सूर्य देवता को जल चढ़ाते समय गायत्री मंत्र क्यों बोला जाता है? जानिए

मुख्य कारण यही है की गायत्री मंत्र मैं सुर्य देव की ही अस्तुति है. यह मंत्र ऋग वेद मैं है. इसे विश्वामित्र ऋषि जि ने बनाया था.

गायत्री मंत्र मैं सुर्य को ही समस्त ऊर्जा का स्रोत माना गया है अंधकार को मिटाने वाला कहा गया है.

सुर्य सात घोड़ो के रथ पर सवार है समस्त विश्व को प्रकाशित करते है सभी ऊर्जाओं का स्रोत है. इनके ही वंश मैं भगवान राम त्रेता युग मैं जन्म लिए. सात घोड़े सात रंगों को दर्शाते है. जिनको bibgyor पैटर्न द्वारा भी आधुनिक विज्ञानं मैं एक्सप्लेन किया गया है. अतः सुर्य का प्रकाश जिसका अंतिम रंग सफ़ेद है सात रंगों से बना है. अरुण देव इनके सारथी है.

गायत्री मन्त्र निम्न है

ॐ भूर भुवह स्वः, तत्सवितुर्वांरेण्यम भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात.

इसका अर्थ इस तरह है जो की स्वामी दयानन्द सरस्वती जि द्वारा लिखा गया है

है परमेश्वर, है सच्चिदानंद स्वरुप, है नित्य शुद्ध बुद्धि मुक्त स्वरुप, है कृपानिधे न्यायकारिन, है अज निरंकार, निर्विकर, है सर्वाधार, सर्व जगतपती, सकल जगद उत्पादक, है अनादि, विश्वव्यापी , सर्वव्यापी, करुणा अमृत, है तीनों लोक के स्वामी हम आप को ही धारण करें और आप विश्व का पोषण करने वाले हो आप हमारे आत्मा और बुद्धि को दुस्टचार से हटाकर श्रेष्ठचार सद्मार्ग पर चलावे और आप हमारे पिता, राजा,न्यायाधीश और सब सुखों का देनेवाले हो. सविता सुर्य का ही नाम है.

पौराणिक रूप से अंग राज कर्ण जो दानवीर की उपाधि से नवाजे गए है, सुर्य पुत्र थे और वे भी सुर्य मंत्र / गायत्री मंत्र से ही सुर्य भगवान की उपासना रोजाना ब्रह्म मुहूर्त मैं पूरी करते थे. इसके बाद दान पुण्य करते थे. अपने सामने जो भी याचक हो उसकी आशा पूरी करते थे.

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