रामायण में अंगद का पैर नहीं हिल पाने का वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है? जानिए

विज्ञान मत से आप इसको नहीं जान पायेंगे क्योंकि यह स्थूल शरीर के उस आयाम से कार्य करती है जिसे हम सुप्त शरीर या ऊर्जा शरीर कहते है।

आपके शरीर में 112 ऊर्जा केन्द्र या चक्र हैं उनमें से सात major है । इन्ही मे पहला चक्र है मूलाधार चक्र जिसका भौतिक स्थान आपके perineum में होता है।

यह आपके शरीर रूपी इमारत की नींव होती है।

तो अगर आप योग से अपने इच्छानुसार इस नींव को अत्यधिक मजबूत या कहे अत्यधिक जमीन में धसा हुआ बना लेते हैं तो आप भी अंगद बन जायेगे।

आपको कोई आप की स्थिति से हिला नही पायेगा।

इस चक्र से आपके शरीर के कुल चार आयाम regulate होते है – हड्डी , मांस , त्वचा और रक्त ।

मनुष्य के जीवन का आधार है यह मूलाधार जिसका मतलब ही है ‘आधार का मूल ‘ ।

अगर आप किसी भी शारिरिक कष्ट में है जो हड्डी मांस त्वचा या रक्त से संबंधित है तो इसका मतलब आप का मूलाधार अस्थिर हो गया है। यानि आपके जीवन के मूलभूत आयाम ही आपका साथ नही दे रहे ।

चूंकि इसका रंग लाल होता है इसलिये इस चक्र को स्थिर करने के लिये आप लाल रंग को धारण करे आप लाल कपड़े पहने या लाल भोजन सेब strawberry जो भी साबुत लाल रंग का भोजन खा सकते है।

अगर यह शाकाहारी है तो अच्छा रहता है क्योकि veg food easy to digest होता है।

ज्योतिष शास्त्र में इसी चक्र की उन्नति हेतु मूँगा या coral पहनने को कहा जाता है।

हठ योग में आप कोई भी आसन जिसमे आपको खड़ा रहना है कर सकते है- जैसे ताड़ासन , सूर्य नमस्कार , वीर भद्रासन , मलासन , इत्यादि ।

साथ ही खाली पैर प्रकृति से जुड़ना बहुत लाभकारी होता है विशेषकर घास पर खाली पैर चलना । और अपने वजन को अपने पैर के तलवों पर महसूस करना ।

आप यह न सोंचें कि सिर्फ यह करने से असाध्य रोग एकदिन में ठीक हो जायेगे , नही ऐसा होने में समय लगेगा । इन क्रियाओं से आप शरिर मे बदलाव लाना चाहते पर शरीर बदलाव को पसंद नही करता । इसलिये श्रद्धापूर्वक नियमित अभ्यास करे एक साल में फर्क आपको देखने को मिलेगा ।

रही बात महान योद्धा श्री अंगद जी की तो वे खाली पैर चलते थे, प्रकृति में रहते थे, शाकाहारी थे , हठ योग के महारथी थे । तो उनका पैर वटवृक्ष समान जमीन से जुड़ जाना और विद्वान रावण का अहंकार मिट्टी में मिल जाना योग के अभ्यार्थियो के लिये उत्साहवान तो है पर नयी बात नहीं। आपको हजारों कहानियाँ मिलेगी जिस में श्राप के कारण कोई पत्थर बन जाता है तो इसका कारण है मूलाधार को अत्यधिक नुकसान पहुचाना । और ऐसी स्थिति में केवल दिव्य शक्ति , ओजस ही बचा सकती है । ऐसे दो उदाहरण है भगवान श्री राम का देवी अहिल्या उद्धार और भगवान श्री कृष्ण का कुब्जा उद्धार घटना ।

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