सबसे प्राचीनतम ग्रंथ कौन सा है और इसका मुख्य सार क्या है?

एक ही परमात्मा को सज्जन लोग भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं।

मनुष्यों को चाहिए कि अधर्म का पालन करने वाले और मूर्ख लोगों को राज्य की रक्षा का अधिकार कदापि न दें.

किसी एक मनुष्य को स्वतंत्र राज्य का अधिकार कभी न दें परन्तु राज्य के समस्त कार्यों को शिष्ट जन की सभा के अधीन रखें.

उनको ही लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, जो आलस्य का त्याग करके सदैव सत्कर्म के लिए प्रयासरत रहते हैं.

जगत के समस्त जीवों को सुख मिले, मुझे भी सुख मिले.

अतिथि को सुन्दर और सुखद आसन देकर प्रसन्न करना चाहिए.

मेघ हमें और हमारी प्रजा के लिए सुखकर हों.

इस ग्राम (World) के सभी निवासी निरोगी और स्वस्थ हों.

समस्त दिशाओं से अच्छाई का प्रवाह मेरी तरफ हो.

बिना स्वयं परिश्रम किये देवों की मैत्री नहीं मिलती.

दान करनेवाले मनुष्यों का धन क्षीण नहीं होता, दान न देने वाले पुरुष को अपने प्रति दया करनेवाला नहीं मिलता.

मनुष्य अपनी परिस्थितियों का निर्माता आप है. जो जैसा सोचता है और करता है, वह वैसा ही बन जाता है.

हमारी बुद्धियाँ विविध प्रकार की हैं. मनुष्य के कर्म भी विविध प्रकार के हैं.

जो अधर्माचरण से युक्त हिंसक मनुष्य है, उसको धन, राज्यश्री और उत्तम सामर्थ्य प्राप्त नहीं होता. इसलिए सबको न्याय के आचरण से ही धन खोजना चाहिए.

हे मानवो! जैसे अग्नि आप शुद्ध हुआ सबको शुद्ध करता है, वैसे संन्यासी लोग स्वयं पवित्र हुये सबको पवित्र करते हैं.

जिन अध्यापकों के विद्यार्थी विद्वान, सुशील और धार्मिक होते हैं, वे ही अध्यापक प्रशंसनीय होते हैं.

जैसे महौषधि और बाह्य प्राणवायु सबकी सदा पालन करते हैं, उसी प्रकार उत्तम राजा और वैद्यजन समस्त उपद्रव और रोगों से निरंतर रक्षा करते हैं.

किसी भी मनुष्य को श्रेष्ठ वृक्ष या वनस्पति को नष्ट नहीं करना चाहिए. किन्तु उनमें जो दोष हो उनक निवारण कर उन्हें उत्तम सिद्ध करना चाहिए.

राजपुरुषों को ऐसे मार्ग का निर्माण करना चाहिए जिनसे जाते हुये पथिकों को चोरों का भय न हो और द्रव्य का लाभ भी हो.

मनुष्यों को चाहिए कि सब ऋतुओं में सुख कारक, धनधान्य से युक्त, वृक्ष, पुष्प, फल, शुद्ध वायु, जल तथा धार्मिक और धनाढ्य पुरुषों से युक्त गृह बनाकर वहां निवास करे, जिससे आरोग्य से सदा सुख बढे.

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