सावधान! कहीं जर्सी गाय का दूध ही तो नही आपकी डायबिटिज की वजह

गाय के दूध को सर्वोत्तम आहार माना गया है। शास्त्रों में इसे अमृत की संज्ञा तक दी गई है, मगर ऐसा सभी गायों के साथ नहीं होता। अध्ययन के अनुसार विदेशी नस्ल की गाय का दूध शरीर को फायदा पहुंचाने के बजाय बीमार कर रहा है। इससे टाइप वन डायबिटीज होता है।

साउथ एशियन फेडरेशन ऑफ एंडोकिन सोसाइटीज के वाइस प्रेसिडेंट डॉ. संजय कालरा बताते हैं, कि दूध में बीटा कसीन प्रोटीन होता है। यह बीटा सेल पेनक्रियाज में होता है, जो इंसुलिन बनाता है। इस प्रोटीन के दो अवयव होते हैं, ए-1 और ए-2 प्रोटीन। देशी गाय और भैंस के दूध में ए-2 प्रोटीन होता है। जबकि विदेशी नस्ल की गाय के दूध में ए-1 प्रोटीन होता है। डॉ. कालरा की माने तो ए-1 प्रोटीन बीटा सेल को कमजोर कर रोग प्रतिरोधक क्षमता कम कर देता है। इसके साथ ही बीटा सेल के कम होने की वजह से शरीर में इंसुलिन का बनना कम हो जाता है। इससे इन्सान को टाइप वन डायबिटीज हो जाता है।

डॉ. कालरा के मुताबिक ए-1 प्रोटीन बीटा सेल को जहां कमजोर करता है, वहीं रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित कर कमजोर कर देता है। बीटा सेल की कमी होने के कारण शरीर में इंसुलिन का बनना कम होने लगता है। नतीजतन इंसान टाइप वन डायबिटीज की चपेट में आ जाता है।

डॉ. कालरा के मुताबिक देशभर में (खासतौर से महानगरों में) माताओं द्वारा शिशुओं को दूध पिलाने की कम होती प्रवृत्ति से ज्यादातर शिशुओं को बाहरी दूध पिलाया जाता है। देशी गाय के मुकाबले ज्यादा दूध देने के कारण लोग विदेशी नस्ल के हॉलेस्टिन फ्रिजियन या फ्रिजियन साहीवाल नस्लों का गाय पालना पसंद करते हैं।

ऐसे में नवजात बच्चों को इन गायों के दूध पिलाने से उनके डायबिटीज की चपेट में आने का जोखिम बढ़ जाती है। सामान्य तौर पर एक साल की उम्र के बाद बच्चों में डायबिटिज के लक्षण दिखाई पडऩे लगते हैं।

टाइप वन डायबिटीज के लक्षण

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