राहु के लग्न में होने से क्या फायदे और नुकसान होते हैं? जानिए
ज्योतिष में राहु सर्प के प्रतीक हैं। वस्तुत: राहु में देवत्व के गुण भी विद्यमान हैं। राहु सिंहिका राक्षसी के पुत्र हैं तथा इनके पिता विप्रचिति सदैव आसुरी संस्कारों से दूर रहे, साथ ही समुद्र मंथन के समय अमृतपान करने के कारण इन्हें अमरत्व एवं देवत्व की प्राप्ति हुई, तभी से शंकर भक्त राहु अन्य ग्रहों के साथ ब्रम्हा जी की सभा में विराजमान रहते हैं इसीलिए इन्हें ग्रह के रूप में मान्यता मिली है। संकुचित विचारधारा के कारण राहु को संकट का पर्याय मान लिया गया परन्तु राहु ऊंचा पद, राज, सत्ता और गुप्त ज्ञान की राह भी खोलते हैं।
गृह निर्माण के प्रथम चरण नींव पूजन में जहाँ राहु के प्रतीक सर्प की प्रतिष्ठा होती है, वहीं नींव स्थापना का स्थान भी राहु की स्थिति के आधार पर ही निर्धारित किया जाता है। नींव सदैव राहु पृष्ठ में ही रखे जाने का विधान है।
जन्मपत्रिका में राहु की स्थिति जहाँ कुछ बाधाओं, पूर्वजन्म के कर्मो का संकेत देती है।सर्प प्रतिष्ठा और सर्प की पूजा ही इस दोष को शांत करने में सहायक होती है। .
दोनों प्रकाशक ग्रहों सूर्य और चंद्रमा को कांतिहीन करने की क्षमता राहुदेव में हैं। चंद्रमा मन के कारक हैं। चंद्रमा के साथ युति करके राहु विचारों और भावनाओं में उथल-पुथल मचा देते हैं। ऎसी स्थिति में राहु की दशा मानसिक तनाव लेकर आती है।
राहुदेव की आराधना हेतु प्रभावी श्लोक-
अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम्।
सिंहिकागर्भ सम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ||