वास्तु शास्त्र में ईशान कोण को जल क्षेत्र क्यों माना जाता है? जानिए इसके बारे में
वायु शास्त्र के अनुसार हमारे मकान में मुख्यतः पांच तत्वों को प्रभावशाली माना गया है ।
जो इस प्रकार हैं जल ,पृथ्वी ,वायु ,अग्नि एवं आकाश और दिशाओं के हिसाब से इन्हें इस तरह देखा जाता है कि जल की दिशा उत्तर पूर्व यानी ईशान कौन है, वायु की दिशा उत्तर पश्चिम यानी वायव्य कोण है ,अग्नि की दिशा दक्षिण पूर्व यानी आग्नेय कोण है ,पृथ्वी की दिशा दक्षिण पश्चिम यानी नृत्य कोण है ।और मध्य क्षेत्र को आकाश क्षेत्र माना जाता है ।
मकान के लिए भूखंड इस प्रकार होना चाहिए कि उस संपूर्ण भूमि का कुल ढलान ईशान कोण की तरफ होना चाहिए यानी इस जगह का लेवल पूरे प्लाट के लेवल का सबसे नीचे का लेवल होगा।
अब बात करते हैं पानी का इस दिशा से कैसा संबंध है
यदि हम पानी संग्रह के लिए ईशान कोण का चयन करते हैं तो निश्चित रूप से हमें वहां भंडारण के लिए उसे नीचे खुदाई करनी होगी कुआं जल स्त्रोत बनाने के लिए भी नीचे ही खोदना होगा बोरिंग करने के लिए जमीन को नीचे ही खोदना होगा इस तरह जमीन का सबसे गहरा स्थान ईशान कोण पर होगा ।
और यहां जल तत्व की उपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि यह हिस्सा पूरे भूखंड का सबसे निम्न ऊंचाई वाला हिस्सा है यदि हम भूखंड में किसी और जगह पानी का इस्तेमाल संग्रह आदि करते हैं तो वहां से वह कर पानी को ईशान कोण की तरफ ही आना होगा इसलिए यदि हम ईशान कोण पर पानी का इस्तेमाल संग्रह आदि करते हैं तो यह उचित जगह है और यहीं से पूरे मकान की जल निकासी सुनिश्चित करनी चाहिए ।
पूर्व उत्तर का कोना मकान को सर्वाधिक धनात्मक ऊर्जा के प्रवेश का क्षेत्र है । इन्हीं सब बातों को मानते हुए उत्तर पूर्व का कोना यानी ईशान को जल तत्व का कौण माना गया है.