यदि शुक्राचार्य राक्षसों के गुरु थे, तो भगवान विष्णु ने उन्हें पहले क्यों नहीं मारा?

भगवान विष्णु जानते थे कि शुक्राचार्य उन्हीं के कारण दैत्यगुरु बने । विष्णु द्वारा अपनी माता की मृत्यु के प्रतिशोध के कारण ।

शुक्राचार्य सदैव ही अपने दैत्यगुरु होने के दाईत्व का पालन करते रहते थे । बस उनके कुछ असुर शिष्य ही कुछ समय के लिए सफल हुए । तो गुरु होने का दाईत्व अच्छी तरह निभाया ।

बृहस्पति के एकमात्र प्रतिद्वंदी शुक्र ही थे और यह बात देवता गण और स्वंय बृहस्पति भी जानते थे । तो बृहस्पति को अकेले श्रेष्ठ होने का अहंकार न हो इसलिए भी इनका जीवित होना आवश्यक था ।

शुक्राचार्य , महादेव के शिष्य और माने हुए पुत्र हैं । उन्हें मृतसंजीवनी की विद्या भी महादेव से मिली । ऐसे मे विष्णु स्वंय शुक्र को दंडित न करते । वे जानते थे कि शुक्र यदि कुछ गलत करते हैं तो महादेव उनके गुरु होने के कारण स्वंय उसे दंड दे ।

शुक्राचार्य संसार के सबसे पहले कवि (लेखक) हैं । भगवदगीता के दसवें अध्याय मे कृष्ण ने स्वंय भी कहा हैं कि — कवियों मे उशना (शुक्र) मैं हूं ।

ज्योतिष के अनुसार शुक्र — प्रेम, कला, कामुकता, आकर्षण, सुख संपत्ति, वैभव ऐश्वर्य, जीवनसाथी , सुंदरता आदि का कारक माना गया हैं ।

शुक्राचार्य ने शुक्र नीति की रचना की और शुक्राचार्य भीष्म के भी अध्यापक रहेे हैं । देवराज इंद्र के कहने पर बृहस्पति पुत्र कछ जब मृतसंजीवनी विद्या सीखने आए तो भी शुक्राचार्य ने मना नहीं किया ।

देवराज इंद्र की पुत्री जयंती भी इनकी पत्नी हैं । उज्रस्वाति के अलावा ।

अब केवल असुरगुरु होने के कारण इतने अच्छे गुणों को अनदेखा नहीं किया जा सकता । शायद इसलिए स्वंय भगवान विष्णु ने शुक्राचार्य का वध नहीं किया ताकि देव — असुर का संतुलन बना रहे ।

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