महाबलीपुरम में स्थित कृष्णा माखन गेंद (बटर बॉल) के बारे में रोचक जानकारियां क्या है ? जानिए

250 टन की हैं ‘कृष्णा बटर बॉल’

महाबलीपुरम में स्थित विशालकाय ग्रेनाइड पत्थर है जिसे ‘कृष्णा बटर बॉल’कहते हैं। कृष्‍णा बटर बॉल या वानिराई काल (आकाश के भगवान का पत्‍थर) एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। इस ‘कृष्‍णा बटर बॉल’ की ऊंचाई 20 फीट है और यह 5 मीटर चौड़ी है। चट्टान का आधार 4 फीट से भी कम है, जबकि यह एकदम पहाड़ी की ढलान पर स्थित है। पत्थर का वजन करीब 250 टन है। यह चट्टान चार फीट से भी कम पहाड़ी के ढलान पर स्थित है। कृष्‍णा बॉल को देखकर ऐसा लगता है कि यह कभी भी गिर सकता है लेकिन इस पत्‍थर को हटाने के लिए पिछले 1300 साल में कई प्रयास किए गए लेकिन सभी विफल रहे। इसी वजह से रिस्‍क उठाने वाले लोग ही इस पत्‍थर के नीचे बैठते हैं। यह पत्‍थर करीब 45 डिग्री के स्‍लोप पर है।

स्वर्ग से आयी हैं यह कृष्‍णा की बटर बॉल

कहा जाता है कि यह पत्थर सीधे स्वर्ग से गिरकर यहां आया है। ऐसा कहा जाता है कि यह कृष्ण के मक्खन का टुकड़ा है, जो खाते वक्त स्वर्ग से गिर गया था। इसी वजह से इस पत्थर को भगवान का पत्थर भी कहते हैं। हालांकि ये कल्पित कथाएं हैं। इस विशालकाय पत्थर को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक महाबलीपुरम आते हैं। हिंदू धर्मावलंबियों का मानना है कि भगवान कृष्‍ण अकसर अपनी मां के मटके से माखन चुरा लेते थे और यह प्राकृतिक पत्‍थर दरअसल, श्रीकृष्‍ण द्वारा चुराए गए मक्‍खन का ढेर है जो सूख गया है। बता दें कि महाबलीपुरम एक ऐतिहासिक शहर है जिसे ममल्लापुरम भी कहा जाता है। बंगाल की खाड़ी के किनारे बसा ये शहर 7वीं और 8वीं शताब्दी में बने अपने भव्य मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।

प्राकृतिक आपदाएं भी हिला न सकी

पहली बार सन 630 से 668 के बीच दक्षिण भारत पर शासन करने वाले पल्‍लव शासक नरसिंह वर्मन ने इसे हटवाने का प्रयास किया। उनका मानना था कि यह पत्‍थर स्‍वर्ग से गिरा है, इसलिए मूर्तिकार इसे छू न सकें। पल्‍लव शासक का यह प्रयास विफल रहा। 250 टन वजनी पत्‍थर ‘कृष्‍णा बटर बॉल’ को पिछले करीब 1300 सौ वर्षों से भूकंप, सुनामी, चक्रवात समेत कई प्राकृतिक आपदाओं के बाद भी अपने स्‍थान पर बना हुआ है। यही नहीं इस पत्‍थर को हटाने के लिए कई बार मानवीय प्रयास किए गए लेकिन सभी विफल रहे। दुनियाभर से महाबलीपुरम पहुंचने वाले लोगों के लिए प्राकृतिक पत्‍थर से बना कृष्‍णा बटर बॉल को देखकर अचंभित हो जाते हैं।

सात हाथी मिलकर भी नहीं हटा सके यह पत्‍थर

वर्ष 1908 में ब्रिटिश शासन के दौरान मद्रास के गवर्नर आर्थर लावले ने इसे हटाने का प्रयास शुरू किया। लावले को डर था कि अगर यह विशालकाय पत्‍थर लुढ़कते हुए कस्‍बे तक पहुंच गया तो कई लोगों की जान जा सकती है। इससे निपटने के लिए गवर्नर लावले ने सात हाथियों की मदद से इसे हटाने का प्रयास शुरू किया लेकिन कड़ी मशक्‍कत के बाद भी यह पत्‍थर टस से मस नहीं हुआ। आखिरकार गवर्नर लावले को अपनी हार माननी पड़ी। अब यह पत्‍थर स्‍थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है।

कृष्‍णा की बटर बॉल पर गुरुत्‍वाकर्षण भी बेअसर

इस पत्‍थर पर गुरुत्‍वाकर्षण का भी कोई असर नहीं है। उधर, स्‍थानीय लोगों का मानना है कि या तो ईश्‍वर ने इस पत्‍थर को महाबलीपुरम में रखा था जो यह साबित करना चाहते थे कि वह कितने शक्तिशाली हैं या फिर स्‍वर्ग से इस पत्‍थर को लाया गया था। वहीं वैज्ञानिकों का मानना है कि यह चट्टान अपने प्राकृतिक स्‍वरूप में है। भूवैज्ञानिकों का मानना है कि धरती में आए प्राकृतिक बदलाव की वजह से इस तरह के असामान्‍य आकार के पत्‍थर का जन्‍म हुआ है।

वर्तमान समय में विज्ञान के इतना प्रगति करने के बाद भी अब तक यह पता नहीं चल पाया है कि 4 फीट के बेस पर यह 250 टन का पत्‍थर कैसे टिका हुआ है। कुछ लोगों का यह दावा है कि पत्‍थर के न लुढ़कने की वजह घर्षण और गुरुत्‍वाकर्षण है। उनका कहना है कि घर्षण जहां इस पत्‍थर को नीचे फिसलने से रोक रहा है, वहीं गुरुत्‍कार्षण का केंद्र इस पत्‍थर को 4 फीट के बेस पर टिके रहने में मदद कर रहा है।

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