रहस्य कुम्भलगढ़ के किले की दीवार का जिसने मांगी थी एक संत की नरबली

गर्मिओं का मौसम आते ही घूमने का ख्याल मन में उमड़ने लगता है. घूमने के लिए जगह तो ढ़ेरों होती है. लेकिन चुनाव कर पाना कई बार कठिन हो जाता है. आपकी इस कठिनाई को शायद कम किया जा सके. जिसके चलते आईये हम आपको लेकर चलते है राजस्थान.

वैसे तो राजस्थान के लगभग हर हिस्से में कोई न कोई खास बात तो है. यहाँ के राजाओं का इतिहास ही इतना दिलचस्प रहा है. ऐसे ही एक महान राजा, महाराज कुम्भल के किले की सैर कराते है. चीन की दीवार का नाम विश्व में सभी जानते है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी. भारत में भी एक ऐसी दीवार है जो की चीन की दीवार को कई मायनो में टक्कर देती हुई नजर आती है.

जी हाँ, यह दीवार इसी किले में है. विश्व में इस दीवार को दूसरा स्थान प्राप्त है. यह किला कई घाटियों और पहाड़ियो को मिला कर बनाया गया है. जिसकी प्राकर्तिक सुन्दरता देखते ही बनती है. किले की प्राकर्तिक सुन्दरता सिर्फ मन को ही खुश नहीं करती बल्कि प्राकृतिक सुरक्षा भी प्रदान करती है. यही वजह रही कई बार अक्रमण के बावजूद भी महाराज कुम्भ का कोई बाल भी बांका नहीं कर सका.

किले के इतिहास पर अगर नजर डाले तो आपको इसके इतिहास के बारे में सुनकर बेहद हैरानी होगी. जब इस दीवार का निर्माण शुरू हुआ, वास्तु शास्त्र को बुलाया गया और निश्चय किआ गया की इस अभेद दीवार का निर्माण आरंभ किया जाये. लेकिन कई दिनों की कोशिश के बाद पाया गया आखिर इस दीवार का निर्माण आगे क्यूँ नहीं बढ़ पा रहा है. अनेको प्रयास के बावजूद भी दीवार रोजाना सुबह गिरी हुई पाई जाती है. तभी किसी ने राजा को बताया, इस समस्या का समाधान नगर में रहने वाले एक संत ही कर सकते है. राजा ने तुरंत ही, संत से मिलने का निश्चय किया.

संत से मिलने पर पता चला इस स्थान पर देवी का साया होने के वजह से इस दुर्ग की दीवार बनाने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. राजा ने तुरंत ही उसका समाधान संत से जानने की कोशिश की जिसको सुनकर वो दंग रह गये. संत ने बताया देवी नर बली चाहती है. इसको सुनकर राजा सकते में पड़ गए, और संत से आग्रह किया भला कोई भी व्यक्ति नर बली के लिए क्यों तैयार होगा. यह तो असम्भव है.

तब संत ने स्वं की बली देने की बात कही. उन्होंने बोला सुबह में पहाड़ी पर चलूँगा, और जब में पहली बार जहाँ रुकुंगा वहाँ किले का मुख्या द्वार का निर्माण किया जाये और ऐसा ही हुआ संत करीब ३६ की मी चलने के बाद रुक गया. और संत के कहे अनुसार उनका सर धड से अलग कर दिया गया राजा ने संत की आज्ञा का पालन करते हुए, संत के कहे अनुसार अपने कार्य को आरंभ किया. उसके बाद से किले की दीवार बनाने में कोई भी अड़चन सामने नहीं आई. यह दीवार करीब ३६ की मी की दूरी तक फैली हुई है.

इसका आर्किटेक्चर बेहद ही बेहतरीन है, किले में बनी घुमाओ दार दीवारे देखते ही बनती है. घुमाओ दार दीवारों का निर्माण दुश्मनों को ध्यान में रखते हुए किया गया था. इस दीवार की चौड़ाई इतने ज्यादा है, की करीब 8-10 घोड़े एक साथ दौड़ सकते है. किले की सुरक्षा पर नजर डाले तो इस किले में किले के निर्माण के बाद ही आक्रमणों का सिलसिला बना रहा लेकिन एक बार को छोड़ कर कोई भी राजा को हरा नही सका और न ही किले की सुरक्षा को भेद सका. जब राजा को हार का सामना करना पड़ा उस वक़्त भी कई राजाओ की संयुक्त टुकड़ी ने एक साथ किले पर हमला किया और किले में पानी ख़त्म हो जाने की वजा से किले के लोगो को हार का सामना करना पड़ा.

किले के अन्दर करीब ३६० मंदिर है जिनमे से ३०० मंदिर जैन समुदाय को संबोधित करते हुए नजर आते है. मंदिरों को देख कर साफ़ अंदाज़ा लगाया जा सकता है, राजा काफी पूजा पाठ में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे. किले के ही अन्दर एक और किला है, जिसको कटार गढ़ के नाम से जाना जाता है. इस गढ़ में सात दरवाज़े है. इस गढ़ के शीर्ष में बादल महल है. जिसमे कई वर्षो तक राजा और उनका परिवार सुरक्षित रहा.

कुम्भल गढ़ की बनावट की जितनी भी तारीफ की जाये कम ही होगी. इसके रहस्यों का खज़ाना शायद ही ख़त्म हो. ऐसा ही एक खज़ाना है किले का आत्मनिर्भर ढंग से बना होना. इस किले में ऊँचाई के स्थानों पर महल, मंदिर और आवासीय इमारतों का निर्माण किया गया. वही समतल भूमि का इस्तमाल कृषि के लिए किया गया, साथ ही ढलान वाली जगह का इस्तमाल जलाशय जैसे झील, तलब के तौर पर किया गया. जिसको देख कर साफ़ अंदाज़ा लगाया जा सकता है, आज के ही नहीं प्राचीन समय में भी किस तरह से सभी अवशक्ताओ का ख्याल अच्छे तरीके से रखा जाता था.

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