रावण को अमरत्व प्राप्त था तो उसकी मृत्यु क्यों हुई?

अमरत्व का वरदान ब्रह्मा जी किसी को नहीं देते। जो जन्म लेता है, उसे मरना ही होता है। कुछ अपने गुणों से चिरंजीवी हो जाते है।’अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सात महामानव चिरंजीवी हैं।
आपको इनमे रावण दिख रहा क्या?! विभीषण जरूर है। बहुत जोर देने पर परमपिता टर्म्स एंड कंडीशंस पर अमरता का वरदान देते है। लेकिन ब्रह्माण्ड के पालनहार श्रीविष्णु संतुलन बनाए रखने, उसमे काट ढूंढ ही लेते है।

जैसे वराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष को मारा क्योंकि उसने उस जीव को निकृष्ठ मान नाम ही नहीं लिया था। नृसिंह बन हिरण्यकश्यप को, क्योंकि वो जानवर और इंसान दोनो से ना मरने का वरदान लिया था। महिषासुर को देवी दुर्गा ना मारा, क्योंकि उसने नारी का जिक्र नहीं किया था। वहीं रावण नाभि में प्रहार होने पर मर सकता था, यह राज विभीषण ने श्रीराम को बता दिया था।


जहां राम लीला होती थी, वहां अंतिम दिन के नाटक में रावण के मरने का मंचन होता था। वहां रावण का पुतला बनाया जाता था, रामजी का अभिनय करने वाले उसपर तीर चला जला देते थे। लोगों को यह खूब पसंद आता गया, और पुतला बड़ा और भव्य होता गया। अब तो जहां राम लीला नहीं भी होती वहां भी पुतला जलाते है। यह सांकेतिक है, इससे अमरत्व का कोई सम्बन्ध नहीं। वो तो रा – वन फिल्म का डायलॉग भर है। ऐसे रावण की मृत्यु विजयादशमी के दिन नहीं हुई थी। विजयादशमी में वो घायल हुआ था, विभीषण राजा बन गए थे। रावण ने शरीर चैत्र शुक्ल चतुर्दशी को त्यागा था।


यह आश्चर्य की बात ही है कि रावण को अमरत्व का वरदान मिला, लेकिन वो मृत्यु को प्राप्त हुआ। वहीं धर्मात्मा राजा बलि समुद्रमंथन से निकले अमृत को ना पा सके। लेकिन भक्ति और धर्म से कभी ना डिगने पर भी दैत्यराज बलि और राक्षस राज विभीषण चिरंजीवी हो गए।

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