विवाहित महिलाएं सिंदूर क्यों लगाती हैं? जानिए

सिंदूर लगाने का इतिहास लगभग पांच हजार साल पुराना माना जाता है। धार्मिक और पौराणिक कथाओं में भी इसका वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार देवी माता पार्वती और मां सीता भी सिंदूर से मांग भरती थीं। पार्वती अपने पति शिवजी को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए सिंदूर लगाती थीं। मां सीता अपने पति श्री राम जी की लंबी उम्र की कामना तथा मन की खुशी के लिए सिंदूर लगाती थीं।

पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का ब्रह्मरंध्र अधिक संवेदनशील और कोमल होता है। सिंदूर में पारा धातु पाया जाता है, जिससे शरीर पर लगाने से विधुत ऊर्जा नियंत्रण होती है। इससे नकारात्मक शक्ति दूर रहती है। साथ ही सिंदूर लगाने से सिर में दर्द, अनिद्रा और अन्य मस्तिष्क से जुड़े रोग भी दूर होते हैं। विज्ञान के अनुसार, भी महिलाओं को विवाह के बाद सिंदूर अवश्य लगाना चाहिए।

विवाहित महिलाएं सिंदूर लगाकर अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र की कामना करती हैं। यह सुख, सौभाग्य और पवित्रता की निशानी माना जाता है।

एक अन्य मान्यता भी है कि लक्ष्मी का पृथ्वी पर पांच स्थानों पर वास है। इनमें से एक स्थान सिर भी है, इसलिए विवाहित महिलाएं मांग में सिंदूर भरती हैं, ताकि उनके घर में लक्ष्मी का वास हो और सुख-समृद्धि आए।

सिंदूर को स्त्रियां विवाह के बाद ही लगाती हैं। विवाह एक पवित्र बंधन है। हिंदू समाज में जब एक लड़की की शादी होती है, तो उसकी मांग में सिंदूर भरा जाता है। यह सिंदूर पति भरता है। वहीं कई-कई जगहों में पति की मां यानी विवाहिता की सास भी अपनी बहू की मांग भरती हैं। इस प्रकार, जो पहचान बनती है उसका अटूट संबंध पति से होता है।

ज्यादातर महिलाएं मांग भरकर सिंदूर लगाती हैं। सिंदूर का संबंध जीवनसाथी की दीर्घायु की कामना और अच्छे स्वास्थ्य के साथ ही, पत्नी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ भी है।

मांग में सिंदूर भर जाने के बाद एक स्त्री का नया जन्म होता है। इस नए जीवन के साथ उसको कई नई जिम्मेदारियां और दायित्व विरासत में मिलता है। जीवन की इस नई पारी में उसको खुशियों के साथ-साथ मानसिक तनाव भी कम होता है। लाल रंग शक्ति और स्फूर्ति का भी परिचायक माना जाता है। इससे ताकत का एहसास होता है। इसलिए विवाहित महिलाएं सिंदूर लगाती हैं।

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