रुक्मणि के भाई रुक्म की मौत कैसे हुई थी? जानिए

यदुवंशी लोग कृष्ण बलराम सात्यकि आदि किसी उत्सव के समय रुक्म के साथ थे. रुक्म भी एक महान योद्धा था लेकिन स्वाभावतः ही वह कृष्ण विरोधियों से मिला हुआ था. रुक्मणि के विवाह का भी उसने कराधन के साथ विरोध किया था और रुक्मणि के सपनी इच्छा जाहिर करने पर भी उसने रुक्मणि को तरजीह नहीं दी. रुक्मणि ने उससे निराश होकर श्रीकृष्ण जि के पास एक ब्राह्मण दूत से स्वसयं के विवाह का प्रस्ताव द्वारिका भिजवाया. तब श्रीकृष्ण दल बल सहित राजा भीष्मक की नगरी पहुंचे और जरासंध शिशुपाल की उपस्थिति मैं रुक्मनि का अपहरण कर राक्षस विवाह किया जो की उनदिनों अधिक प्रचलित था.

लगभग सभी क्षत्रिय इसी पद्दति का अनुशरण करते थे जिसमे कन्या की सहमति होने पर उसे अपहरण कर लेते थे चाहे उसके माता पिता इस तरह की योजना के खिलाफ हो. रुक्मणि के विवाह के पक्ष मैं रुक्म के अलावा रुक्मणि स्वयं, उसके शेष अन्य कगर भाई तथा माता पिता भी थे. कहते है रुक्म के प्रतिरोध के कारण सभी चुप हो गए थे और रुक्म को अक्साड़ी फि थी लेकिन रुक्मणि ने मसला गंभीर देख भाई को अपनी इच्छा बता दी फिर बजी रुक्म के जोरजबरदस्ती का विरोध छुपजे से कर अपना कंकरवा लिया.

रुक्म ने कृष्णा और यदुवंशियों पर हमला किया तो बलराम ने शिशुपालसहित सभी विरोधिओं को हराया और कराधन जि ने रुक्म को बंदी बना लिया तथा रुक्मणि के कहने पर प्रार्थना करने पर हि छोड़ा. शादी के उपरांत दोनो वंश का समवंध ठीक रहा फिर कोई उनमे युद्ध आदि न हुआ.

रुक्म ने अपनी बेटी की शादी भी कृष्ण जि के पुत्र से ही की. इससे उनको एक पुत्र हुआ. कृष्ण जि के पौत्र की शादी भी रुक्म की पोत्री से ही हियी.

किसी उत्सव के समय काशन बलराम आदि रुक्म के साथ थे. मदिरा पान के उपरांत सभी सवन्धियों ने जुया, चौसर खेला जो की राजवंशियों की परम्परा प्रथा थी. इसी चौसर मैं बलराम और रुक्म आमने सामने थे. रुक्म ने बलराम पर आरोप लगाया की छल कपट किया है खैल मैं. इस आरोप से आहत होकर बलराम ने एक दो बार रुक्म को चेतावनी देकर ही छोड़ दिया.

रुक्म के हार जाने पर और निराशा मैं बलराम पर आरोप प्रत्यारोप पुनः करने पर बलराम का क्रोध जग गया और उन्होंने अपने अस्त्र से रुक्म को मार दिया. इस तरह रुक्म का वध हुआ लेकिन यदुवंशी ज़िस भी काम के लिए रुक्म केपास गए थे वह काम सफलता पूर्वक कर के द्वारिका लोटे. इस रुक्म केवढ से कृष्ण और रुक्मणि को अच्छा नहीं लगा लेकिन कोई भी दाऊ के सामने कुछ बोल नहीं सकता था. सबने जो हुआ उसे स्वीकार कर लिया.

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