हमें क्रिसमस क्यों मनाना चाहिए? जानिए

सदियों से लोग यह मानते आए हैं कि क्रिसमस ईसाइयों का त्योहार है, जो यीशु के जन्म की खुशी में मनाया जाया है। क्रिसमस से जुड़े रीति-रिवाज़ों को देखकर कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि इनका यीशु के जन्म से क्या ताल्लुक है?

ज़रा सैंटा क्लॉस पर गौर कीजिए। यह नाम सुनते ही हमारे मन में लाल रंग के कपड़े पहने हुए एक हँसते-मुसकराते व्यक्‍ति की तसवीर बन जाती है, जिसकी सफेद दाढ़ी है और गुलाबी गाल हैं। सैंटा क्लॉस की यह तसवीर सन्‌ 1931 में मशहूर हुई, जब कोल्ड ड्रिंक बनानेवाली एक अमरीकी कंपनी ने क्रिसमस के लिए विज्ञापन निकाले, जिनमें सैंटा क्लॉस ने इस तरह की पोशाक पहनी थी। सन्‌ 1950 के दशक में ब्राज़ील के कुछ लोगों ने उनके यहाँ की कथा-कहानियों में बताए जानेवाले एक मशहूर शख्स, “ग्रांडपा इंडियन” को सैंटा क्लॉस की जगह देनी चाही। क्या वे कामयाब हुए? कारलोस ई. फैंटिनाटी नाम का एक जानकार बताता है कि सैंटा क्लास ने न सिर्फ “ग्रांडपा इंडियन” को पीछे छोड़ दिया, बल्कि यीशु से भी ज़्यादा मशहूर हो गया और 25 दिसंबर को मनाए जानेवाले जश्‍न की पहचान बन गया। तो ज़ाहिर है कि सैंटा क्लॉस असल शख्स नहीं है। सैंटा क्लॉस के अलावा, क्या क्रिसमस से जुड़े और भी रीति-रिवाज़ हैं, जिनका यीशु के जन्म से कोई ताल्लुक नहीं है? इसका जवाब जानने के लिए आइए आज से करीब दो हज़ार साल पहले हुई घटनाओं पर गौर करें।

इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका नाम की किताब बताती है कि यीशु की मौत के करीब 200 साल बाद तक लोग यीशु का जन्मदिन मनाने के सख्त खिलाफ थे। लेकिन क्यों? क्योंकि यीशु के शिष्यों का मानना था कि जन्मदिन मनाना एक ऐसा दस्तूर है, जो गैर-ईसाई धर्मों से निकला है और उन्हें इसे बिलकुल भी नहीं मानना चाहिए। दरअसल बाइबल में कहीं भी यीशु के जन्म की तारीख नहीं दी गयी है।

हालाँकि शुरू-शुरू में मसीही जन्मदिन मनाने के सख्त खिलाफ थे, फिर भी, यीशु की मौत के करीब 300 साल बाद कैथोलिक चर्च ने क्रिसमस मनाने की शुरूआत की। उन्होंने ऐसा क्यों किया? दरअसल उस ज़माने में रोम के लोग दिसंबर के आखिरी हफ्तों में बहुत धूम-धाम से अपने धार्मिक त्योहार मनाते थे। ये त्योहार और रोमी धर्म दोनों ही बहुत प्रचलित थे। अमरीका में क्रिसमस (अँग्रेज़ी) नाम की किताब बताती है कि हर साल 17 दिसंबर से लेकर 1 जनवरी तक रोम के रहनेवाले ज़्यादातर लोग खाते-पीते, खेलते, जश्‍न मनाते, जुलूस निकालते और अपने देवी-देवताओं की उपासना करने के लिए और भी कई तरीकों से मौज-मस्ती करते रहते थे और 25 दिसंबर को वे सूर्य का जन्मदिन मनाते थे। लेकिन चर्च के लोग इन लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने उसी दिन को यीशु के जन्मदिन के तौर पर मनाने का फैसला किया। इस तरह उन्होंने रोम के कई लोगों को सूर्य का जन्मदिन मनाने के बजाय यीशु का जन्मदिन मनाने के लिए कायल कर लिया। इस बारे में सैंटा क्लॉस की जीवनी (अँग्रेज़ी) नाम की किताब कहती है कि इस तरह रोम के लोग दिसंबर में अपने त्योहार मनाते रह सकते थे। लेकिन सच तो यह था कि वे इस नए त्योहार को उसी तरह मना रहे थे, जैसे वे पहले अपने त्योहार मनाते थे।

इससे साफ हो जाता है कि क्रिसमस मनाने की शुरूआत गैर-ईसाई धर्मों से हुई है। स्टीवन निसनबॉम नाम का एक लेखक कहता है कि ये असल में दूसरे धर्मों का त्योहार है, जिसे ईसाई धर्म का जामा पहनाया गया है। क्या इस बात से कोई फर्क पड़ता है? बिलकुल, क्योंकि इससे परमेश्‍वर और उसके बेटे, यीशु मसीह की तौहीन होती है। इस बारे में बाइबल हमसे ये सवाल करती है, “नेकी के साथ दुराचार का क्या मेल? या रौशनी के साथ अंधेरे की क्या साझेदारी?” (2 कुरिंथियों 6:14) क्रिसमस में इतनी सारी गलत परंपराएँ और रस्मों-रिवाज़ जुड़ गए हैं कि इस त्योहार को कतई सही करार नहीं दिया जा सकता!

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