्देशांक विमान के कंप्यूटर में भरे रहते हैं.( पुराने विमानों में कप्तान पहले मैप लेकर चलते थे) जिस जगह जाना होता है उसका कोड होता है जिसे कंप्यूटर में भर दिया जाता है. अब जिस जगह से जहां जाना है उसे भर देने से रास्ते की लाइन HSI पर दिखायी देने लगती है.

अब जब विमान किसी एयरपोर्ट पर खडा रहता है तो उसके कंप्यूटर सिस्टम में प्छोरस्टेथान और गंतव्य स्टेशन भरने से दो त्रिभुज बन जाते हैं ..प्रस्थान का नीचे बड़ा और गंतव्य का ऊपर छोटा. उसके बाद कंप्यूटर में गंतव्य स्थल की स्थिति (location)भर दी जाती है. उड़ने के बाद विमान के पहले से ही नियत रास्ते होते हैं. यह रास्ते अतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार बनाए जाते हैं. कोई ज़रूरी नहीं है कि विमान एक जगह से उड़कर सीधी रेखा में जाते हुए दूसरी जगह पहुँच जाए. ये नियम रास्ते के पहाड़, हवाएं, मौसम आदि तथा किसी देश के ऊपर से गुजरने वाले नियम आदि को ध्यान में रख कर बनाए जाते हैं.

तस्वीर में आप देख रहे होंगे कि नीचे एक त्रिभुज है और ऊपर एक छोटा त्रिभुज. विमान को अपनी जगह से ऊपर वाले त्रिभुज तक पहुँचना है. टेक ऑफ करने के बाद विमान अपना रास्ता पकड़ लेता है. लेकिन किस ऊंचाई औरकिस रास्ते को पकड़ कर इसे उड़ना है यह बात टेक ऑफ के समय उस एयरपोर्ट का एयर ट्रैफिक कंट्रोलर (ATC) बताता है.

इस रास्ते में बीच में कई एयरपोर्ट स्टेशन आते हैं और इन्हीं स्टेशन के सहारे बात करते हुए तथा निर्देश लेते हुये उड़ना पड़ता है. किस दिशा में कितने ऊंचाई पर उड़ना है यह निर्देश रास्ते के एयरपोर्ट बताते हैं, क्यों कि उनसे उनके क्षेत्र में उड़ने वाले सभी विमानों की स्थिति उन्हें पता होती है. जो दिशा बतायी जाती है और जो ऊँचाई निर्दिष्ट की जाती है, कप्तान को अपने कंप्यूटर में भरना पड़ता है. इससे उसके HSI पर वही दिशा की लाइन दिखायी देती है और वह उसी तरफ बढ़ता है.

इन हवाई मार्गों की दिशाएँ पहले से निश्चित होती है ताकि उड़ते उड़ते कोई विमान दुसरे देश या अपने ही देश के अनधिकृत क्षेत्र में प्रवेश न कर जाए . जैसे पकिस्तान के ऊपर या डिफेंस एरिया में या राष्ट्रपति भवन के ऊपर आदि..आप को पाता होगा कि बरमूडा त्रिकोण के ऊपर से कोई विमान नहीं जाता, जब कि इससे रास्ते छोटे हो सकते हैं. लेकिन इसके ऊपर से जाने वाले विमान गायब हो चुके हैं जिनका आजतक पता नहीं चला.

रास्ते में आने वाली लोकेशन को “वेपॉइंट” कहते हैं और हवाई मार्ग को “एयर कॉरिडोर”
वे पॉइंट में रहने वाले ATC को पता होता है कि उसके क्षेत्र में कितने विमान किस ऊंचाई और दिशा में जा रहे हैं. अतः दो विमानों में कहीं टक्कर न हो इसलिए दिशा और ऊंचाई का निर्देश इन्हीं से लिया जाता है.

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