मोहनजोदाड़ो कहाँ पर स्थित है और क्यों प्रसिद्ध हैं ?
मोहन जोदड़ो का सिन्धी भाषा में अर्थ है ” मुर्दों का टीला “। यह दुनिया का सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है। यह सिंघु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व शहर है। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे सक्खर ज़िले में स्थित है। मोहन जोदड़ो शब्द का सही उच्चारण है ‘मुअन जो दड़ो’।
इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने 1921 ई. में की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जान मार्शल के निर्देश पर खुदाई का कार्य शुरु हुआ। यहाँ पर खुदाई के समय बड़ी मात्रा में इमारतें, धातुओं की मूर्तियाँ, और मुहरें आदि मिले। पिछले 100 वर्षों में अब तक इस शहर के एक-तिहाई भाग की ही खुदाई हो सकी है, और अब वह भी बंद हो चुकी है।
माना जाता है कि यह शहर 125 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था तथा इस में जल कुड भी हुआ करता था! स्थिति- पाकिस्तान के सिंध प्रांत का लरकाना जिला। पाकिस्तान के सिंध में 2600 BC के आस पास इसका निर्माण हुआ था.
मोहनजोदड़ो की विशेषताएं
खोज के दौरान पता चला था, कि यहाँ के लोग गणित का भी ज्ञान रखते थे, इन्हें जोड़ घटाना, मापना सब आता था. जो ईट उस समय अलग अलग शहर में उपयोग की गई थी, वे सब एक ही वजन व साइज़ की थी, जैसे मानो इसे एक ही सरकार के द्वारा बनवाया गया था.
पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार सिन्धु घाटी के सभ्यता के लोग गाने बजाने, खेलने कूदने के भी शौक़ीन थे. उन्होंने कुछ म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट, खिलोने भी खोज निकाले थे. वे लोग साफ सफाई पर ध्यान देते थे. पुरातत्ववेत्ताओं को कंघी, साबुन व दवाइयां भी मिली है. उन्होंने कंकालों के दांत का निरिक्षण भी किया था, जिससे पता चला कि उनके नकली दांत भी लगे हुए होते थे. मतलब प्राचीन सभ्यता में भी डॉक्टर भी हुआ करते थे.
खोजकर्ता ने बहुत से धातु के गहनें व कॉटन के कपड़े भी खोज निकाले थे. ये गहनें आज भी बहुत से संग्रहालय में रखी हुई है.
इसके अलावा बहुत सी चित्रकारी, मूर्तियाँ, सिक्के, दिए, बर्तन, औजार भी मिले थे जिन्हें देश विदेश के संग्रहालयों में रखा गया है.
खोज में पता चला था कि ये लोग खेती भी किया करते थे, काले पड़ गए गेंहू को आज भी संभालकर रखा गया है.
कुछ लिपिक भी मिले है, जिससे सिध्य होता है कि इनको पढ़ना लिखना भी आता था.